24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। राजस्थान पुलिस स्टेट क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की ओर से सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के तहत एक महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा किया गया है। इसमें बताया गया है कि उदयपुर में हिरणमगरी थाना परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरे तकनीकी खराबी के चलते बंद हो गए हैं। इसके अलावा पिछले छह महीने में उदयपुर के किसी भी पुलिस थाने का कोई भी सीसीटीवी कैमरा बंद होने की कोई भी जानकारी नहीं है। विभाग ने बताया कि कैमरे सीसीटीवी से जुड़ी एलईडी की तकनीकी समस्या के कारण बंद हैं। इन्हें दुरुस्त कराने के लिए नई दिल्ली स्थित संयुक्त महाप्रबंधक को पत्र भेजा गया है।
देश के जाने माने आरटीआई एक्टिविस्ट व पत्रकार जयवंत भैरविया पुत्र नरेन्द्र भैरविया ने बताया कि अक्सर पीड़ितों को पुलिस थानों के सीसीटीवी फुटेज की आवश्यकता होती है। कई बार थानों में पीड़ितों के साथ दुर्व्यवहार की भी शिकायतें आती रहती हैं। कई बार एफआईआर या परिवाद दर्ज नहीं होने की भी शिकायतें होती है।। इसके अलावा कई अन्य बातों को लेकर भी सीसीटीवी से वस्तुस्थिति को जानना कानूनी रूप से जरूरी हो जाता है ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके और पीड़ित अपना पक्ष न्यायालय में सुस्पष्ट रूप से प्रस्तुत कर सके। कई बार ऐसी घटनाएं भी हुईं हैं कि पीड़ित को दोषी करार देकर 151 में बंद कर दिया गया व आरोप लगाया गया कि अकेले पीड़ित ने थाने में ‘ऐलान-ए-जंग कर दिया। ऐसी नाजुक परिस्थितियों में सच को सामने लाने का एकमात्र जरिया सीसीटीवी ही है। यह सीसीटीवी कैमरा जनता के टेक्स के पैसों से लगाया जाता है ताकि राजस्थान की शानदार पुलिससिंग का इकबाल हमेशा बुलंद रह सकें व आजमन मे ंभी विश्वास की उसकी भावन का संचार होता रह सके। इन कैमरों की मेंटेनेंस से लेकिन सूचना मांगे जाने तक का खर्चा भी जनता के टेक्स के पैसों से ही होता है।
इन कैमरों के संचालन के लिए स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की एक एसओपी बनी हुई है। हर थाने में दो-दो पुलिसकर्मियों को इनके संचालन की ट्रेनिंग भी दे दी गई है। थाने में किस-किस जगह पर कैमरे लगने हैं, यह भी खुद पुलिस स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने मानक के रूप के तय कर रखा है।

जब मांगते हैं फुटेज तो सामने आते हैं तरह-तरह के बहाने
जब सीसीटीवी जनता के टेक्स से, जनता के लिए लगाए जाते हैं तो फिर उनके फुटेज भी जनता को तत्काल मिल जाने चाहिए लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता है। सीसीटवी फुटेज मांगने पर अव्वल तो सीधे ही मना कर दिया जाता है। लेकिन जब आरटीआई में सूचना देने की बाध्यता होती है तो भी तरह-तरह से बचने की गलियां निकल ली जाती हैं। बहाने बनाते हैं कि सीसीटीवी कैमरे खराब है। हार्ड डिस्क फुल हो गई है। हार्ड डिस्क खराब हो गई है। इसके अलावा अन्य तकनीकी बहाने बनाते हैं। कभी-कभी कहा जाता है कि सूचना गोपनीय है इसलिए नहीं दे सकते। थाने मे विश्वसनीय मुखबिरों का आना जाना लगा रहता है जिनकी पहचान सीसीटीवी फुटेज देने से उजागर हो सकती है। थाने के शस्त्रागार में पड़े शस्त्रों के बट नम्बर व बॉडी नम्बर की जानकारी सार्वजनिक हो सकती है। किस पुलिस अधिकारी के पास किस समय कौन सा शस्त्र रहता है उसकी पहचान सार्वजनिक होने से राज्य की सुरक्षा को खतरा पैदा हो सकता है। थाने में गिरफ्तार आरोपियों ,अभियुक्तों की पहचान व सीसीटीवी फुटेज देने से सार्वजनिक हो सकती है। साक्षी गणों की पहचान सार्वजनिक होने से आरोपी पक्ष द्वारा उन्हें धमकाया जा सकता है। थाने में जब्तशुदा माल की जानकारी सार्वजनिक हो सकती है।

अधिकारी खुद कह रहे, सूचना नहीं मिले तो अपील कर लें
सीसीटीवी फुटेज को आवेदक को प्रदान करना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। यह उतना ही आसान काम है जितना कि किसी भी वीडियो या सूचना को एक क्लिक में मिनटों में एक डिवाइस से दूसरी में ट्रांसफर करना है। लेकिन जब दाल में कुछ काला होता है या पूरा दाल ही काली होती है तब पोल खुलने का डर रहता है। ऐसे में सूचनाओं के उन सभी सिरों की निगरानी की जाती है जहां से सच के लीक हो जाने की संभावना रहती है। थानों के सीसीटीवी फुटेज के मामलो में शत प्रतिशत यह अनुभव रहा है कि प्रथम अपील की एसपी स्तर पर सुनवाई नहीं की जाती है। जवाब ही नहीं दिया जाता हैं। जब मामला राज्य सूचना आयोग में पहुंचता है तो 18 महीने की डेटा स्टोरेज की मानक सुरक्षित अवधि से पहले ही डेटा डिलीट होना बता दिया जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि सूचना प्रारंभिक तौर पर दी ही न हीं जाती है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का परमजीतसिंह बनाम बलजीतसिंह, स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के दिशा निर्देश, आदेश, राज्य सूचना आयोग के तीन आदेशों की नजीर ली जा सकती है। स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने हाल ही में बताया कि उसका सीसीटीवी फुटेज हर हाल में देने का आदेश खबर लिखे जाने तक प्रभावी है व उसके निरस्त नहीं किया गया है।


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By desk 24newsupdate

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