- साध्वी जयदर्शिता श्रीजी ससंघ का आयड़ तीर्थ में हुआ चातुर्मासिक मंगल प्रवेश
- सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं ने गउली बनाकर की अगवानी, हुई धर्मसभा
24 News Update उदयपुर। तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में कच्छवागड़ देशोद्धारक अध्यात्मयोगी आचार्य श्रीमद विजय कला पूर्ण सूरीश्वर महाराज के शिष्य गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद विजय कल्पतरु सुरीश्वर महाराज के आज्ञावर्तिनी वात्सलयवारिधि जीतप्रज्ञा महाराज की शिष्या गुरुअंतेवासिनी, कला पूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता श्रीजी, जिनरसा श्रीजी, जिनदर्शिता श्रीजी व जिनमुद्रा श्रीजी महाराज आदि ठाणा आदि ठाणा का शनिवार को चातुर्मासिक मंगल प्रवेश आयड़ तीर्थ में हुआ।
महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि साध्वी जयदर्शिता श्रीजी आदि ठाणा शनिवार 28 जून को सुबह 7 बजे धुलकोट मंदिर से गाजे-बाजे के साथ तपोगम की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ में चातुर्मासिक मंगल प्रवेश किया। नाहर ने बताया कि सैकड़ो श्रावक-श्राविकाओं की अगवानी में साध्वी संघ का जगह-जगह मार्ग में गऊली बनाकर स्वागत किया। वहीं सभी जगह श्रावकों को द्वारा स्वागत द्वार लगवाए गए। जैसे साध्वी संघ धूलकोट स्थित मंदिर से गाजे-बाजे के साथ आगे बढ़े तो जैन धर्म के जयकारे से पूरा मार्ग गुजायमान हो उठा। प्रवेश यात्रा में सबसे आगे बैण्ड अपनी स्वर लहरियां बिखरते हुए चले रहे थे उसके पिछे स्थानीय जैन संघ के बैण्ड जयघोष लगाते हुए चल रहे थे उसके पिछे साध्वी संघ एवं उनके बाद सैकड़ों की संख्या में श्रावक-श्राविकाएं जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। प्रवेश के बाद सामैया समूह चैत्यवन्दन का आयोजन हुआ। उसके बाद उपाश्रय में प्रेरक प्रवचन एवं संगीतकार द्वारा स्वागतगीत का आयोजन हुआ।
इस दौरान आत्म वल्लभ सभागार में आयोजित धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता श्रीजी ने प्रवचन में कहां कि भगवान की आज्ञा का पालन करना ही श्रावक-श्राविकाओं का कर्तव्य है। शरीर में प्राण नहीं तो शरीर कलेवर है। धर्म क्रिया में भगवान की आज्ञा का पक्षपात नहीं तो धर्मक्रिया ही निष्प्राण है। विद्या प्राप्त करनी है तो प्रमाद छोडऩा होगा। प्रमाद छोड़ बिना कभी आध्यात्मिक हो या भौतिक किसी तरह की विद्या की प्राप्ति नहीं हो सकती है। धर्मसभा में जिनशासन की आराधना व साधना करते हुए आसन व मुद्रा किस तरह होनी चाहिए इस बारे में समझाया। उन्होंने कहा कि बिना आसन व मुद्रा के कोई आराधना नहीं हो सकती। बिना आसन के मुद्रा भी फेल हो जाती है। मुद्रा व आसन का करीबी सम्बन्ध है।
इस अवसर पर उपाध्यक्ष भोपाल सिंह परमार, कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया, राजेन्द्र जवेरिया, अशोक जैन, प्रकाश नागोरी, सतीश कच्छारा, चतर सिंह पामेचा, राज लोढ़ा, आर के चतुर, हिम्मत मुर्डिया, भोपाल सिंह दलाल, यशवंत पोरवाल, राजीव सुराणा, चन्द्र सिंह सुराणा, चन्द्र सिंह बोल्या, अशोक धुपिया, गोर्वधन सिंह बोल्या, कैलाश मुर्डिया, दिनेश बापना, दिलीप चेलावत, नरेन्द्र ध्ुापिया, पवन जैन, महेश मेहता, नरेन्द्र महेता, पारस पोखरना, पाश्र्व वल्लभ सेवा मण्डल, ऋषभ भक्ति मण्डल, सपना बड़ाला ने गीता प्रस्त्ुत किए।
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