-उच्च न्यायालय द्वारा 30 मई 2024 को सुखाडिया विश्वविद्यालय के पक्ष में निर्णय होने के बाद भी नहीं हो रही कार्रवाई
-सुखाडिया विश्वविद्यालय को जमीन की आवश्यकता
24 News Update उदयपुर। सांसद डॉ मन्नालाल रावत ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पत्र लिखकर मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के लिए अवाप्तिधीन 14.5900 हेक्टेयर भूमि पर अवैध कब्जा व अनाधिकृत निर्माण करने वाले लोगों पर कार्रवाई करने तथा भूमि का कब्जा मुक्त करवाने की मांग की है।
सांसद डॉ रावत ने पत्र में लिखा कि राजस्थान सरकार द्वारा 3 अक्टूबर 1981 को मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर के विकास के लिए चम्पा बाग एवं निरंजनी अखाड़ा की 14.5900 हेक्टेयर भूमि अवाप्ति के संबंध में अधिसूचना राजस्थान भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1953 की धारा 4 की उपधारा 1 के अंतर्गत जारी की गई, जिसका राजस्थान राजपत्र (गजट) में प्रकाशन 30 अक्टूबर 1981 को किया गया। उच्च न्यायालय राजस्थान की खंडपीठ द्वारा चम्पा बाग की अवाप्तिधीन भूमि के संबंध में 30 मई 2024 को विश्वविद्यालय के पक्ष में निर्णय जारी करते हुए पूर्व में प्रभावी समस्त अपीलों व स्थगन आदेशों को रद्द किया। अतः वर्तमान में उक्त विश्वविद्यालय हेतु अवाप्तिधीन चम्पा बाग की भूमि पर किसी प्रकार का स्थगन आदेश प्रभावी नहीं है। खंडपीठ द्वारा 3 अक्टूबर 1981 को राजस्थान भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1953 की धारा 4(1) के अंतर्गत चम्पा बाग भूमि की अवाप्ति के संबंध में जारी अधिसूचना को भी वैध माना गया।
स्थगन आदेशों के प्रभावी होने के पश्चात भी विश्वविद्यालय के लिए अवाप्तिधीन चम्पा बाग की भूमि पर अवाप्ति प्रक्रिया को बाधित करने न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर अवैध रूप से कब्जा करते हुए अनाधिकृत भवन निर्माण, अवैध वाटिकाओं का विकास, अवैध रूप से निजी सड़कों का निर्माण इत्यादि किया गया है। उक्त भूमि पर उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश के प्रभावी होने की वजह से किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य, वाणिज्यिक प्रयोजन, भवन निर्माण स्वीकृति भू-उपयोग रूपांतरण, क्रय-विक्रय निषेध था, अतः उक्त अवैध निर्माण कर माननीय उच्च न्यायालय की अवमानना की गई है।
सांसद डॉ रावत ने पत्र में लिखा कि गत वर्षों में जनजाति बाहुल्य उदयपुर संभाग में छात्रों की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी के कारण विश्वविद्यालय को वर्तमान एवं भविष्य की जरूरतों के लिए संसाधनों की नितांत आवश्यकता है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अभाव में छात्र-छात्राओं को उदयपुर से पलायन करना पड़ रहा है। वर्ष 1981 के बाद से ही विश्वविद्यालय परिसर के विस्तार के लिए उक्त भूमि की नितांत आवश्यकता रही है, जो आज भी बरकरार है और समय समय पर इस विषय में विश्वविद्यालय द्वारा राज्य सरकार को लिखा भी जाता रहा है। वर्तमान बाजारी दरों के मूल्य के हिसाब से उक्त 14.5900 हेक्टेयर भूमि की कीमत लगभग 4000 करोड़ होना पाया गया है। इसलिए निजी पक्षकारों द्वारा मात्र यथास्थिति या स्थगन आदेश को आधार बनाते हुए न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग करते हुए विश्वविद्यालय के छात्रों के अधिकारों का हनन करने का प्रयास भी किया गया है।
सांसद डॉ रावत ने पत्र में बताया कि विश्वविद्यालय के पक्ष में जारी निर्णय के अनुसरण में भूमि अवाप्ति के लिए आवश्यक अग्रिम कार्यवाही ( एस ए के तहत आपत्तियां आमंत्रित करना) समयबद्ध रूप से पूर्ण कराई जानी चाहिए। वर्तमान में विश्वविद्यालय की उदासीनता एवं जिला कलक्टर उदयपुर द्वारा भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 5 (ए) की कार्यवाही नहीं किए जाने से उच्च न्यायालय राजस्थान की खंडपीठ के विश्वविद्यालय के पक्ष में पारित 30 मई 2024 के निर्णय का समयबद्ध तार्किक क्रियान्वयन नहीं किया जा सका है। निष्क्रियता की वजह से इस निर्णय के समयपार हो जाने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। सांसद ने कहा कि जनजाति बाहुल्य क्षेत्र में स्थित विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के सर्वागीण विकास एवं उनके लिए सुलभ, सस्ती एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कराने की दृष्टि से उक्त भूमि की महत्ती आवश्यकता है। हाल ही में मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय उदयपुर में संपादित स्थानीय निधि अंकेक्षण विभाग, उदयपुर की अंकेक्षण रिपोर्ट में भी इस संबंध में आक्षेप गठित किया गया हैं।
सांसद डॉ रावत ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री डॉ भजनलाल शर्मा से त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित करने का आग्रह किया है।
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