24 news Update उदयपुर। लगभग आठ माह तक खाली पड़े उदयपुर जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) पद पर अब स्थायी रूप से डॉ. शंकरलाल बामनिया कार्यरत रहेंगे। राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर खंडपीठ के आदेशों की अनुपालना करते हुए शनिवार को चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं निदेशालय, जयपुर ने उन्हें आहरण एवं वितरण अधिकारी (डीडीओ) पावर जारी कर दिया। इस फैसले से न केवल लंबी कानूनी लड़ाई का पटाक्षेप हुआ बल्कि उदयपुर चिकित्सा विभाग को भी महीनों बाद नियमित नेतृत्व प्राप्त हो गया।
जनवरी में ट्रांसफर और डिमोशन, शिकायतों पर कार्रवाई
प्रकरण के अनुसार, जनवरी 2025 में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने डॉ. बामनिया का प्रतापगढ़ जिला अस्पताल में उप नियंत्रक पद पर डिमोशन के साथ ट्रांसफर कर दिया था। यह कार्रवाई विभिन्न शिकायतों के आधार पर की गई थी। डॉ. बामनिया ने इसे दंडात्मक ट्रांसफर बताते हुए कहा कि यह निर्णय प्रशासनिक कारणों या जनहित में नहीं था, बल्कि विभागीय राजनीति और व्यक्तिगत दुर्भावना का परिणाम था।
उनके खिलाफ की गई शिकायतें मुख्य रूप से डॉ. आशुतोष सिंघल, डॉ. निधि यादव, डॉ. मुकेश अटल और डॉ. अशोक आदित्य द्वारा की गई थीं। जांच रिपोर्ट में सामने आया कि शिकायतकर्ताओं के खिलाफ स्वयं विभागीय कार्रवाई प्रस्तावित थी और ये सभी चिकित्सक डॉ. बामनिया के अधीन कार्यरत थे। आरोप लगाया गया कि सीएमएचओ पद पाने की लालसा में इन चिकित्सकों ने मिलकर झूठी शिकायतें दर्ज कराईं।
हाईकोर्ट में एकलपीठ का आदेश, फिर खंडपीठ में अपील
डॉ. बामनिया ने इस ट्रांसफर आदेश को हाईकोर्ट जोधपुर की एकलपीठ में चुनौती दी। एकलपीठ ने 2008 के पुराने संशोधित नियमों का हवाला देते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद डॉ. बामनिया ने तत्कालीन अधिवक्ता बी.एस. संधु के माध्यम से मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ में विशेष अपील दायर की। तीन दिन तक चली सुनवाई के पहले दिन वकीलों की हड़ताल के कारण डॉ. बामनिया ने स्वयं अदालत में पैरवी की और बताया कि उनके खिलाफ की गई कार्रवाई झूठी और दंडात्मक थी। उन्होंने 2012 के डीएसीपी संशोधित कैडर नियमों का हवाला देते हुए कहा कि डिमोशन का यह आदेश नियमों के विपरीत है।
जांच रिपोर्ट में उजागर हुआ सच
इस प्रकरण की संयुक्त निदेशक उदयपुर द्वारा गठित जांच समिति ने भी सभी शिकायतों को झूठी, मिथ्या और मनगढ़ंत पाया। इस रिपोर्ट को निदेशालय को भेज दिया गया था। अदालत में एक और नोटिस विचाराधीन था, जिसका अभिकथन भी पेश कर दिया गया।
खंडपीठ का सख्त रुख और आदेश
खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान एएजी द्वारा दिए गए झूठे एफिडेविट को गंभीरता से लिया। केस के ऑफिस इंचार्ज डॉ. बी.एल. स्वर्णकार ने अदालत में लिखित माफी मांगी। अदालत ने 9 अप्रैल 2025 को एकलपीठ का आदेश रद्द कर डॉ. बामनिया को उदयपुर सीएमएचओ पद पर पूर्ववत रखने का निर्देश दिया। इसके बाद उन्होंने 11 अप्रैल को पुनः उदयपुर सीएमएचओ का कार्यभार संभाल लिया।
डीडीओ पावर न मिलने पर अवमानना याचिका
हालांकि अप्रैल में पद संभालने के बाद भी उन्हें डीडीओ पावर जारी नहीं किया गया। इस अवधि में विभागीय कामकाज डॉ. अशोक आदित्य को अतिरिक्त प्रभार देकर कराया गया। न्यायालय के आदेश की अनुपालना न होने पर डॉ. बामनिया ने 1 सितंबर को सुनवाई के लिए अवमानना याचिका दायर की। शनिवार को सुनवाई से पहले ही निदेशालय ने आदेश जारी कर डॉ. बामनिया को डीडीओ पावर प्रदान कर दिया। अब वे पूर्ण अधिकारों के साथ उदयपुर चिकित्सा विभाग का संचालन करेंगे।
🔹 डॉ. बामनिया का कहना
डॉ. बामनिया का कहना है कि “मेरे खिलाफ की गई शिकायतें जांच में झूठी साबित हो चुकी हैं। अब न्यायालय के आदेश की अनुपालना के बाद मैं जिले के चिकित्सा विभाग को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने पर फोकस करूंगा।”
📌 मुख्य तथ्य संक्षेप में:
- जनवरी 2025: झूठी शिकायतों पर डॉ. बामनिया का प्रतापगढ़ उप नियंत्रक पद पर ट्रांसफर।
- अप्रैल 2025: हाईकोर्ट खंडपीठ ने आदेश रद्द कर उन्हें उदयपुर सीएमएचओ पद पर यथावत रखा।
- पांच माह तक डीडीओ पावर रोके रखने पर हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर।
- 31 अगस्त 2025: सरकार ने खंडपीठ के आदेश पर डीडीओ पावर जारी किया।
- उदयपुर चिकित्सा विभाग को 8 माह बाद मिला नियमित नेतृत्व।
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