पढ़िये पत्रकार सुशील जैन का विशेष विश्लेषण

24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। आज जयपुर में पार्टी मुख्यालय पर दिग्गज नेता जनता सेना सुप्रीमो रणधीरसिंह भीण्डर अपने पूरी सेना के साथ भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा में आते ही रणधीर ने 24 न्यूज अपडेट से बातचीत में कहा-मेरा 11 बरस का वनवास पूरा हुआ। अब आगे पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी, उसका निर्वहन करेंगे। आपको याद होगा कि विधानसभा चुनाव में किस तरह से ऐन वक्त तक महाराजा साहब रणधीरसिंह भीण्डर ने भाजपा को बार-बार संकेत दिया कि वे पार्टी में शामिल होना चाहते हैं लेकिन भाजपा ने हनुमान बेनिवाल की पार्टी का दामन थामे खड़े पूर्व भाजपा दिग्गज उदयलाल डांगी को पार्टी में लेकर उन पर दांव लगाया। यह दांव सफल भी रहा। तो दूसरी तरफ भीण्डर ने खुद मैदान में आने की बजाय वल्लभनगर सीट पर अपनी पत्नी दीपेन्द्र कुंवर को चुनाव मैदान में उतारा और जनता सेना के अस्तित्व की लाड़ाई को अंतिम लड़ाई का नाम देकर चुनाव लड़ा। वसुंधरा राजे खेमे से माने जाने वाले रणधीरसिंह भीण्डर की भाजपा के दिग्गज नेता रहे और असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया से अदावत के चलते भीण्डर को अलग पार्टी बनानी पड़ी। कटारिया ने हर मुमकिन प्रयास करते हुए भीण्डर को ऐसे राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसाया कि साल दर साल शह और मात का खेल चता ही रहा। इस दौरान कई बार तल्खियां भी हुईं। पिछले चुनाव में हिम्मतसिंह झाला को टिकट दिलाने में भी कटारिया की प्रमुख भूमिका रही जिससे नाराज होकर उदयलाल डांगी हनुमान बेनिवाल की पार्टी में चले गए। इसका नुकसान यह हुआ कि विधानसभा सीट कांग्रेस के खाते में चली गई।
क्या टूट गया है कटारिया का चक्रव्यूह
भीण्डर, कानोड़, वल्लभनगर सहित आस-पास के कस्बों में गहरी पैंठ रखने वाली जनता सेना के भाजपा खेमें महापड़ाव का क्या असर होगा यह तो लोकसभा चुनाव के लिटमस टेस्ट में ही साफ हो जाएगा लेकिन सबकी जुबां पर यही बात आ रही है कि क्या महाराजा साहब के भाजपा में शामिल होने को मेवाड़ की राजनीति में कटारिया के चक्रव्यूह की काट के रूप में देखा जा सकता है। क्या कटारिया का असर अब मेवाड की राजनीति में केवल मार्ग दर्शक का ही रह गया है और फैसलों की डोर कहीं किसी और के हाथों में चली गई है। पिछले 11 सालों में जो राजनीतिक विरोध की तलवारें खिंचीं क्या वो इस ज्वाइनिंग से फिर से अपनी-अपनी म्यान में चली जाएंगी या फिर यह एक नए आंतरिक युद्ध की शुरूआत होगी जिसमें विदइन पार्टी स्ट्रगल शुरू हो जाएगी। कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों के तीन-तीन अलग-अलग लवाजमों से सजी वल्लभनगर की राजनीति की कमल सेना किस प्रकार से एक कमल दल बनकर राजनीत को नई दिशा देती है, यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा।
अब कांग्रेस का क्या होगा
रणधीर सिंह भींडर टिकट नहीं मिलने पर 2013 में बागी हुए, 2018 में चुनाव हारे, 2023 में उनकी पत्नी चुनाव हारी। यही हाल भाजपा का भी हुआ क्योंकि वोट बंट गए। अब जबकि तीन पक्ष एक हो गए हैं तो ऐसे में बडा सवाल ये है कि कांग्रेस का वल्लभनगर विधानसभा सीट पर क्या वजूद रह गया है। उनका कोर वोटर भी क्या लोकसभा में उनके साथ रह पाएगा या फिर इसमें भी सेंध लग जाएगी।
जो थे विरोधी, उनको लगाना पड़ेगा गले
वल्लभनगर विधानसभा सीट पर भीण्डर के भाजपा में वापस आते ही पूरी पार्टी की आंतरिक संरचना में बदलाव करना होगा क्योंकि जनता सेना के प्रधान सहित कई जनप्रतिनिधि विभिन्न पदों पर हैं। उन्होंने तीन महीने पहले ही भाजपा के विरोध में राजनीतक झंडा बुलंद करते हुए विधानसभा चुनाव लड़ा था। वैचारिक स्तर पर भाजपा में एकाकार उन्हें किया जा सकता है लेकिन लॉजिस्टक और सबसे खास आर्थिक संसाधनों के आंतरिक अदृष्य बंटवारे के सवाल पर बर्तनों का खड़खड़ाना तय माना जा रहा है।


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By desk 24newsupdate

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