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सुविवि विवाद: कुलगुरु का इस्तीफा मगर बड़े सवाल बरकरार—जांच समिति के महान लोगों ने 2 महीने में क्या किया?? कमेटी पर होनी चाहिए कार्रवाई

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उदयपुर। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय (सुविवि) की कुलगुरु प्रोफेसर सुनीता मिश्रा का इस्तीफा तो राज्यपाल एवं कुलाधिपति हरिभाऊ किशनराव बागडे ने स्वीकार कर लिया है, लेकिन इससे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि उनके खिलाफ बनी जांच समिति की रिपोर्ट अब तक क्यों नहीं आई? समय पर जांच न होना विश्वविद्यालय प्रशासन और राजभवन दोनों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करता है।
कमेटी बनी, लेकिन रिपोर्ट नहीं आई—क्यों?
प्रो. मिश्रा के खिलाफ कई गंभीर शिकायतें मिलने के बाद उदयपुर संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय जांच कमेटी का गठन किया गया था। राज्यपाल के निर्देश पर सचिव डॉ. पृथ्वी ने बुधवार को नई उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की है, जिसमें— अध्यक्ष: प्रज्ञा केवलरमानी, संभागीय आयुक्त सदस्य: छोगाराम देवासी, अतिरिक्त संभागीय आयुक्त सुरेश कुमार जैन, वित्तीय सलाहकार, RSMML
कैलाशचंद्र स्वर्णकार, उप विधि परामर्शी, कलेक्ट्रेट डॉ. विपिन माथुर, प्रिंसिपल एवं कंट्रोलर, RNT मेडिकल कॉलेज समिति का गठन तो तेजी से हुआ, लेकिन पिछले दो महीनों में जांच की दिशा में ठोस प्रगति न दिखाई देना अब चर्चा का विषय बन गया है। विश्वविद्यालय में लगे आरोप गंभीर थे—कथित विवादित बयान, प्रशासनिक अनियमितताओं के आरोप व छात्रों के विरोध प्रदर्शन। इसके बावजूद जांच समय पर क्यों आगे नहीं बढ़ी? इस पर राजभवन भी अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है।
इस्तीफा स्वीकार, लेकिन जांच अधर में
राजभवन के नए आदेश में साफ लिखा गया है कि प्रो. मिश्रा का इस्तीफा “जांच समिति की रिपोर्ट के अधीन” स्वीकार किया गया है। इसका अर्थ यह है कि इस्तीफा तो मान लिया गया, लेकिन जांच जारी रहेगी। सवाल यह है कि अगर रिपोर्ट देरी से आएगी, तो क्या मामले का प्रभाव भी कम नहीं हो जाएगा?

जांच में देरी—विश्वविद्यालय प्रशासन पर सवाल
सुविवि के कई छात्र संगठनों और शिक्षकों का आरोप है कि जांच की प्रक्रिया सुस्त रही और इससे विवाद और बढ़ा।
इसी बीच प्रो. मिश्रा ने 14 नवंबर को व्यक्तिगत कारणों का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया, जिसे गुरुवार को राजभवन ने स्वीकार कर लिया। नई उच्च स्तरीय कमेटी से उम्मीद है कि वह लंबित रिपोर्ट जल्द प्रस्तुत करेगी। राजभवन ने भी संकेत दिए हैं कि आगे की कार्रवाई रिपोर्ट के आधार पर ही तय की जाएगी। पर अब भी सबसे बड़ा सवाल यथावत है— क्या जांच समिति देरी के कारण अपना महत्व खो रही है? और क्या विश्वविद्यालय प्रशासन इस पूरे विवाद से सीख ले पाएगा?

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