24 News Update उदयपुर। राजस्थान की सड़कों पर मौत का पहिया पहले भी घूम रहा था व अब भी। फर्क बस इतना है कि अब हादसे के बाद सरकार और आरटीओ विभाग ने “जांच” नाम की नौटंकी शुरू कर दी है। उदयपुर में जिन 15 स्लीपर बसों को सीज किया गया और 45 चालान काटे गए, वे बसें कोई परलोक से नहीं उतरीं। यही बसें रोज चल रही थीं, और इन्हें खुली छूट देने वाले वही आरटीओ अफसर आज दिखावे की कार्रवाई कर रहे हैं।
यह अभियान नहीं, अपराध पर पर्दा डालने की कवायद
जैसलमेर हादसे के बाद पूरे राज्य में चल रही यह तथाकथित चेकिंग दरअसल सिस्टम की नाकामी छिपाने की कवायद है। जो अफसर और मंत्री कल तक इन बसों की फिटनेस रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करते रहे, वही आज कैमरों के सामने सीज की कार्रवाई कर रहे हैं।
यह “एक्शन” नहीं, आत्मदोष से बचने का ड्रामा है।
आरटीओ तंत्र-भ्रष्टाचार का खुला खेल
स्लीपर बसों में जाम पड़े एग्जिट गेट, बंद फायर अलार्म, ओवरलोड कूरियर और तंग गलियारों के बीच रोज हजारों यात्री अपनी जान दांव पर लगा रहे थे। सवाल यह है कि इतने सालों से ये खामियां किसकी आंखों से छिपी रहीं?
आरटीओ के निरीक्षण विभाग में बैठे अफसर महीनों से इन बसों की फिटनेस “पास” कर रहे थे। अब वही अफसर मीडिया में फोटो खिंचवाकर खुद को ईमानदार बताने में लगे हैं। अगर सरकार ईमानदार है तो पहले इन अफसरों को निलंबित करे, न कि बसों को।
नेताओं का भी मिला-जुला खेल
आरटीओ के भ्रष्टाचार की जड़ नेताओं तक जाती है। जब बड़े नेताओं की रैलियां और सभाएं होती हैं, तो इन्हीं ट्रैवल एजेंसियों से फोकट बसें ली जाती हैं। यह सब जानते हैं। और बदले में उन्हें “कुछ भी करने की छूट” दी जाती है। यही असली नेक्सस है कृ नेता, अफसर और बस ऑपरेटर का गठजोड़, जिसने जनता की सुरक्षा को मज़ाक बना रखा है।
यात्रियों की जिंदगी इनकी डील का हिस्सा बन चुकी है।
सरकार हादसे के बाद जागती है, तब तक कई मर चुके होते हैं
हर बार हादसा होता है, सरकार “सख्त कार्रवाई” के बयान देती है, कुछ दिन चेकिंग चलती है, कुछ बसें सीज होती हैं कृ और फिर सब पहले जैसा। 22 लोग जलकर मरने के बाद शुरू हुई ये चेकिंग अगर हादसे से पहले होती, तो शायद वे आज जिंदा होते।
दिखावा नहीं, जिम्मेदारी चाहिए
राज्य सरकार को चाहिए कि वह इन सीज की गई बसों का टोल रिकॉर्ड सार्वजनिक करे। इससे साफ पता चलेगा कि ये बसें हर दिन किन मार्गों पर चलती थीं और किन अधिकारियों ने इन्हें रोकने की हिम्मत नहीं दिखाई। अगर तंत्र वाकई ईमानदार हैं, तो इस “बस माफिया-आरटीओ-नेता” गठजोड़ की सीबीआई या न्यायिक जांच कराएं। वरना यह “अभियान” सिर्फ हादसों की राख पर राजनीति चमकाने का साधन बनकर रह जाएगा।
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