24 News Update नई दिल्ली। राजधानी और एनसीआर में आवारा कुत्तों के बढ़ते मामलों को लेकर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय विशेष बेंच—जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया—ने विस्तृत सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। इससे पहले 11 अगस्त को दो जजों की बेंच ने आवारा कुत्तों को 8 हफ्तों में आवासीय इलाकों से हटाकर शेल्टर होम भेजने का आदेश दिया था, जिस पर भारी विरोध हुआ और मामला मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर विशेष बेंच को सौंपा गया।
सरकार और याचिकाकर्ताओं के तर्क
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि नसबंदी और वैक्सीनेशन से भी बच्चों पर कुत्तों के हमले पूरी तरह नहीं रुकते। उन्होंने बताया कि 2024 में देश में 37 लाख से अधिक डॉग बाइट्स के मामले और 305 रेबीज से मौतें दर्ज हुईं। उनका कहना था कि समाधान केवल नियमों में नहीं, बल्कि व्यावहारिक कदमों में है। वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने ‘प्रोजेक्ट काइंडनेस’ की ओर से दलील देते हुए कहा कि बिना पर्याप्त शेल्टर होम के आदेश लागू नहीं हो सकता। अभिषेक मनु सिंघवी ने भी यही रुख अपनाते हुए कहा कि यह आदेश “घोड़े से पहले गाड़ी रखने” जैसा है, क्योंकि ढांचागत तैयारी के बिना कुत्तों को हटाना संभव नहीं।
नगर निकायों पर अदालत की नाराज़गी
जस्टिस विक्रम नाथ ने सुनवाई के दौरान एमसीडी की निष्क्रियता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि स्थानीय अधिकारी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे। कोर्ट ने साफ किया कि आदेश के पालन में किसी भी तरह की बाधा पर सख्त कार्रवाई होगी।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इस आदेश को मानवीय और वैज्ञानिक नीति से पीछे ले जाने वाला कदम बताया, जबकि प्रियंका गांधी ने इसे अमानवीय करार दिया। मेनका गांधी ने सवाल उठाया कि दिल्ली के तीन लाख कुत्तों के लिए हजारों शेल्टर होम कहां से लाएंगे।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने सुझाव दिया कि कुत्ता प्रबंधन के लिए मिलने वाला फंड सीधे अनुभवी एनजीओ को दिया जाए, क्योंकि नगर निकाय अक्सर आवंटित राशि का सही उपयोग नहीं कर पाते। सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला स्वतः संज्ञान में जुलाई 2024 में लिया था, जब लोकसभा में पशुपालन राज्य मंत्री ने बताया कि दिल्ली में छह साल की बच्ची की कुत्ते के काटने से मौत हुई थी। कोर्ट ने इसे गंभीर मानते हुए त्वरित कार्रवाई के निर्देश दिए थे।
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