24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। बरसात के मौसम में झीलों, जलीय जीवों और आम नागरिकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए विशेष सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। यह बात रविवार को आयोजित झील संवाद कार्यक्रम में विभिन्न विशेषज्ञों और समाजसेवियों ने साझा की।
जल विशेषज्ञ डॉ. अनिल मेहता ने बताया कि मानसून के दौरान सड़कों, आबादी क्षेत्रों और कैचमेंट इलाकों में जमा प्रदूषक तत्व, मल-मूत्र और कार्बनिक गंदगी झीलों और तालाबों में प्रवाहित हो जाती है, जिससे जल में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है। साथ ही लगातार बादल छाए रहने और धूप नहीं निकलने से प्रकाश संश्लेषण रुक जाता है, जिससे झीलों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और इससे बड़ी संख्या में मछलियों की मृत्यु की आशंका बढ़ जाती है।
डॉ. मेहता ने यह भी कहा कि मानसून के दौरान झीलों से सप्लाई हो रहे पेयजल की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। जलदाय विभाग को नियमित रूप से जल वितरण प्रणाली में अवशेष क्लोरीन की जांच करनी चाहिए और इसके आंकड़े नागरिकों के समक्ष सार्वजनिक किए जाने चाहिए, ताकि पानी में जीवाणु संक्रमण से बचाव हो सके।
झील विकास प्राधिकरण के पूर्व सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने सुझाव दिया कि मत्स्यकी विभाग को भी झीलों की जल गुणवत्ता का सतत आकलन करना चाहिए ताकि मछलियों की मृत्यु को रोका जा सके। साथ ही मानसून काल में मछलियों के शिकार पर रोक के नियमों की सख्ती से पालना करवाई जानी चाहिए।
समाजसेवी नंद किशोर शर्मा ने कहा कि झीलों में फ्लोटिंग फाउंटेन को चालू रखा जाना चाहिए ताकि झीलों में निरंतर ऑक्सीजन पहुंचती रहे। विशेष रूप से रात्रि काल में फाउंटेन का संचालन अनिवार्य है, क्योंकि रात में जल में ऑक्सीजन की अधिक कमी हो जाती है।
शिक्षाविद कुशल रावल ने मानसून के दौरान सड़कों और आबादी क्षेत्रों की निरंतर सफाई पर जोर देते हुए कहा कि इससे जल स्रोतों में गंदगी का प्रवेश रोका जा सकता है।
वरिष्ठ नागरिक द्रुपद सिंह ने कहा कि आम नागरिकों, होटल-रेस्टोरेंट संचालकों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और अपने परिसरों से बाहर कचरा या गंदगी नहीं जाने देनी चाहिए।
संवाद के अंत में बारी घाट पर पीपल का वृक्षारोपण कर झीलों व तालाबों के संरक्षण का संकल्प लिया गया।
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