उदयपुर। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के राणा पुंजा जनजाति छात्रावास के अधीक्षक को हटाने के आदेश के बाद जनजाति विद्यार्थियों के एक वर्ग में आक्रोश व्याप्त हो गया है। इस निर्णय के विरोध में एनएसयूआई की ओर से शनिवार को विश्वविद्यालय के कुलपति को ज्ञापन सौंपते हुए आदेश को तत्काल वापस लेने की मांग की गई।
एनएसयूआई ने ज्ञापन में बताया कि राणा पुंजा जनजाति छात्रावास के अधीक्षक डॉ. अजीत कुमार भाभोर ने विश्वविद्यालय के नियमानुसार काउंसलिंग प्रक्रिया संपन्न करवाई थी। संगठन का कहना है कि जनजाति विद्यार्थियों के लिए यह छात्रावास पहली प्राथमिकता का है और नियमानुसार कुछ छात्रों को सिंगल रूम भी आवंटित किए गए थे, जिनकी निर्धारित फीस एवं संबंधित फॉर्म उपलब्ध हैं। इसके बावजूद अधीक्षक को हटाने का आदेश जारी करना संगठन ने अनुचित बताया।
संगठन ने आरोप लगाया कि डॉ. भाभोर टीएसपी क्षेत्र से जुड़े एकमात्र अधिकारी हैं, जो जनजाति छात्रों की समस्याओं को भली-भांति समझते हैं। ऐसे में उनके विरुद्ध की गई कार्रवाई को एनएसयूआई ने जनजाति विद्यार्थियों के हितों के खिलाफ बताते हुए षड्यंत्रपूर्ण करार दिया।
ज्ञापन में यह भी उल्लेख किया गया कि वर्ष 2013 में स्थापित इस छात्रावास में वर्ष 2023 तक छात्रों की संख्या अपेक्षाकृत कम रही थी, लेकिन डॉ. भाभोर के कार्यकाल में छात्रावास का शैक्षणिक एवं अनुशासनात्मक वातावरण बेहतर हुआ, जिसके चलते वर्तमान सत्र में सबसे अधिक छात्रों ने यहां प्रवेश लिया।
एनएसयूआई ने छात्रावास की बुनियादी समस्याओं की ओर भी ध्यान आकर्षित किया। संगठन के अनुसार छात्रावास में अब तक बाउंड्री वॉल, सीसीटीवी कैमरे, सुरक्षा गार्ड, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, खिड़कियाँ और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव बना हुआ है। संगठन ने राणा पुंजा जनजाति छात्रावास में लाइब्रेरी की भी तत्काल आवश्यकता बताते हुए शीघ्र समाधान की मांग की और चेतावनी दी कि मांगों पर विचार नहीं होने की स्थिति में आंदोलन किया जाएगा।
कुछ अन्य छात्रों का पक्ष भी सामने आया
वहीं, मामले में छात्रावास से जुड़े कुछ अन्य छात्रों का पक्ष भी सामने आया है। इन छात्रों द्वारा विश्वविद्यालय प्रशासन को दी गई एक लिखित शिकायत में आरोप लगाया गया कि तत्कालीन वार्डन डॉ. अजीत कुमार भाभोर पर काउंसलिंग प्रक्रिया के दौरान अनियमितता एवं गड़बड़ियों के आरोप हैं। शिकायतकर्ताओं का कहना है कि विश्वविद्यालय की विवरणिका में छात्रावास की 92 सीटों पर प्रवेश प्रक्रिया निर्धारित थी, लेकिन लगभग 50 प्रवेश के बाद ही काउंसलिंग प्रक्रिया बंद कर दी गई और शेष छात्रों को प्रवेश देने से मना कर दिया गया।
शिकायत करने वाले छात्रों ने आशंका जताई कि शेष सीटों का उपयोग अवैध रूप से छात्रों को रखने के लिए किया जा सकता था। इस संबंध में उन्होंने लिखित शिकायत विश्वविद्यालय प्रशासन को सौंपते हुए जांच और कार्रवाई की मांग की थी।
मामले को लेकर छात्र संगठनों और शिकायतकर्ता छात्रों के बीच अलग-अलग दावे सामने आने के बाद विश्वविद्यालय परिसर में यह मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है।
Discover more from 24 News Update
Subscribe to get the latest posts sent to your email.