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राजस्थान हाईकोर्ट का अहम फैसला: POCSO मामलों में पीड़ित को पक्षकार बनाना अनिवार्य नहीं, सुनवाई का अधिकार ज़रूरी

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जोधपुर, 19 अक्टूबर 2025।
राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर ने POCSO (प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्सेज) एक्ट से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जमानत याचिकाओं में पीड़ित बच्चे या उसके अभिभावकों को पक्षकार के रूप में शामिल करना अनिवार्य नहीं है, लेकिन उन्हें सुनवाई और कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार अवश्य मिलना चाहिए।

जस्टिस संदीप शाह ने यह निर्णय श्रीगंगानगर जिले के एक मामले में सुनाया, जिसमें आरोपी हनुमानगढ़ जिला जेल में बंद हैं। आरोपी ने स्पेशल जज (POCSO एक्ट) द्वारा खारिज की गई जमानत याचिका के खिलाफ हाईकोर्ट में आवेदन किया था।


मामले की पृष्ठभूमि

दूसरी ओर, सरकारी वकील ने तर्क दिया कि POCSO के तहत पीड़िता या उसके अभिभावक को शामिल करना आवश्यक है।


हाईकोर्ट का निर्णय


नए दिशानिर्देश

हाईकोर्ट ने आरोपी और पीड़ित पक्ष के अधिकारों के संतुलन के लिए निम्नलिखित SOP जारी की:

  1. जमानत या अन्य आवेदन दाखिल होने पर आरोपी के वकील को सरकारी वकील को याचिका और आवश्यक दस्तावेज भेजने होंगे।
  2. सरकारी वकील तुरंत जांच अधिकारी/थाना प्रभारी को सूचना भेजेगा ताकि पीड़ित के अभिभावक को मामले की जानकारी मिल सके।
  3. सूचना देने वाला अधिकारी सादे कपड़ों में होगा, ताकि पीड़ित और परिवार पर अनावश्यक ध्यान न पड़े।
  4. पीड़ित परिवार को कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाएगी; यदि वे वकील नहीं रख सकते तो राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण वकील उपलब्ध कराएगा।
  5. सूचना लिखित रूप में दी जाएगी, और प्राप्ति का प्रमाण सरकारी वकील को भेजा जाएगा।
  6. जिन मामलों में सेवा नहीं हो पाई, कोर्ट मामले के आधार पर निर्णय ले सकता है।

आगे की कार्यवाही


यह फैसला POCSO मामलों में पीड़ितों की सुरक्षा और गोपनीयता को सर्वोपरि रखते हुए आरोपी के कानूनी अधिकारों के साथ संतुलन बनाने का उदाहरण है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि पक्षकार बनाना अनिवार्य नहीं है, लेकिन सुनवाई में भागीदारी और जानकारी देना अनिवार्य है। यह निर्णय भविष्य में ऐसे मामलों की कार्यवाही के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) स्थापित करेगा।

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