24 News Udpate लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक महत्त्वपूर्ण आदेश में स्पष्ट किया है कि आपराधिक मामलों में पुराने वकील की अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) देना केवल “सदाचार की परंपरागत प्रक्रिया” है, कोई कानूनी शर्त नहीं। अदालत ने कहा कि जीवन और स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में आरोपी को अपनी पसंद के वकील से प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार किसी तकनीकी औपचारिकता से दब नहीं सकता।
न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान और न्यायमूर्ति अभयदेश कुमार चौधारी की खंडपीठ ने यह सिद्धांत दहेज मृत्यु के एक पुराने प्रकरण में दूसरी जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान स्थापित किया। अदालत का यह अवलोकन भविष्य में क्रिमिनल मामलों में NOC को लेकर होने वाले विवादों को साफ दिशा देगा।
“एनओसी वकील का अधिकार नहीं, आरोपी के मौलिक अधिकार से ऊपर नहीं”
पीठ ने कहा कि— “पूर्व वकील से एनओसी लेना परंपरागत सदाचार है, पर यह किसी प्रकार का वैधानिक अधिकार नहीं। आपराधिक न्याय व्यवस्था में एनओसी के नाम पर जमानत सुनवाई को रोका नहीं जा सकता।”
अदालत ने अनुच्छेद 22(1) तथा दंड प्रक्रिया संहिता की धाराएँ 303 और 41D का हवाला देते हुए याद दिलाया कि आरोपी को अपनी पसंद के अधिवक्ता से प्रतिनिधित्व कराने का मौलिक अवसर प्राप्त है।
समाजसेवी संस्था से जुड़ी वकील को पूर्व वकील ने NOC देने से मना किया था
इस मामले में आजीवन कारावास भुगत रही मनोरमा शुक्ला की ओर से वकालतनामा अधिवक्ता ज्योति राजपूत ने दाखिल किया था, जो एक सामाजिक संस्था से जुड़कर निःशुल्क कानूनी सहायता दे रही थीं।
हालाँकि, पुराने वकील ने एनओसी देने से साफ इनकार किया।
अदालत ने इस व्यवहार पर टिप्पणी करते हुए कहा कि— “ऐसे मामलों में एनओसी मांगना आरोपी के मूल अधिकार के प्रतिकूल परिणाम दे सकता है। पुराने वकील की नापसंदगी या असहमति किसी आरोपी की स्वतंत्रता को बाधित नहीं कर सकती।”
एनजीओ की भूमिका पर हाईकोर्ट की सीमित सहमति
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई गैर-सरकारी संस्था स्वतः अपराध मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती, “परंतु जरूरतमंदों को प्रभावी कानूनी सहायता उपलब्ध कराने में सहयोग करना उनकी सामाजिक भूमिका है, और यही इस मामले में हुआ।”
13 वर्ष से जेल में बंद सास को राहत; अदालत ने साक्ष्यों की कमजोरी देखी
अदालत ने पाया कि अपीलकर्ता मनोरमा शुक्ला (मृतका की सास):
लगभग 13 वर्षों से जेल में हैं,
उनके विरुद्ध प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य नहीं,
और उन्हें अनुमान तथा परिस्थितिजन्य तत्वों पर दोषी ठहराया गया था।
साथ ही सहअभियुक्तों की अपीलें भी अभी सुनवाई योग्य स्थिति में नहीं हैं, जिससे शीघ्र निपटारा संभव नहीं। इन परिस्थितियों को देखते हुए अदालत ने उनकी जमानत याचिका स्वीकार की और ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाया गया जुर्माना भी स्थगित कर दिया।
मानवीय आधार पर सराहना: निःस्वार्थ सेवा देने वाली वकील को मानदेय
अदालत ने निःशुल्क कानूनी सहायता देने वाली अधिवक्ता ज्योति राजपूत की सेवा को “न्याय मित्र सदृश्य योगदान” मानते हुए
हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति को 11,000 रुपये मानदेय जारी करने का निर्देश दिया।
मुख्य अपील की सुनवाई जनवरी 2026 में होगी।
कानूनी महत्व
इस फैसले का प्रभाव यह होगा कि— पुराने वकील की नाराज़गी के कारण जमानत सुनवाई अटकी नहीं रहेगी। NOC की बाध्यता हटने से गरीब, निराश्रित और जेल से वकालतनामा भेजने वाले आरोपियों को राहत मिलेगी। यह आदेश आपराधिक न्याय प्रणाली में मौलिक अधिकार को तकनीकी प्रक्रियाओं पर सर्वोच्च स्थापित करता है।

