24 News Update उदयपुर। राजस्थान के कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा जब खुद मैदान में उतरकर उदयपुर की खाद फैक्ट्रियों पर छापे डालने पहुंचे और मिलावट की परतें उघाड़ीं, तो एक बड़ा सवाल खड़ा हुआ — क्या विभागीय अधिकारी और जिला प्रशासन आंखें मूंदे बैठे थे? क्या यह माना जाए कि यदि मंत्री खुद जांच न करें, तो मिलावटी खाद चुपचाप किसानों के खेतों में पहुंचती रहे?
कृषि मंत्री की टीम ने दो दिनों में उमरड़ा और मावली क्षेत्र की करीब सात फैक्ट्रियों पर जांच की, जिनमें घटिया SSP खाद, सल्फ्यूरिक एसिड की खराब क्वालिटी और मानकों से कम कंटेंट पाए गए। गुरुवार को जहां पांच फैक्ट्रियों की जांच हुई, वहीं शुक्रवार को खेमली और अरावली फॉस्फेट लिमिटेड में सैंपलिंग और दस्तावेज जांच की गई।
विभाग क्या कर रहा था इतने समय से?
यदि मंत्री को खुद मैदान में उतरना पड़े, तो यह प्रदेश के खाद्य और उर्वरक निरीक्षण तंत्र की संभावित निष्क्रियता या मिलीभगत की ओर इशारा करता है। वर्षों से खाद फैक्ट्रियों में घटिया उत्पादन हो रहा था, लेकिन स्थानीय कृषि अधिकारी, खाद निरीक्षक, उर्वरक कंट्रोल यूनिट और जिला प्रशासन क्या कर रहा था?
क्या उदयपुर बनता जा रहा है अवैध कारोबारियों का गढ़?
यह कोई पहला मामला नहीं है जब उदयपुर की पहचान को किसी अवैध धंधे ने धूमिल किया हो। ड्रग्स तस्करी के बड़े रैकेट पकड़े जा चुके हैं। भू-माफिया खुलेआम सरकारी और वन भूमि पर कब्जा कर रहे हैं। झीलों के किनारे अतिक्रमण और निर्माण जारी हैं। पहाड़ों की अवैध कटाई से पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है। और अब खाद में मिलावट जैसे मामलों से किसानों की रीढ़ पर वार हो रहा है। क्या उदयपुर अब दो नंबर के धंधों, दलालों, माफियाओं और भ्रष्ट गठजोड़ का केंद्र बनता जा रहा है?
मंत्री ने मचाई हलचल, लेकिन जवाबदेही अब तय होनी चाहिए
डॉ. मीणा ने गुरुवार को साफ कहा था कि “पत्थर गलते नहीं, घटिया सल्फ्यूरिक एसिड डाला जाता है। यह SSP खाद किसानों के किसी काम की नहीं।”
जब यह सब सरेआम हो रहा था, तो कृषि विभाग की स्थानीय यूनिट, उर्वरक लाइसेंसिंग अथॉरिटी, और डीएम, एसडीएम जैसे अधिकारी क्या कर रहे थे?
अब चाहिए जवाबदेही, सिर्फ कार्रवाई नहीं
जांच के सैंपल रिपोर्ट आने के बाद दोषी फैक्ट्रियों पर कार्रवाई होना जरूरी है, लेकिन उतना ही जरूरी है कि इस पूरे नेटवर्क को संरक्षण देने वाले अधिकारियों की भी जांच हो। यदि खाद में मिलावट हो रही थी, तो वह सिर्फ फैक्ट्री की गलती नहीं, बल्कि एक पूरा सिस्टम फेल हुआ है — जो या तो नकारा है, या समझौता कर चुका है।
मुख्य सवाल जो उठते हैं
विभागीय अधिकारी कब से इस मिलावट को नजरअंदाज कर रहे थे? क्या मंत्री के दौरे के बिना ये जांच संभव नहीं थी? जिले में खाद, ड्रग्स, भू-माफिया, झील माफिया — हर दिशा में क्यों फल-फूल रहा है अपराध? क्या उदयपुर की प्रतिष्ठा अब भ्रष्ट और अवैध गठबंधनों की गिरफ्त में है?
| फैक्ट्री का नाम | फेल सैंपलों की संख्या |
|---|---|
| कोरोमंडल | 29 |
| रामा फास्फेट | 15 |
| जुब्लीएंट | 12 |
| भूमि | 8 |
| पटेल | 7 |
| साधना | 6 |
| अदिशा | 5 |
| ब्लू फास्फेट | 5 |
| टेस्टरा | 5 |
| कुल योग (Total) | 92 |
👉 पूरे प्रदेश में 600+ सैंपल लिए गए थे, जिनमें से लगभग 115 सैंपल फेल हुए — इनमें से उदयपुर की 9 फैक्ट्रियों के कुल 92 सैंपल फेल पाए गए, जो कि प्रदेश के कुल फेल सैंपलों का 80% से अधिक है।

