24 न्यूज अपडेट उदयपुर। विधि महाविद्यालय, उदयपुर में आज संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की 134वीं जयंती के अवसर पर एक विचारगर्भित समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर विभिन्न प्राध्यापकों, विद्यार्थियों एवं विश्वविद्यालय प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में डॉ. अंबेडकर के जीवन और उनके योगदान को श्रद्धांजलि स्वरूप स्मरण किया गया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. भाविक पानेरी ने करते हुए डॉ. अंबेडकर के जीवन के प्रमुख पड़ावों का संक्षिप्त परिचय दिया और उन्हें भारत के सामाजिक न्याय आंदोलन का प्रणेता बताया। उन्होंने कहा कि, “डॉ. अंबेडकर ने अपने ज्ञान, संघर्ष और दूरदर्शिता से भारत को न केवल संविधान दिया, बल्कि एक नई सामाजिक चेतना भी दी।“


विधि महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रो. आनंद पालीवाल ने डॉ. अंबेडकर के बहुआयामी योगदान को रेखांकित करते हुए कहा, “डॉ. अंबेडकर का दृष्टिकोण महज़ संवैधानिक नहीं था, वह सामाजिक पुनर्रचना की एक सशक्त परियोजना भी था। उन्होंने न केवल शोषित वर्गों की आवाज़ बनकर कार्य किया, बल्कि राष्ट्र के समग्र लोकतांत्रिक विकास की नींव रखी।” प्रो. पालीवाल ने स्पष्ट किया कि सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता और बंधुत्व को बिना किसी दिखावे के संविधान की आत्मा में समाहित करना एक क्रांतिकारी सोच थी। उन्होंने कहा, “बंधुत्व केवल एक भावनात्मक विचार नहीं, बल्कि यह भारतीय समाज की विविधता में एकता बनाए रखने की अनिवार्य शर्त है। अंबेडकर जी की सोच आज भी हमारे लिए पथप्रदर्शक है, खासकर जब हम सामाजिक असमानताओं को मिटाने की बात करते हैं।”


प्रो. पालीवाल ने छात्रों से अपील की कि वे केवल कानूनी ज्ञान तक सीमित न रहें, बल्कि संविधान की आत्मा को समझें, उसका प्रयोग करें, और समाज में सकारात्मक बदलाव लाएं। मुख्य वक्ता माननीय कुलपति प्रो. सुनीता मिश्रा ने भी इस अवसर पर गहन व विचारशील उद्बोधन दिया। उन्होंने डॉ. अंबेडकर के जीवन-संघर्षों को स्मरण करते हुए कहा, “अंबेडकर जी का जीवन संदेश देता है कि अगर व्यक्ति में दृढ़ निश्चय, श्रम और शिक्षा के प्रति समर्पण हो, तो वह किसी भी परिस्थिति को बदल सकता है। उन्होंने सामाजिक व्यवस्था की उस गहराई में जाकर काम किया जहाँ से आमतौर पर परिवर्तन की बात करना भी कठिन होता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि, “डॉ. अंबेडकर की सबसे बड़ी विशेषता थी कि उन्होंने पीड़ा को शक्ति में बदला और उस शक्ति का उपयोग पूरे समाज को ऊपर उठाने में किया। उनके विचार किसी एक वर्ग तक सीमित नहीं हैं, वे पूरे भारत की आत्मा हैं।”
प्रो. मिश्रा ने विद्यार्थियों को संविधान के अनुच्छेदों के केवल शाब्दिक अध्ययन से आगे जाकर उसमें निहित आदर्शों और मूल्यों को आत्मसात करने का आह्वान किया।


मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉ. वी.सी. गर्ग ने कहा कि “संविधान निर्माण एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक सामाजिक सौंदर्यशास्त्र था, जिसमें अंबेडकर ने समानता, स्वतंत्रता और न्याय को गहरे अर्थों में गूंथ कर एक नैतिक दस्तावेज रचा। यह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था।”
डॉ. राजश्री चौधरी ने अंत में धन्यवाद ज्ञापन देते हुए कहा कि, “आज के इस आयोजन ने न केवल डॉ. अंबेडकर को श्रद्धांजलि दी, बल्कि हमें यह सोचने पर भी विवश किया कि हम उनके विचारों को अपने आचरण में किस हद तक उतार पा रहे हैं। ”समारोह का समापन डॉ. अंबेडकर के प्रेरणादायी संदेश दृ “शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो” के साथ हुआ, जिसे सभी ने एक स्वर में दोहराया और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना का संकल्प लिया। इस अवसर पर विधि महाविद्यालय के संकाय सदस्य डॉ. पी.डी. नागदा, डॉ. कल्पेश निकावत, डॉ. पंकज भट्ट, डॉ. पंकज मीणा सहित अनेक छात्र-छात्राएं और गणमान्यजन उपस्थित थे।


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By desk 24newsupdate

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