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राजस्थान हाईकोर्ट में सरकारी वकील द्वारा अपनी जगह दूसरे वकील को भेजने पर विवाद, अदालत ने सरकार से पूछा- क्या कोई भी वकील सरकारी वकील की जगह पैरवी कर सकता है?

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24 News Update जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट में एक दिलचस्प घटना सामने आई, जहां एक सरकारी वकील ने अपनी अनुपस्थिति में अपनी जगह दूसरे वकील को अदालत में बहस करने के लिए भेज दिया। यह मामला उस समय उजागर हुआ जब न्यायालय में चल रही सुनवाई के दौरान अदालत के संज्ञान में आया कि वकील जो बहस कर रहे थे, वह सरकार के नियमित वकील नहीं थे। यह मामला जयपुर स्थित एक संपत्ति से संबंधित था, जिस पर सरकार ने एक द्वितीय अपील दायर की थी। सुनवाई के दौरान जस्टिस गणेश राम मीणा की अदालत में यह मामला प्रस्तुत था। इस मामले में सरकारी वकील की अनुपस्थिति में एक अन्य वकील ने पैरवी करना शुरू किया।
अदालत ने देखा कि वकील जो मामले में बहस कर रहे थे, वह सरकारी वकील नहीं थे, और उन्होंने सीधे ही वकील से पूछा, “क्या आप सरकारी वकील हैं?” इस पर वकील ने जवाब दिया, “नहीं, मैं अतिरिक्त राजकीय अधिवक्ता के सहायक के तौर पर सरकारी वकील की जगह पर बहस कर रहा हूं।”
अदालत का सवाल और सरकार से प्रतिक्रिया
अदालत ने यह सुनकर सरकार से एक महत्वपूर्ण सवाल पूछा: “क्या कोई भी वकील, सरकारी वकील की जगह अदालत में सरकार की ओर से पैरवी कर सकता है?” यह सवाल इस बात को लेकर था कि क्या यह उचित है कि कोई अन्य वकील, जो सरकारी वकील द्वारा नियु्क्त नहीं किया गया हो, सरकारी मामलों में पैरवी करें। इसके बाद, विधि विभाग के प्रमुख सचिव ने अदालत को शपथ पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया कि सरकारी मामलों में केवल वही वकील पैरवी कर सकते हैं जिन्हें सरकार ने नियुक्त किया है। इसका मतलब है कि किसी भी अन्य वकील को, जो सरकारी वकील के रूप में नियुक्त नहीं है, सरकार की ओर से किसी भी मामले में पैरवी करने का अधिकार नहीं है। सरकारी वकील द्वारा अपनी जगह दूसरे वकील को भेजने का यह मामला तब गंभीर हो गया जब यह सामने आया कि अतिरिक्त महाधिवक्ता का सहायक, जो जूनियर वकील है, उसे किसी भी स्थिति में मुख्य सरकारी वकील की जगह पर बहस करने की अनुमति नहीं है। यह कानूनी और प्रशासनिक दृष्टि से एक गंभीर उल्लंघन था, क्योंकि यह सरकारी वकील की जिम्मेदारी थी कि वह खुद या अपनी नियुक्ति के अनुसार किसी सक्षम वकील को अदालत में भेजे। सरकार ने अपनी तरफ से इस मामले में जवाब देते हुए स्पष्ट किया कि “अतिरिक्त महाधिवक्ता का सहायक केवल मामले को स्थगित करने, तारीख लेने, या नोटिस रिसीव करने जैसे प्रशासनिक कार्य कर सकता है, लेकिन किसी भी हालत में उसे सरकार के पक्ष से बहस करने की अनुमति नहीं है।” सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया और सरकारी वकील से यह पूछा कि उन्होंने अपनी जगह दूसरे वकील को क्यों भेजा। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में समय-समय पर जारी किए गए सर्कुलरों में यह निर्देश दिया गया था कि केवल नियुक्त सरकारी वकील ही किसी मामले की पैरवी कर सकते हैं, और अन्य वकीलों को इस अनुमति का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। सरकार ने अपने जवाब में यह जानकारी भी अदालत के समक्ष प्रस्तुत की कि ऐसे मामलों में सरकार का रुख बिल्कुल स्पष्ट है, और सरकारी वकील की जगह कोई अन्य वकील बहस नहीं कर सकता है। अदालत ने इस घटना के बाद विधि विभाग से शपथ पत्र प्राप्त किया, जिसमें कहा गया कि सरकार के किसी भी मामले में केवल वही वकील पैरवी कर सकते हैं जिन्हें सरकार ने नियुक्त किया है। अदालत ने यह भी कहा कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि सरकारी मामलों में कोई भी वकील बिना उचित नियुक्ति के पैरवी न करे, क्योंकि इससे सरकारी पक्ष की सही पैरवी में दिक्कतें उत्पन्न हो सकती हैं।

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