24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। राजस्थान में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं, लेकिन अब यह इतना व्यवस्थित और संस्थागत हो चुका है कि रिश्वतखोरी सरकारी तंत्र की एक समानांतर व्यवस्था बन गई है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की 2024 की रिपोर्ट इसे स्पष्ट रूप से उजागर करती है। वर्ष भर में एसीबी ने 245 सरकारी कर्मचारियों और उनके सहयोगी दलालों को रंगे हाथों पकड़ा। इन मामलों की गहराई में जाएं तो साफ होता है कि निचले स्तर से लेकर प्रशासनिक पदों तक, हर जगह रिश्वत ने अपनी जड़ें जमा ली हैं। सबसे अधिक मामले पुलिस विभाग से जुड़े हैं, जहाँ कुल 47 अधिकारी-कर्मचारी रिश्वत लेते पकड़े गए। इनमें 16 कांस्टेबल, 14 हेड कांस्टेबल, 9 एएसआई और 8 एसआई शामिल हैं। न्याय और कानून व्यवस्था संभालने वाले इस विभाग की यह स्थिति आम नागरिकों के विश्वास पर गहरा आघात है। भ्रष्टाचार अब किसी एक विभाग या कर्मचारी तक सीमित नहीं है। यह संस्थागत व्यवस्था बन गया है जहाँ हर स्तर पर इसका विस्तार हो चुका है। पुलिस, प्रशासन, बिजली, स्वास्थ्य, राजस्व और शिक्षा जैसे सभी प्रमुख विभागों के अधिकारी इसमें शामिल हैं। सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि भ्रष्टाचार में गिरावट नहीं, बल्कि उसमें ‘चालाकी’ और ‘व्यवस्थित रणनीति’ का समावेश बढ़ा है।
राजस्व विभाग का दूसरा स्थान है जहाँ 27 पटवारी रिश्वत लेते पकड़े गए। जमीन रजिस्ट्री और नामांतरण जैसे बुनियादी कार्यों में आम आदमी को राहत मिलने की बजाय, भ्रष्टाचार की दीवार से टकराना पड़ रहा है।
बिजली वितरण निगम (डिस्कॉम) में 15 कर्मचारी जैसे लाइनमैन, जूनियर और सीनियर इंजीनियर भी बिजली कनेक्शन, बिल सुधार और मीटर संबंधी मामलों में पैसा लेते पकड़े गए। इस प्रकार, नागरिकों को ‘बिजली सुविधा’ के बदले ‘नकद सेवा’ देनी पड़ रही है।
प्रशासनिक सेवा भी इस जाल से अछूती नहीं रही। राजस्थान प्रशासनिक सेवा (त्।ै) के दो अधिकारी, 3 तहसीलदार, 2 नायब तहसीलदार और 1 नगरपालिका चेयरमैन रिश्वत लेते गिरफ्तार हुए। ये वे पद हैं जहाँ से नीति बनती है और उनका ही इस तंत्र में शामिल होना गहरी चिंता का विषय है।
पशुपालन, चिकित्सा, पीएचईडी, जल संसाधन, शिक्षा और समाज कल्याण विभाग जैसे सेवा-आधारित विभागों में भी अधिकारियों ने रिश्वत लेकर कार्य किए। स्कूल-कॉलेजों और सरकारी अस्पतालों जैसे संवेदनशील स्थानों से जुड़ी रिश्वतखोरी यह दर्शाती है कि भ्रष्टाचार अब केवल वित्तीय नहीं रहा, बल्कि मानवीय मूल्य और नैतिकता का हनन भी कर रहा है।
खास बात यह रही कि वर्ष भर में 36 दलाल जैसे ई-मित्र संचालक, सरपंच पति, निजी एजेंटकृभी रिश्वत लेते पकड़े गए। यह इस बात का संकेत है कि कई अफसर अब खुद सामने आने के बजाय इन दलालों के माध्यम से पैसे वसूलते हैं, जिससे रिश्वतखोरी एक ’ठेकेदारी सिस्टम’ में बदलती जा रही है।
यदि अब भी सरकार और समाज सजग नहीं हुआ, तो यह रिश्वत का तंत्र एक ऐसी नैतिक महामारी में बदल जाएगा, जहाँ ईमानदारी अपवाद बन जाएगी और भ्रष्टाचार एक सामान्य स्वीकृति।
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