Site icon 24 News Update

बेल का खेल : 12 साल बाद पहली बार गुरु पूर्णिमा पर जेल से बाहर आसाराम, अंतरिम जमानत 12 अगस्त तक बढ़ाई

Advertisements

24 News Update जोधपुर/अहमदाबाद। साल 2013 के बहुचर्चित नाबालिग रेप केस में उम्रकैद सजायाफ्तार रहे संत आसाराम इस बार गुरु पूर्णिमा (10 जुलाई) के मौके पर 12 वर्षों में पहली बार जेल से बाहर होगा। राजस्थान हाईकोर्ट ने सोमवार को सुनवाई में उसकी अंतरिम जमानत 12 अगस्त तक बढ़ा दी है। इससे पहले गुजरात हाईकोर्ट ने भी 3 जुलाई को हुई सुनवाई में उसे 30 दिन की राहत दी थी।
हालांकि कोर्ट ने उसकी जमानत में यह शर्त भी जोड़ी थी कि वह अपने भक्तों से नहीं मिलेगा और पुलिस निगरानी में रहेगा, लेकिन यह देखने वाली बात होगी कि इस शर्त का पालन किस हद तक होता है।
मेडिकल ग्राउंड पर बढ़ती राहतें, न्यायिक व्यवस्था पर सवाल
आसाराम फिलहाल मेडिकल ग्राउंड पर जमानत पर बाहर है। वकीलों ने उम्र (86 वर्ष) और कथित टर्मिनल बीमारी का हवाला देकर राहत की मांग की थी। गुजरात हाईकोर्ट में तो यह भी कहा गया कि उन्हें 90 दिन की पंचकर्म थेरेपी की आवश्यकता है। जबकि सरकारी पक्ष ने यह सवाल उठाया कि आसाराम इलाज के नाम पर लगातार एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल जा रहे हैं और दरअसल जेल से बाहर रहने के लिए बहानेबाजी कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख, फिर भी राहत क्यों?
गुजरात हाईकोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि “अस्थायी जमानत को बार-बार बढ़ाना अंतहीन प्रक्रिया न बने।“ सुप्रीम कोर्ट ने भी पहले यह निर्देश दिए थे कि जमानत केवल चिकित्सा कारणों तक सीमित रहे और अनुयायियों से सार्वजनिक रूप से संपर्क नहीं हो। इसके बावजूद लगातार जमानत अवधि बढ़ती जा रही है, जिससे यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या न्यायिक तंत्र की कठोरता केवल सामान्य आरोपियों तक ही सीमित है, जबकि रसूखदारों को नियमों से परे जाकर राहत दी जाती है?
अहमदाबाद आश्रम में प्रवास, अनुयायियों से मुलाकात पर संदेह
राजस्थान हाईकोर्ट से 1 जुलाई को मिली 9 जुलाई तक की जमानत के बाद आसाराम जोधपुर आश्रम से निकल कर 7 जुलाई को अहमदाबाद के मोटेरा आश्रम पहुंच गया। सूत्रों के अनुसार, वह 9 जुलाई तक वहीं रहने वाला था, लेकिन अब जब 12 अगस्त तक राहत मिल चुकी है, तो उसके मोटेरा आश्रम में ठहराव की अवधि बढ़ सकती है। हालांकि कोर्ट की शर्तों के अनुसार, वह किसी अनुयायी से सार्वजनिक रूप से नहीं मिल सकता, लेकिन क्या इस निगरानी का वास्तविक क्रियान्वयन हो रहा है, यह बड़ा सवाल है।
जनता में उठते सवालः क्या यह न्याय का मखौल नहीं?
क्या एक दुष्कर्म की सजा काट रहे व्यक्ति जो न्यायिक रूप से दोषी ठहराया जा चुका है, बार-बार मेडिकल आधार पर राहत मिलना न्याय व्यवस्था के साथ खिलवाड़ तो नहीं है? यदि आम व्यक्ति की जगह कोई और होता, तो क्या उसे इतनी बार अंतरिम जमानतें मिलतीं?

Exit mobile version