24 न्यूज अपडेट उदयपुर। आज वकीलों के प्रदर्शन ने बता दिया कि पूरा सिस्टम खोखाला हो गया है और केवल धरने प्रदर्शन की भाषा ही समझता है। एक पिता जिसके बेटे की मैग्नस अस्पताल की लापरवाही से आंखें चली गईं वो दो महीने से एसपी थाने और अस्पताल के चक्कर लगा रहा है लेकिन उसे कहीं न्याय नहीं मिल रहा है। कार्रवाई तो दूर, जांच तक नहीं हो रही है। पिता खुद एडवोकेट है उसके बावजूद यह सब हो रहा है। प्रशासन जांच करेगा तो पता चलेगा कि कौन सही है कौन गलत मगर प्रशासन जांच करवाने तक की तकलीफ नहीं उठाना चाहता। साफ है कि कोई बड़ा दबाव जरूर है। जितनी खामोशी प्रशासनिक है उतनी ही राजनीतिक भी। बच्चे की आंखें चली गईं मामला सामने आने के बाद भी कहीं से काई बयान नहीं आया, न्याय दिलाने की पहल नहीं हुई। इस मामे में पिता जब प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं व पीडा बताते हैं लेकिन फिर भी प्रशासन जांच टीम नहीं बनता। मगर जब वकील प्रदर्शन करने आते हैं तो आनन-फानन में अस्पताल की जांच करने टीम भेजी जाती है। पिता को आश्वासन मिलता है कि जब तक जांच नहीं हो जाती, अस्पताल को नहीं चलने दिया जाएगा। इससे पूर्व वकीलों को साथ लेकर नारेबाजी करते हुए आज बच्चे के परिजन और अस्पताल के अन्य पीड़ित कलेक्ट्रेट ज्ञापन देने पहुंचे व मीडिया से बातचीत में पिता एडवोकेट योगेश जोशी ने बताया कि दो महीने पहले एसपी साहब के पास गया था रिपोर्ट देने, उसके बाद मैं बड़े हॉस्पिटल के राउंड काट रहा हूं। एसपी साहब ने आश्वासन दिया कि कमेटी बनेगी, कार्रवाई होगी। सुखेर थानाधिकारी हिमांशुसिंह राजावत के पास चार-पांच चक्कर काट कर आया, एएसआई रणू खोईवाल के पास कई बार गया, हर बार कहा कि हो जाएगा, कमेटी बन जाएगी, कल बन जाएगी, रोज ऐसे करके दो महीने निकाल दिए। आज हम सब इकट्ठा हुए हैं व बहुत सारे पुराने पेशेट, मां-बाप जो पीडित हैं वो भी हमारे पास आए हैं। कलेक्टर साहब को आश्वासन दिया है व जब तक कमेटी न हीं बन जाती, तब तक हॉस्पटल को बंद किया जाएगा। यहां एडवोकेटे व बार के जनरल सेक्रेटरी योगेश शर्मा, मयूरध्वजसिंह शर्मा, पंकज तंबोली, भरत जोशी धीरज माली, अजय आचार्य, अभिषेक कोठारी, अविनाश चंदेला, भावेश जैन, अनिल धाभाई आदि की मौजूदगी रही। आपको बता दें कि मैग्नस अस्पताल में शिशु रोग विशेषज्ञ की लापरवाही से एक नवजात हमेशा के लिए अंधा हो गया। पीड़ित योगेश जोशी ने बताया कि डॉक्टर मनोज अग्रवाल ने उसका आर.ओ.पी टेस्ट नहीं लिखा व समय पर जांच नहीं होने से बच्चे की आंख की रोशनी चली गई। बच्चे की डिस्चार्ज समरी परिजनों को देते हुए बच्चे को स्वस्थ्य बताकर सौंप दिया। अब 10 माह का बच्चा पूर्ण रूप से अंधा हो चुका है जिसका हैदराबाद में इलाज हो रहा है। पहली वाली डिस्चार्ज समरी की फ़ोटो कॉपी और बाद में बदली गई डिस्चार्ज समरी में अंतर साफ देखा जा सकता है। बल्कि इस इलाज में अब तक उनके 14 लाख से ज्यादा खर्च हो चुके है।
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