24 न्यूज अपउेट. नई दिल्ली। शराब नीति केस में पिछले साल 26 फरवरी को सीबीआई और 9 मार्च को इ्रडी की ओर से गिरफ्तार हिकए गए दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट ने आज जमानत दे दी है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथ की सुप्रीम कोर्ट बैंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि केस में अब तक 400 से ज्यादा गवाह और हजारों दस्तावेज पेश किए जा चुके हैं। आने वाले दिनों में केस खत्म होने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है। ऐसे में सिसोदिया को हिरासत में रखना उनके स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा। सिसोदिया आज शाम तक जेल से बाहर आ सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट की ऑर्डर कॉपी राउज रेवेन्यू कोर्ट भेजी जाएगी। वहां 10-10 लाख का बेल बॉन्ड भरना होगा जिसके बाद रिलीज ऑर्डर तिहाड़ जेल भेजा जाएगा व सिसोदिया बाहर आएंगे। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाने से पहले जमानत को लेकर अब तक की गई कार्यवाही के बारे में बताया। निचली अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि मनीष की अर्जियों की वजह से ट्रायल शुरू होने में देरी हुई, वो सही नहीं है। इस मामले में ईडी ने 8 चार्जशीट दाखिल की हैं। जब जुलाई में जांच पूरी हो चुकी है तो ट्रायल क्यों नहीं शुरू हुआ। हाई कोर्ट और निचली अदालत ने इन तथ्यों को अनदेखा किया। ए़डिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने जमानत के दौरान कुछ पाबंदी लगाने की मांग की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि सिसोदिया पर अरविंद केजरीवाल केस की तरह शर्तें लगाई जाएं। सिसोदिया को मुख्यमंत्री कार्यालय और सचिवालय में एंट्री पर रोक लगाने की मांग की। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसे रिजेक्ट कर दिया। बेंच ने कहा कि स्वतंत्रता का मामला हर दिन मायने रखता है, इसलिए हम इसकी अनुमति नहीं दे सकते हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने 21 मई, 2024 को सिसोदिया को जमानत देने से इनकार किया था। इसके बाद वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। सिसोदिया ने अपनी याचिका में कहा था कि 2023 अक्टूबर से उनके खिलाफ मुकदमे में कोई आगे प्रगति नहीं हुई है।
जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा ——हमारे अनुभव से, हम कह सकते हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय जमानत देने के मामलों में सुरक्षित खेलने का प्रयास करते हैं। यह सिद्धांत कि जमानत एक नियम है और इनकार एक अपवाद है, कभी-कभी उल्लंघन में पालन किया जाता है… खुले और बंद मामलों में भी जमानत न दिए जाने के कारण, इस अदालत को बड़ी संख्या में जमानत याचिकाएँ मिल रही हैं, जिससे लंबित मामलों की संख्या में भारी वृद्धि हो रही है। यह सही समय है कि ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालयों को यह पहचानना चाहिए कि जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद है”, जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा ।


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By desk 24newsupdate

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