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आयड़ के गुनहगार जवाब दो : पट्टियों के नीचे सीमेंट और शीट मिलना कोर्ट के आदेश की खुली अवहेलना! जनता के पैसों की बर्बादी व विनाशलीला के लिए भाजपा-कांग्रेस जिम्मेदार, पार्टी लाइन से उपर उठकर संवेदनशील कार्यकर्ता मांगें नेताओं से ठोस जवाब, आज सवाल नहीं पूछे तो कल इतिहास माफ नहीं करेगा…..पढ़िये सुशील जैन का शोधपरक विचारोत्तेजक लेख

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24 न्यूज अपडेट उदयपुर। आयड़ नदी में पानी आते ही स्मार्ट सिटी के तहत कराए सौंदर्यीकरण के कामों की कलई खुलकर सामने आ गई है। जिला प्रशासन अपने किए कराए को सही साबित करने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहा है। कलेक्टर साहब दौरा करके कह चुके हैं-संब चंगा है। हो सकता है कल कोई एक्सपर्ट सरकारी पैनल बिठा कर इस अक्षम्य करस्तानी को सही साबित कर दिया जाए लेकिन प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या जरूरत है??? जो आंखों से दिख रहा है उसे कैसे झुठलाएंगे? जहां पानी कम पड़ा वहां घास उखड़ गई, पट्टियां उखड़ गईं। और जब पट्टियां उखड़ीं तो उनके नीचे लगाई सीमेंट और शीट दिखाई दे गई। जबकि जिला प्रशासन के कर्ताधर्ताओं ने एनजीटी कोर्ट को वचन दिया हुआ है कि हम सीमेंट का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। अब सीमेंट मिलना कोर्ट के आदेशों का खुला उल्लंघन है। एक और खास बात ये कि अब आयड़ की विनाशलीला पर एक पब्लिक फोरम बन जाना चाहिए क्योंकि भाजपा और कांग्रेस के आला नेताओं की मिलीभगत के खेल भी साफ दिखाई दे गए हैं। दोनों सरकारों में मां समान आयड़ नदी का दम घोटने का खुलकर खेल हुआ। कांग्रेस शासनकाल में काम शुरू हुआ, एनजीटी कोर्ट में जिस तरह से जवाब दिए गए, आईआईटी रूडकी के एक्सपर्ट पैनल की रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया गया वह किसी से छिपी हुई नहीं है। तब जिला कलेक्टर ताराचंद मीणा थे जो कांग्रेस के टिकट पर सांसदी का विधानसभा चुनाव भी लड़कर हारे। मीणा साहब के कार्यकाल में काम शुरू हुए जो वर्तमान जिला कलेक्टर अरविंद पोसवाल के कार्यकाल तक होते रहे। मीणा साहब स्मार्ट सिटी में भी उच्च निर्णायक पदाधिकारी रहे, उस समय के सभी विभागों ने आयड़ नदी के कामों को लेकर जो आतुरता दिखाई उसके निहितार्थ अब समझ में आते हैं। मंत्री शांति धारिवाल की रूचि भी किसी से छिपी हुई नहीं थी। तब जल संसाधन विभाग सहित अन्य विभाग क्या कर रहे थे??? या सवाल करें कि अब तक क्या कर रहे हैं?? मां समान नदी के पेटे में ऐसे प्रयोग किए गए जो दुनिया में कहीं नहीं हुए। बेचारे विशेषज्ञ चिल्लाते रह गए लेकिन भाजपा-कांग्रेस के बड़े नेताओं व कुछ लालची अफसरों की जिद के आगे सब हार गए। नदी के प्रवाह क्षेत्र में करोड़ों के विकास कार्य करवाए दिए जिनके गुरूर को खुद नदी ने एक ही बरसाती प्रवाह में चूर-चूर कर दिया है। आयड़ के विकास कामों को देख कर हर आता-जाता व्यक्ति बरसों से यही अफसोस कर रहा था कि क्या मतिभ्रष्ट हो गई है,,, प्रवाह मार्ग में आखिर क्यों जनता का पैसा बहाने पर तुले हैं लेकिन जनता नेताओं के लिए केवल वोट लेने के लिए हैं इससे ज्यादा उसकी कोई औकात नहीं है। जब सरकार पलटी व भाजपा के डबल इंजन का शासन आया तो नदी में काम और तेज हो गया। बारिश से पहले तो ऐसा लग रहा था कि डबल इंजन की कोई नोटों के बंडल ले जा रही ट्रेन छूटी जा रही हो। फटाफट काम फिनिश कर दिया गया, जैसे कोई गार्डन सजा रहे हों। पानी बहने के सवाल से बचने के लिए पत्थरों के उपर जाली लगा दी गई। ये ऐसा प्रयोग है मानों कोई यू-ट्यूबर टेस्ट करने के लिए 50 मंजिल उपर से आईफोन फेंकता है और बाद में जाकर चेक करता है कि उस पर क्या असर हुआ??? यहां पर प्रशासन यह चेक करने पर तुला हुआ है कि देखते हैं, पानी आने के बाद हमारे निर्माण कार्यों का क्या हुआ?? बड़ा सवाल यही है कि क्या हुआ यह सवाल तो बाद में करेंगे, क्यों किया इसका जवाब पहले देना ही होगा। उस पर नेताओं के इतने ज्यादा पगफेरे करवाए गए कि मानों कोई अजूब बना दिया हो। बार-बार आकर छोटी से छोटी बारीकियों, नदी में बिछाए पत्थरों आदि पर चर्चा की जाने लगी।


महाविकास से महाविनाश तक का सफर
कहां बात आयड़ नदी के पर्यावरणीय पुनर्वास या इकॉलोजिकल रीहेबिलिटेशन से शुरू हुई थी और कहां महाविनाश तक पहुंच गई। इसका मकसद आयड़ नदी के मूल स्वरूप को बहाल करना था लेकिन नदी के पर्यावरणीय स्वरूप, जल प्रवाह व्यवस्था, भूजल प्रवाह को पूरी तरह बदल दिया गया है। एक्सपर्ट कमेटी ने कहा था कि निर्माण न्यूनतम हो, साइकिल ट्रैक एफटीएल से ऊपर हो, फ्लड कंट्रोल का पूरा ध्यान रखा जाए। जो भी निर्माण हो एफटीएल के उपर हो लेकिन यहां पर तो सभी निर्माण नदी की छाती पर हो गए। कुछ जगह आरसीसी भी की गई। जल अवरोधक फर्श बनाया गया। भारी कंक्रीट के ऊपर पत्थर के स्लैब लगाने से नदी का बड़ा हिस्सा पूरी तरह से पानी के लिए अभेद्य कर दिया गया ऐसे में भूजल पुनर्भरण की प्रक्रिया पूरी तरह खत्म होने का खतरना है। इससे नदी के किनारे बसी बस्तियों में भूजल खत्म हो सकता है।


अपने-अपने पार्टी नेताओं से जवाब मांगें भाजपा-कांग्रेस के कार्यकर्ता
दोनों दलों के बड़े व कथित रूप से महान नेताओं ने मिलकर आयड़ नदी पेटे का सत्यानाश किया है और पक्का यकीन है कि वे इसे कभी नहीं स्वीकार करेंगे, तो पार्टी फोरम में ही सही। यह सवाल पुरजोर तरीके से उठाया जाए कि आखिर ऐसा क्यों किया गया। कब तक कुछ लोगों के स्वार्थ के लिए नदी और पहाड़ों की बलि देते रहेंगे। कुछ नेताओं के अहम को तुष्ट करने के चक्कर में कहीं हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए विलेन तो नहीं बन रहे हैं। जब आगे की स्मार्ट पीढ़ियां सवाल करेंगी और जवाब नहीं मिलेगा तब हमारे इस वर्तमान को काला अध्याय बताकर हमेशा मिसालें दी जाती रहेंगी। आयड़ दोनों नदी को बचाना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह हमारी लाइफलाइन, हमारी मां है। हम अपनी मां समान नदी को नाला बन मरते हुए नहीं देख सकते। उस मां की छत्रछांया रहेगी तो प्रकृति भी फलेगी-फूलेगी और सभ्यता भी सुरक्षित-संरक्षित रहेगी। और अगर छेड़छाड़ होगी तो परिणाम अभूतपूर्व होंगे।
आईआईटी रूडकी ने साफ कहा था-यह भूल ना करें
आईआईटी रूडकी के दल ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा कि – सीमेंट और कंक्रीट का निर्माण नदी के प्राकृतिक बहाव क्षेत्र को प्रभावित करेगा। इसके हाइड्रोलिक जोन, रिचार्ज प्रोसेस पर असर होगा। खासतौर पर मानसून के समय इसके 0.15 वर्ग किलोमीटर परिधीय क्षेत्र में। इसका असर 5 किलोमीटर के क्षेत्र तक देखा जाएगा। इसके 9 मीटर चौड़े केंद्रीय कैनाल को पोरस बनाया जाए ताकि जब मानसून नहीं हो, तब भी ग्राउंड वाटर रिचार्ज को सुनिश्चित किया जा सके। इसके अलावा इसमें किसी भी प्रकार के सीमेंट-कंक्रीट का इस्तेमाल नहीं किया जाए। यह भी सुझाव दिया गया कि यदि इस प्रोजेक्ट से बाढ़ के सवाल उठते हैं तो पिछले 100 सालों के आंकड़ों का किसी इंडिपेंडेंट एजेंसी से स्टडी करवानी चाहिए व उसके बाद निर्णय लेना चाहिए। कमेटी ने बार-बार जोर देकर कहा कि रिवर बेड या नदी के तल क्षेत्र में किसी भी प्रकार की कंक्रीट या कंस्ट्रक्शन मेटेरियल का उपयोग अनुचित होगा क्योंकि इससे ग्राउंड वाटर रिचार्ज पर बुरा असर होगा।


जिसको पिचिंग बताया था वह सीमेंटेड निकला
कलेक्टर ताराचंद मीणा की अध्यक्षता वाली एक्सपर्ट कमेटी नेएक रिपोर्ट तैयार करवाई थी। रिपोर्ट में स्मार्ट सिटी की ओर से नदी में सीमेंट-कंक्रीट-फर्शियां बिछाने की कारगुजारी को पिचिंग कह कर छिपाने का प्रयास हुआ। स्मार्ट सिटी कंपनी की ओर से 75 करोड़ की लागत से नदी में पर्यावरणीय पुनर्वास (इकॉलोजिकल रीहेबिलिटेशन) के नाम पर किए काम का मूल मकसद इसी नदी में मल-जल युक्त 139 नालों के सीवेज से मुक्ति दिलाना था। एनजीटी कोर्ट में रिपोर्ट में पक्के काम को पिचिंग बता कर बचने का प्रयास किया गया। कोर्ट को बताया गया कि पिचिंग नदी के किनारों की दीवारों के ढलान पर की जाती है। इस काम में कभी भारी कंक्रीट का उपयोग नहीं किया जाता। इसके बावजूद स्मार्ट सिटी कंपनी नदी में एम-15 ग्रेड कंक्रीट के ऊपर 100 मिमी (3-4 इंज) बिजोलिया और निंबाहेड़ा स्टोन की फर्शियों से पक्का फर्श बनवा रही थी। कई जगह एम-30 ग्रेड की भारी कंक्रीट भी बिछाई जा रही थी। नदी तल के बड़े हिस्से में कंक्रीट-फर्शियां बिछाने, कृत्रिम लॉन, पैदल मार्ग और सर्विस रोड बनाने का काम हुआ। इससे मानवजनित प्रदूषण बढना तय है व नदी की प्राकृतिक व्यवस्था नष्ट होना भी तय है।
प्राकृतिक वनस्पति हो जाएगी नष्ट
इस बारे में जब हमने विशेषज्ञों से बात की तो उन्होंने कहा कि जैविक रूप से वनस्पति और जीव नदी के स्व-कायाकल्प में मदद करते रहत है। याने हर नदी का खुद को साफ करते रहने का इको सिस्टम होता है मगर जब उसमें मानवीय गतिविधियों का दखल होता है तो हालात विकट हो जाते हैं। जब निर्माण पक्क कर दिए गए हों तो बेडा गर्क होना तय है। नदी को नाली में सिमटा देना व उसके बाद दोनों तरफ भराव डालना मूर्खता की निशानी है। मानसून में जब पानी आया व पक्के फर्श पर बहा तो उसके प्रवाह की गति और अधिक बढ़ गई। इससे नदी के प्राकृतिक जल प्रवाह में भी बदलाव हो सकता है। बाढ़ के समय नदी के किनारे कटने का डर है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि इसी आयड़ नदी ने पांच बार सभ्यताओं को नष्ट किया है।
कोर्ट में यह दिए गए थे आश्वासन

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