बरसों की नौकरी मिनटों में छीनी, आंदोलन पर बैठे तो हाथ-पांव फूले, एग्जाम तक के लिए मैनपावर नहीं, हड़ताल के बाद डीन-डायरेक्टरों ने हाथ खड़े किए, नहीं करवा सकते इनके बिना एग्जाम, अस्थायी कर्मचारियों को दो महीने से नहीं मिला वेतन, होली से पहले जली अरमानों की होली
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24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। जिस संस्थान के लिए जिंदगी खपा दी उस संस्थान ने बिना एक मिनट की देरी किए सरकारी आदेश से निकालने का फरमान सुना दिया। जहां पर वे बरसों से कर्णधार और संकटमोचक की भूमिका में थे वहां से अचानक पराए कर दिए गए। संघर्ष की बारी आई तो वे भी साथ नहीं आए जिनके लिए काम करते हुए ना दिन देखा ना रात। अब हालत ये हैं कि ना हाल जा न रहे हैं ना पैरवी कर रहे हैं। इनका दो-दो महीने का वेतन बाकी है। अब होली कैसे मनाएं, घर का खर्चा कैसे चलेगा, उम्र के इस पड़ाव में नई नौकरी का बंदोबस्त कहां से व कैसे होगा। ये सब बड़े सवाल हैं जिनकी गूंज मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में सुनाई दे रही है। यहां पर 327 अशैक्षणिक (मंत्रालयिक व चतुर्थ श्रेणी) कर्मचारियों की सेवाएं तुरंत समाप्त कर हटाने के आदेश से भूचाल आ गया है। कर्मचारियों की हड़ताल ने विश्वविद्यालय की सभी व्यवस्थाओं को चरमरा दिया है। सुविवि प्रशासन ऐसा सकते में आया कि डीन और डायरेक्टर्स दौडे चले आए और हाथ खडे कर दिए कि हम अस्थायी कर्मचारियों के बिना एग्जाम नहीं करवा सकते। ऐसे में नया आदेश जारी कर 21 से 30 तक की सभी परीक्षाएं रद्द करनी पड़ी। इससे पहले आदेश निकाल कर वीसी ने अवकाशों को दूसरा आदेश जारी कर रद्द कर दिया था। आपको बता दें कि फरवरी में कुलपति प्रो. सुनीता मिश्रा ने शैक्षणिक श्रेणी के 100 से ज्यादा अतिथि शिक्षकों को हटा दिया था। अब नए शिक्षा ग्रुप-4 विभाग के संयुक्त सचिव डॉ. अनुज सक्सेना की ओर से जारी आदेश के तहत अशैक्षणिक कर्मचारियों को हटा दिया गया है। ये सभी कर्मचारी सात दिन से हड़ताल पर हैं। आज भी इनकी हड़ताल जारी है। सुविवि में पहले से ही कर्मचारियों की कमी है व सारी व्यवस्था एक तरह से इन्हीं कर्णधारों के सिर पर थी। स्थायी कर्मचारियों से बहत कम वेतन पर कई-कई गुना काम कर रहे थे और कई बार तो काम का बोझ इतना ज्यादा हो रहा था कि समय की पाबंदी के बाद भी कई-कई घंटे रूक कर काम करना पड़ रहा था। लेकिन बरसों की मेहनत का कोई मोल नहीं समझा गया और एक झटके से नौकरी से निकालने के आदेश हो गए। अब कर्मचारियों की मांग है कि उनका सरकारी नियमों के तहत स्थायीकरण किया जाए। वैसे यह मांग उनकी 20 साल पुरानी है जिस पर विवि प्रशासन हमेशा लॉलीपॉप देता आ रहा है। आखिरी बार प्रो जेपी शर्मा के कार्यकाल में भर्ती का प्रयास हुआ था मगर तब नवीन मिश्रा नाम के वीसी के ही गांव के रहने वाले केंडिडेट के 100 प्रतिशत नंबर आने से बवाल हो गया था। मामला पुलिस में भी गया मगर विवि और वीसी के स्तर पर मामले को दबाने में सफलता प्राप्त कर ली गई। बाद में राज्यपाल कुलाधिपति ने सभी तथ्यों को देखते हुए भर्ती को ही निरस्त कर दिया था। उसके पहले और बाद से बरसों से अशैक्षणिक कर्मचारियों के जिम्मे ही पूरा विश्वविद्यालय चल रहा है। हालत यह हैं कि ये कर्मचारी नहीं हों तो सभी कॉलेजों के डीन के हाथ-पांव फूल रहे हैं। सच तो यह है कि परमानेंट फेकल्टी इतना बोझ झेलने को तैयार ही नहीं है। परीक्षा करवाना असंभव होने पर रद्द करना पड़ा। इससे जो छात्रों को नुकसान हुआ है उसका जवाब कौन देगा।
इधर, इन कार्मिकों को पिछले दो महीन से वेतन भी नहीं दिया जा रहा हैं। अशैक्षणिक कार्मिकों के लगभग 50 प्रतिशत पद खाली हैं। शैक्षणिक कार्मिकों के 35 प्रतिशत पद खाली हैं। ऐसे में खाली पदों के चलते ना तो कोर्स पूरा हो सकता है ना ही प्रवेश से लेकर टीसी, माइग्रेशन तक के काम। इन सभी कार्मिकों को सेल्फ फाइनेंस स्कीम (एसएफएस) के तहत काम करते हुए 2 से लेकर 20 साल हो गए हैं। इनका कहना है कि सुविवि की सीओडी, बॉम में एप्रवूल के बाद इनकी नियुक्ति की गई है मगर सुविवि प्रशासन के गलत फीडबेक के आधार पर प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा विभाग ने हटाने का आदेश दिया है।
सुविवि प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान
परीक्षाएं रद्द होने का सीधा खामियाजा छात्रों को होगा, इसका जवाब आखिर कौन देगा। क्या विवि प्रशासन को पहले से नहीं पता था कि इन कर्मचारियों के बिना काम ही नहीं चलेगा। या फिर गलत फीडबेक के आधार पर पूरा प्रशासन ही मुगालते में था। इस मामले में सुविवि प्रशासन की भयंकर लापरवाही सामने आई है। जब दो महीने से वेतन नहीं मिल रहा था तो सुविवि प्रशासन ने क्या किया? प्रशासन को क्या पता नहीं था कि इन कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद उसी रास्ते से उनके लिए भयंकर संकट सिस्टम के अंदर आने वाला है जिसका उनके पास कोई हल नहीं है। सरकारी स्तर पर कागजों से एक्शन और रिएक्शन होता है। यदि वीसी के नेतृत्व में समय रहते पैरवी की जाती तो होली से पहले किसी की नौकरी जाने की नौबत ही नहीं आती। अब जब एग्जाम सिर पर हैं, चुनाव भी निपटाने हैं तो हाथ-पांव फूल रहे हैं। आज के आदेश से ही साफ हो गया कि विवि प्रशासन की कोई तैयारी नहीं थी। वह पूरी तरह से होचपोच और डाफाचूक है। प्रशासन ने सोचा कि अस्थायी रूप से कार्यरत कर्मचारियों को मीठी गोली देकर एग्जाम करवा लेंगे, बाद का बाद में देखा जाएगा मगर जब कई अध्यापकों की चुनाव में ड्यूटी लगा दी गई तो मामला और ज्यादा गड़बड़ा गया। यहां भी बात नहीं बनी तो रद्द करनी पड़ी। जानकार बताते हैं कि इतनी जल्दी नई भर्ती नहीं हो सकती। ऐसे में इन कर्मचारियों को वापस नौकरी पर रखने के अलावा विवि प्रशासन के पास कोई दूसरा चारा नहीं है। इसके साथ ही बताया जा रहा है कि हर दो महीने पर कर्मचारियों को एक्सटेंशन मिल रहा है जो अनुचित, अतार्किक और अवैज्ञानिक है। ऐसा किसी भी सिस्टम में नहीं होता है। यह अजूबा प्रयोग सुविवि में क्यों हो रहा है इसका जवाब सरकारी स्तर पर मांगा जाना चाहिए।

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