24 News Update उदयपुर। नवरात्रि महोत्सव नजदीक आते ही शहर में पारंपरिक गरबा और डांडिया कार्यक्रमों पर हर बार की तरह इस बार भी नए नियम-कायदों को लेकर कुछ ऐसे लोगों ने बहस शुरू कर दी है जो खुद को त्योहारों का ठेकेदार समझ बैठे है। ये लोग चाहते हैं कि दैवीय आंनद में गरबा रमने वाले इस अलौकिक त्योहार को उनकी बनाई हुई हदों और सीमाओं के अंदर ही मनाया जाए। वे चाहते हैं कि उनका ही टाइम फार्मेट सब लोग काम में लें। सब लोग उतने ही दिन आवश्यक रूप से गरबां करें जितने दिन वो चाहते हैं। जबकि गरबा जैसा त्योहार जो गुजरात की आत्मा में रचा-बसा है, खुद गुजरात में ऐसी कोई पाबंदी नहीं है। ना समय की, ना कपड़ों की और ना ही कथित रूप से ठेकेदारों के तय किए गए गानों और मर्यादाओं की। गरबों में जो रमणीयता है, धमक है, अपनापन है, दूसरों को देखकर उल्लासित होने का जो सामूहिक भाव है वह किसी बंधन का मोहताज नहीं है। हर उम्र के लोग जब गरबा या डांडिया रमने जाते हैं तो उनकी मस्ती में खलल डालने वाले, अपने फार्मेट को तथाकथित बंदिशों के नाम पर बांधने वाले, उन पर नजर रखने की धमक दिखाने वाले आखिर ये लोग कौन होते हैं। सबसे पहले तो इन लोगों की कुंडलिया खंगाली जानी चाहिए कि आखिर ये हर साल इस तरह से त्योहारों से पहले अपनी ढपली लेकर अपना राग अलापने क्यों आ जाते हैं। अब उदयपुर में ही यह बहस तेज हो गई है। हाल के वर्षों में कुछ कुछ स्वयंभू लोग खुद को त्योहारों का सर्वेसर्वा बनाने का प्रयास आखिर क्यों कर रहे है। क्या से उनके वर्चस्व का मामला है या फिर वे राजनीति चमकाना चाहते है। वे प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं, सोशल मीडिया पोस्ट पर धर्म की बातों के पीछे छुपकर अपना एजेंडा चलाते हैं और फिर छोटे-मोटे मामलों में कार्रवाइयां करके अपनी कथित सफलता का जश्न मनाते हैं। लेकिन जैसे ही बड़े मीडिया समूहों, बड़े संगठनों, नामचीन नेताओं की मौजूदगी वाले कार्यक्रमों की बारी आती है, उनकी बोलती बंद हो जाती है। वे बुलाने पर भी दूर दूर तक नजर नहीं आते। विरोध का उनका झंडा भी कहीं नहीं दिखाई देता। गरबा का स्वरूप क्या हो? वो कितने दिनों का हो? कौन क्या पहनेगा? इसका फैसला सिर्फ और सिर्फ व्यक्तिगत या सामाजिक पसंद से ही तय होगा, कुछ संगठनों की दादागिरी से नहीं। समाज में समरसता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के प्रतीक इन उत्सवों को अपने कठोर नियमों से नियंत्रित करने की बात करने वालों को भी अब अगल से स्कैन करने का वक्त लगता है माताजी की कृपा से आ गया है।
इन संगठनों को गरबा और डांडिया नाइट जैसे आयोजनों से परेशानी है। अगर कोई माता की भक्ति में तल्लीन होकर दो दिन ही गरबा उत्सव करना चाहता है तो इसमें परेशानी क्या है?? प्रशासन और पुलिस को चाहिए कि ऐसे लोगों को अपनी रडार पर रखें कि कहीं वे धार्मिक मामलों की आड़ में अपना उल्लू तो सीधा करने का प्रयास नहीं कर रहे।
शहर के मुद्दों पर इनकी कोई राय नहीं
आपको बता दें कि शहर के ज्वलंत मुद्दों पर इन कतिपय लोगों की कोई राय नहीं होती है। आप इन्हें कभी भी समस्याओं व जनता के संघर्ष की बातों पर अपने हितों से परे जाकर संघर्ष करते हुए न हीं देखेंगे। लेकिन गरबा उतसव मामले में उनकी दिलचस्पी देखते ही बनती है। आपको बता दें कि 14 सितंबर को फील्ड क्लब उदयपुर में गुजरात सरकार का खुद पर्यटन विभाग ‘वाइब्रेंट गुजरात प्री-नवरात्रि फेस्टिवल 2025’ का आयोजन करने जा रहा है। इस भव्य आयोजन में केंद्रीय पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी और गुजरात के पर्यटन मंत्री मुलुभाई बेरा मुख्य अतिथि होंगे। यह कार्यक्रम पूरी तरह सार्वजनिक और निःशुल्क होगा, जिसमें पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर प्रवेश मिलेगा। संगीत, नृत्य और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से सजे इस उत्सव में गुजरात अपनी पारंपरिक नवरात्रि संस्कृति का प्रदर्शन करेगा। ऐसे में सवाल उठता है कि जो संगठन निजी आयोजनों में कठोर पाबंदियों की मांग कर रहे हैं, क्या वे सरकारी स्तर पर होने वाले इस भव्य आयोजन को भी रोकने की कोशिश करेंगे?
त्योहार और परम्पराएं बहता झरना है, इसे बांधने वाले बह जाते हैं
आलोचकों का कहना है कि त्योहारों पर ऐसे नियंत्रण की प्रवृत्ति सामाजिक समरसता के उस भाव को कमजोर कर सकती है, जिसके लिए नवरात्रि जैसे पर्व सदियों से जाने जाते हैं। क्या त्योहारों की परंपराओं को संरक्षित करने का ठेका उठाने का दंभ भरने का कुछ लोगों का यह तरीका सही है? धर्म, परमपराएं त्योहार तो बहता झरना है। इसको बांधने वाले खुद ही बह जाया करते हैं।
Discover more from 24 News Update
Subscribe to get the latest posts sent to your email.