Site icon 24 News Update

उदयपुर की स्वास्थ्य व्यवस्था का मखौल : किसके इशारे पर बार-बार हटाए जा रहे CMHO डॉ. बामनिया? जयपुर में बैठै किसी सफेदपोश हाथी का बार—बार आ रहा है नाम??

Advertisements

24 News Update उदयपुर। जिला स्वास्थ्य व्यवस्था इन दिनों फाइलों और फैसलों की राजनीति में उलझकर मज़ाक बन चुकी है। हालात यह हैं कि उदयपुर जैसा संभागीय जिला पिछले ढाई वर्षों में एक ही CMHO की कुर्सी पर तीन-तीन बार दो—दो डॉक्टरों को एक साथ बैठते देख चुका है। और यह सब किसी विभागीय आवश्यकता नहीं, बल्कि जयपुर में बैठी किसी अदृश्य शक्ति के इशारे पर किसी की कुर्सी की हठ को पूरा करने के लिए होता दिखाई दे रहा है।
सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या सिस्टम में इतनी ताक़त किसी एक व्यक्ति या किसी समूह की है कि कोर्ट के आदेश भी बार-बार उस कुर्सी तक पहुँचने से रोक दिए जाते हैं?

CMHO बामनिया को कोर्ट क्यों जाना पड़ता है बार-बार?
डॉ. शंकरलाल बामनिया पिछले ढाई साल में तीसरी बार कोर्ट के आदेश से CMHO का पद ग्रहण कर रहे हैं। यह मजाक नहीं तो और क्या है कि हर बार एक नए आदेश से उन्हें हटाया जाता है, फिर कोर्ट जाते ही आरोप और दलीलें न्याय की दहलीज पर फस्स हो जाती हैं। विभागीय आदेशों पर व उन्हें जारी करने वालों पर उंगलियां उठने लगती है। कोर्ट हर बार नए सवाल खड़े करता है व पूछता है कि ये सब हो क्या रहा है, मगर जयपुर में बैठा काई सफेदपोश हाथी मदमस्त होकर फिर से छड़ी घुमाता है, बेखौफ होकर किसी के लिए खेल खेलता है। विभागीय जांच, निलंबन, तबादला—हर बार नया रास्ता और हर बार हाईकोर्ट की बात— इनकी हटाने की प्रक्रिया नियमों के खिलाफ है।

तो सवाल यह है कि क्या स्वास्थ्य विभाग में पूरा तंत्र सिर्फ एक व्यक्ति को रोकने के लिए चल रहा है? और कोई काम नहीं है क्या?? ये ईगो प्रोब्ल्म आखिर किस आरामपसंद उपरी हवा का फितूर है। क्या जयपुर में बैठे अफसरों के बीच आगे सत्ता प्रतिष्ठान में किसी की इतनी चलती है कि प्रशासन एक ही डॉक्टर को लेकर रोज नया खेल खेलता है? यदि ऐसा है तो जांच का विषय है।

हायरारकी में नीचे बैठे RCHO को हमेशा कार्यभार?
सरकारी सेवा की वरिष्ठता का प्रावधान बिल्कुल स्पष्ट है: CMHO, Additional CMHO, Deputy CMHO, RCHO (Program Officer) पर उदयपुर में यह क्रम उल्टा चलता है।
हर बार CMHO का चार्ज सीधे RCHO डॉ. अशोक आदित्य को दिया जाता है, जबकि वे वरिष्ठता में तीसरे स्थान पर हैं। इस सवाल का सीधा व तार्किक जवाब किसी के पास नहीं है कि ऐसा हो क्यों रहा है। Additional CMHO और Deputy CMHO को लगातार बायपास करना आखिर किसके निर्देश पर होता है? अगर ये दोनों काम नहीं कर रहे हैं तो इनके तबादले कर दीजिए। और अगर कर रहे हैं तो जिम्मेदारी ​दीजिए। मगर खेल खेलते हैं तो साफ पकड़े जाते हैं जनता की अदालत में। सवाल उठता है कि क्या विभाग किसी एक डॉक्टर को शीर्ष कुर्सी सौंपने के लिए पूरी व्यवस्था पीछे धकेल देता है?

ACB चार्जशीट पेंडिंग—फिर भी चार्ज क्यों?
यह भी चर्चा में है कि किसी के खिलाफ ACB की चार्जशीट पेंडिंग है। इस पर भी विभाग मौन है। अब सवाल उठ रहा है— क्या ऐसे में बार-बार CMHO चार्ज देने में किसका लोभ है? किसकी कृपा है? और क्यों है?

कुर्सी का तमाशा: एक पद, दो अफसर और सिस्टम की चुप्पी
मंगलवार को कोर्ट के आदेश पर लौटकर आए CMHO डॉ. बामनिया ने डॉ. आदित्य को उनके मूल पद RCHO पर रिलीव कर दिया। पर डॉ. आदित्य ने आदेश मानने से इनकार कर दिया।
यहाँ भी सवाल बड़ा है कि जब कोर्ट ने नियुक्ति स्पष्ट कर दी, तो रिलीव नहीं करने वालों पर कार्रवाई कौन करेगा? कौन है जो विभाग को यह शक्ति दे रहा है कि वह कोर्ट के आदेश को भी चुनौती समझकर अनदेखा करे? या उसका मजाक बना दे।
इस बीच डायरेक्टर मेडिकल हेल्थ जयपुर कहते हैं— बामनिया के पास रिलीव करने का अधिकार नहीं। मगर उल्टा सवाल उन पर उठ रहा है कि उन्होंने कोर्ट के आदेश के बावजूद रिलीव क्यों नहीं किया जबकि यह तीसरी बार हो रहा है। क्यों नहीं उन पर भी कार्रवाई की जानी चाहिए।
होना तो ये था कि ज्वाइनिंग होते ही कार्यभार वाले का काम खत्म हो जाता व वह मूल जगह पर चला जाता। लेकिन यहां ना भार दिया जा रहा है ना कार्य। किसी का तो खल है इसके पीछे यह साफ दिखाई दे रहा है। दो CMHO एक ही दिन में और विभाग यह तमाशा देखता क्यों रहा?

नेता और बड़े अफसर कहाँ हैं?
क्या मेडिकल डिपार्टमेंट में बैठे बड़े अफसर क्या सिर्फ़ तनख्वाह लेने के लिए हैं? क्या उनका काम सिर्फ़ आदेश बदलना है या कभी ज़मीन पर हो रही इस अव्यवस्था को भी देखकर हल करेंगे? फैसला लेने में एक सेकण्ड से ज्यादा का वक्त नहीं लगता मगर उनका इस मामले में पर्सनल इंटरेस्ट लगता है। वे कुर्सी की फाइट देख कर अपना ईगो सेटिस्फाई करना चाहते हैं, ऐसा साफ दिख रहा है।

उधर, नेताओं की चुप्पी भी चुभ रही है।
क्या उदयपुर की चिकित्सा व्यवस्था सिर्फ़ फाइलों और कुर्सियों का प्रयोगशाला बनकर रह गई है?
उदयपुर की छवि का नुकसान हो रहा है। पहले बड़गाँव, अब CMHO कार्यालय की खिल्ली बनी।
बड़गाँव के चिकित्सक प्रकरण से विभाग की भारी किरकिरी हो गई। एक आदेश तक ढंग का नहीं निकाल सकते। पॉलिटिक्स के आगे नतमस्तक होने से काम नहीं चलेगा। अब तो जनता जवाब मांग रही है कि अस्पताल के बाहर पटाखे चलाने वालों पर क्या कार्रवाई की?? यदि सही था तो क्या सभी अस्पतालों के बाहर सूतली बम फोड़ने की छूट उदयपुर में मिल गई है???
CMHO कार्यालय को लेकर बार-बार हो रहे इस नाटक ने जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था को मज़ाक का पात्र बना दिया है। एक कुर्सी के लिए इतना हठ, इतनी राजनीति और इतना शक्ति प्रदर्शन—स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील विभाग में यह स्वीकार्य नहीं।

Exit mobile version