24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में लगातार छठे दिन एसएफएबी कर्मचारियो की हड़ताल जारी रही। एक तरफ पुलिस की गेस्ट हाउस में चल रहे कार्यक्रम में नहीं जाने की हिदायतें, प्रशासनिक भवन के बाहर तक ही समित रहने की नसीहतें तो दूसरी तरफ बारिश की बूंदें। एसएफएबी कर्मचारियों ने सबका डटकर सामाना किया। दिनभर नारेबाजी होती रही व निष्ठुर, संवेदनहीन हुए प्रशासन को जमकर कोसा। अंदरखाने हड़ताल को समाप्त कराने के लिए तीन महीने वाले आदेश को ढाल बना विवि प्रशासन अब खुद को पाक साफ साबित करने और कर्मचारियों को ही दोषी करार देने की रणनीति पर आगे बढ़ता नजर आया। इस पर कर्मचारियों ने कहा कि चार बार हड़ताल हो चुकी है। हर बार वही आश्वासन। अब तो हद हो गई है।
मूल सवाल ये है कि बार-बार वेतन कौन रोकता है। बार बार एक्टेंशन कौन रोकता है? हड़ताल ही इसलिए शुरू हुई थी कि ना वेतन मिला है ना एक्सटेंशन। जब हर बाद दगा मिल रहा है तो नौकरी करें तो किस भरोसे पर। जिस राज्य सरकार ने भरोसा दिया उसी के आदेश को नहीं माना जा रहा है। ऐसे में संकट बहुत ही गंभीर हो चला है।
कर्मचारियों ने बताया कि प्रशासनिक और अकादमिक सेवाएं लगभग ठप रहीं जिसका कोई खास असर ईगो प्राब्लम वालों पर नहीं देखा गया। आदिवासी अंचल से आए विद्यार्थी परीक्षा, डिग्री और काउंसलिंग जैसी आवश्यक सेवाओं के लिए दिनभर भटके लेकिन इससे भी कोई फर्क नहींं पड़ा। अब आवाज उठ रही है कि वेतन रोकने वालों का भी वेतन रोका जाए और जांच की जाए कि कौन इसके पीछे है और क्यों बार-बार विवि की साख, कार्यसंस्कृति और कर्मचारियों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इसके लिए एक जांच कमेटी का गठन किया जाए व उसकी रिपोर्ट आने तक वेतन रोकने वालों का वेतन रोक दिया जाए। इसके साथ ही विश्वविद्यालय में सक्रिय दबाव समूह और यसमैन संस्कृति पर भी दबी जुबान में सवाल उठ रहे हैं, जो संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों तक अपनी पहुंच बताकर मनमानी कर रहे है। यह स्थिति न केवल दुखद है, बल्कि विश्वविद्यालय के भविष्य के लिए चिंतनीय है।
कर्मचारी संगठन अध्यक्ष नारायण लाल सालवी ने आज हड़ताल के दौरान आरोप लगाया कि प्रशासन जानबूझकर कर्मचारियों के एक्सटेंशन आदेश और वेतन आदेश समय पर जारी नहीं कर रहा है। यह कोई एक बार की बात नहीं, बल्कि बार-बार दोहराई गई रणनीति है, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि यह पूर्व नियोजित प्रताड़ना है। संगठन का कहना है कि प्रशासन हर बार दो-तीन महीने के कार्यादेश जारी करता है और फिर वेतन आदेश को टालता है, जिससे कर्मचारियों को असहाय और निर्भर बनाकर मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है।
प्रशासनिक भूल नहीं, सुनियोजित प्रताड़ना
सबसे गंभीर सवाल यह है कि अगर यह चूक प्रशासनिक भूल नहीं बल्कि किसी के ईगो का परिणाम है, तो फिर उस व्यक्ति की पहचान कर उस पर कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए? आखिर वह कौन है जिसके इशारे पर विश्वविद्यालय का पूरा वर्क कल्चर दांव पर लगा है? और क्या हमारे विधायक और सांसद इस पूरे मामले पर अब चुप रहेंगे? छह दिन में किसी जनप्रतिनिधि ने हड़तालरत कर्मचारियों से संवाद तक नहीं किया, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि कहीं वे भी किसी ऊपरी दबाव में तो नहीं? कर्मचारियों की मांगें कोई असंभव नहीं हैं। राज्य सरकार के आदेशानुसार 31 दिसंबर 2025 तक कार्यादेश और वेतन आदेश साथ में जारी करना ही उनकी प्रमुख मांग है। लेकिन विश्वविद्यालय ने मात्र तीन महीने का आदेश देकर अपने पल्ले झाड़ने की कोशिश की है।
बारिश की बूंदों में सुलगती रही हड़ताल, छठे दिन भी सेटिस्फाई नहीं हुआ चक्की पिसिंग एटीट्यूड वालों का ‘ईगो’, वेतन रोकने वालों का वेतन काटने की मांग

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