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यूडीए अफसरों ने पहले खाई रिश्वत पक्की, फिर ली नेताओं की जादुई झप्पी, पोल खुली तो बुलडोजर से मिटा दिए अतिक्रमण के निशान!!!

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24 न्यूज अपडेट उदयपुर। लेकसिटी में अब सरकारी मिलीभगत और नेताओं के संरक्षण में अवैध निर्माण का खेल खुल्ला खेल फर्रूखाबादी हो चुका है। लाज, शर्म कुछ नहीं बची। पैसा दो अतिक्रमण करो, लाखों के निर्माण कर लो, यूडीए के अफसर झांक कर नहीं देखेंगे। और तो और किसी नेता की चरण वंदना करते हुए आदेश हो गए कि वहां पर चौकीदारी करनी है तो अफसर व उनके मातहतों की फौज वो भी जो हुक्म मेरे आका कहते हुए कर देगी। पूरा इको सिस्टम काम कर रहा है जिसमे ंनेता अवैध कामों को अफसरों के जरिये लीगल करवाता है, अफसर बदले में मनचाही जगह पर ट्रांसफर, पोस्टिंग और अपने लिए ढेर सारा अवैध माल कमाता है। जनता मूर्ख बनती है, सोचती है कि नेता कह रहा है, घर बना दो, लाखों का खर्चा करा दो, अफसर खुद कह रहा है कि बाद में सब सेट करवा देंगे। मगर जब अतिक्रमण हटते हैं तब कोई आड़े नहीं आता। यूडीए की आंखों पर तो लगता है उस पट्टी को बांध देना चाहिए जिसे हाल ही में कानून की देवी की आंखों से हटाया गया है। इतने विशाल पैमाने पर धड़ल्ले से बड़े बड़े निर्माण हो जाते हैं लेकिन इनके जिनके कंधों पर अतिक्रमण रोकने की जिम्मेदारी होती है, वे ही खुद माल वसूली करके आंख बंद कर देते हैं। कभी किसी नेता के गुलाम बनकर खुद अवैध बस्तियां बसाने के झंडाबरदार बन जाते हैं। जब पोल खुल जाती है तो यही लोग बुलडोजर लेकर बेशर्मी से तोड़ने चले जाते हैं। ऐसा ढीठ, महाभ्रष्ट सिस्टम आपको दुनिया में कहीं ढूंढे नहीं मिलेगा जहां पर सब के सब मिले हुए हैं। नेताओं से अफसर की गलबहियां और चरण वंदना, उसके बाद रिश्वत का खुला खेल। कानून का तो जैसे डर ही खत्म हो गया है। नियम कायदे तो ये धुआं में उड़ाने काखेल रोज खेलते है।
विना खेड़ा में बुलडोजर चला, पर सवाल अब भी बरकरार रहा कि आखिर यूडीए के अफसर इतने दिन तक सोए क्यों रहे? क्या पगार नहीं ले रहे थे, क्या दो चार साल का मौन व्रत धारण कर रखा था, आखिर माजरा क्या था?? बाईपास किनारे करोड़ों की सरकारी जमीन पर हुए कब्जे, भाजपा के स्थानीय नेताओं के नाम आए सामने आए मगर शहर के विकास की जिम्मेदारी संभालने वाले सोए रहे। अब उदयपुर विकास प्राधिकरण (यूडीए) पर ही खुद सवाल खड़े हो गए हैं। गुरुवार को यूडीए की टीम ने उदयपुर-अहमदाबाद बाईपास के सविना खेड़ा क्षेत्र में करोड़ों रुपये की सरकारी जमीन पर बने अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलाए।
लेकिन बड़ा सवाल ये जनता पूछ रही है कि यूडीए के अफसर रिश्वत खाकर आखिर किस गुफा में जा छिपे थे कि इनको ये सब दिखा ही नहीं। कोटड़ियां फला क्षेत्र में करीब 20 बीघा सरकारी भूमि पर लंबे समय से पक्के निर्माण हो रहे थे। 50 से अधिक मकान, चारदीवारियां और पक्की कोटड़ियां खड़ी कर ली गई थीं। अब यूडीए तहसीलदार रणजीत सिंह के नेतृत्व में आठ बुलडोजरों ने निर्माणों को नेस्तनाबूद किया। अवैध कब्जे में भाजपा नेताओं के नाम आने के बाद तो मामला बहुत गंभीर हो गया। कहा जा रहा है कि कुछ नेता तो बड़े नेता के संरक्षण में बरसों से इसी काम में लगे हैं। डिस्प्यूडेट, तालाब पेटे की या फिर पुरानी किसी जमीन पर इनकी निगाह रहती है, उसके बाद कब्जे व नियमन के खेल होते हैं।
इस मामले में कहा जा रहा है कि एग्रीमेंट के नाम पर सरकारी जमीन को हड़पने की तैयारी थी। मगर खेल ज्यादा दिन टिक नहीं सका। आज बुलडोजर ने उन “राजनीतिक सपनों” को धूल में मिला दिया। लेकिन वे सबूत भी मिटा दिए जो अफसरों की करतूतों की गवाही दे रहे थे। क्या अफसर की तनख्वाह काटी गई, जवाब है नहीं, क्या किसी को चार्जशीट मिली, जवाब है नहीं। तो फिर नौकरी हो तो ऐसी। निर्माण हो तब पैसे खाओ, निर्माण गिराओ तब वाहवाही लूटो। कोई जिम्मेदारी तय करने वाला नहीं। इस बीच में अगर मिशन सफल रहा तो करोड़ों के खेल में खुद भागीदार बन जाओ। पूरी कार्रवाई ने यूडीए के कामकाज पर भी गंभीर सवालिया निशान लगा दिए हैं। करोड़ों की जमीन पर वर्षों से कब्जा चलता रहा, निर्माण होते रहे, और अफसरों को भनक तक नहीं लगी। क्या यह सिर्फ लापरवाही है या जानबूझकर की गई अनदेखी? क्या सत्ता और सिस्टम की साझेदारी में यह सब संभव हुआ? पैसा कहां तक गया, किस-किसने बहती गंगा में हाथ धोए, यह भी सवाल बड़ा है।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि “अगर यूडीए सच में जागरूक होता, तो आज यह कार्रवाई दिखावे की नहीं, रोकथाम की होती।” अब देखने वाली बात यह है कि यूडीए इस कार्रवाई के बाद केवल बुलडोजर चलाकर फाइल बंद करता है या भ्रष्ट सिस्टम की परतें भी खोलेगा।

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