नाथद्वारा में श्रद्धालुओं का उमड़ा जनसैलाब, गोवर्धन पूजा के अवसर पर अलौकिक दर्शन के लिए जुटे हजारों लोग
राजसमंद। पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय की प्रधान पीठ नाथद्वारा स्थित श्रीनाथजी मंदिर में मंगलवार को पारंपरिक अन्नकूट महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर प्रभु श्रीनाथजी, विट्ठलनाथजी और लालनजी को छप्पन भोग का अर्पण किया गया। रात्रि 10 बजे के करीब सैकड़ों की संख्या में आए आदिवासी समाज के श्रद्धालुओं ने भगवान के सन्मुख रखे अन्नकूट के चावल और भोग को लूटकर अपने साथ ले गए। यह अनोखी परंपरा पिछले 352 वर्षों से निरंतर निभाई जा रही है।
352 वर्षों से निभाई जा रही परंपरा
मंदिर मंडल के राजस्व अधिकारी ने बताया कि हर वर्ष दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर यह परंपरा निभाई जाती है। आस-पास के ग्राम्य अंचलों से आए आदिवासी समुदाय के लोग अन्नकूट का प्रसाद लूटकर अपने घर ले जाते हैं।
आदिवासी समाज में यह विश्वास है कि श्रीनाथजी के अन्नकूट का चावल घर में रखने से सुख, समृद्धि और धनधान्य की वृद्धि होती है। वे इसे वर्षभर अपने घर में सहेजकर रखते हैं और कुछ भाग अपने परिजनों में बाँटते हैं।
एक माह पहले से होती है तैयारी
मंदिर सेवादार ने बताया कि अन्नकूट महोत्सव की तैयारियां एक माह पहले से शुरू हो जाती हैं। भगवान श्रीनाथजी को 100 से अधिक प्रकार के व्यंजनों — मिठाइयों, सब्जियों, खिचड़ी, दालों और फलों — का भोग लगाया जाता है।
भोग लगाने के बाद यह अन्नकूट मंदिर के गर्भगृह के सामने सजाया जाता है और फिर आदिवासी समाज के लोग नियमपूर्वक इसे लूटते हैं। इस दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु देश के विभिन्न हिस्सों से इस दृश्य के दर्शन करने नाथद्वारा पहुंचते हैं।
श्रद्धालुओं ने कहा — अद्भुत और अलौकिक अनुभव
दर्शनार्थी ने बताया, “मैं कई बार श्रीनाथजी के दर्शन कर चुकी हूं, लेकिन अन्नकूट लूट की परंपरा पहली बार देखी। यह अनुभव बेहद अलौकिक और भावनात्मक रहा।” वहीं श्रद्धालु ने कहा, “पिछले तीन-चार वर्षों से मैं इस अवसर पर आता हूं, इस बार प्रबंधन व्यवस्था और दर्शन दोनों ही अत्यंत सुव्यवस्थित रहे।”
अन्नकूट का धार्मिक महत्व
अन्नकूट उत्सव को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत की पूजा से जोड़ा जाता है। यह एक प्रकार का धन्यवाद उत्सव है, जिसमें लोग भगवान को विविध व्यंजन अर्पित कर समृद्धि और वर्षा के लिए आभार व्यक्त करते हैं।
कई मंदिरों में पारंपरिक रूप से 56 या 108 प्रकार के व्यंजन तैयार किए जाते हैं और ‘अन्नकूट’ के रूप में पर्वताकार रूप में सजाए जाते हैं। भोग के बाद यह प्रसाद श्रद्धालुओं में वितरित किया जाता है।
भक्ति और लोक परंपरा का संगम
नाथद्वारा का अन्नकूट महोत्सव न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह राजस्थान की आदिवासी संस्कृति और लोक आस्था के संगम का जीवंत उदाहरण भी है। श्रीनाथजी के सान्निध्य में श्रद्धा, उल्लास और उत्सव का यह दृश्य हर वर्ष भक्ति के रंग में समर्पण का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है।

