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ईगो प्रॉब्लम है तो मुमकिन है : पहले वेतन रोका, फिर हड़ताल करवाई, हड़ताल की तो वेतन काट दिया!! परमानेंट वाले हड़ताल करे तो फुल सैलरी, एसएफएबी करे तो लगभग 15 लाख का सैलरी कट!!

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24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। ये बहुत नाइंसाफी है। परमानेंट वाले हड़ताल करे ंतो वे राजा बेटा हैं, उनकी हड़ताल से फिकर-नॉट, प्राब्लम नॉट। किन्तु-परन्तु एसएफएबी वाले चुभती बाते करते हुए सच के पिटारे खोलते हुए हड़ताल करें तो किसी खास का ईगो हर्ट हो जाता है और उनकी जी हजूरी करने वालों का तो बाय-डिफाल्ट या नेचुरली हर्ट हो जाता है। परमानेंट वाले राजा बेटा की पगार पर कोई कट नहीं लगता है मगर एसएफएबी वाले की पगार बनाने का समय आते ही माथे पर बल पड़ जाता है और पगार में कट लग जाता है। अचानक याद आ जाता है कि नो वर्क नो पे। जबकि परमानेंट वालों के लिए यही मंत्र उल्टा हो जाता है-नो वर्क फुल पेमेंट। यह उलटबांसियां हो रही हैं चक्की पिसिंग एटीट्यूड रखने वालों के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में। कहते भी हैं कि किसी भी आमने-सामने वाले मामले में हमेशा ‘‘मरण’’ निचले पायदान करने वालों का ही होता है। और अपने यहां तो हुजूरियों की ऐसी लाइन लगी है कि वे ईगो वालों के एक इशारे पर मर मिटने को तैयार हो चले हैं। यह भी अजीब है कि पहले वेतन रोक दो, उसके बाद इंतजार करो कि भूख पेट परेशान होकर कर्मचारी हड़ताल करे। उसके बाद पांच दस दिन गुजर जाने व बहुत ज्यादा पॉलिटिकल प्रेशर आने पर बहानेबाजी और जुमलेबाजी करते हुए या फिर दिल्ली में बैठे अपने संवैधानिक पद वालों का रूतबा झाड़ते हुए हड़ताल खत्म करवा दो। हड़ताल खत्म हो जाए तो फिर नो वर्क नो पे का नियम लगा दो। याने चित भी मेरी, पट भी मेरी……। तो इस बार भी मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के 300 कर्मचारियों के साथ जो एसएफएबी के अंतर्गत काम कर रहे हैं, बहुत नाइंसाफी हो रही है। ईगो प्रॉब्लम वालों को पिछले दिनों तब दिन में तारे दिख गए थे जब ज्ञापन राज्यपाल महोदय के पास पहुंच गया था। उसमें दो महिला कर्मचारियों ने प्रताड़ित करने का आरोप लगाया और अन्य कर्मचारियों ने एसएफएबी शोषण तंत्र के बारे में कच्चा चिट्ठा राज्यपाल तक पहुंचा दिया था। उससे पहले थाने में परिवाद और जोरदार हड़ताल ने कुछ चरण वंदना में लीन हुजूरियों को उपर तक यह बात पहुंचाने का मौका दे दिया कि अबकी बार, वेतन पे जोरदार कट-मार। का मंत्र जाप करना है। जबकि अगर जांच हो ढंग से, कोई कमेटी ईमानदारी से त्थ्यों को कानूनी नजर से परखें तो सबसे बड़े गुनहकार वेतन रोकने वाले हैं। जो वेतन-कटवा हैं उनका वेतन सबसे पहले काटा जाना चाहिए। एसएफएबी कर्मचारियों को राज्य सरकार के आदेश से दिसंबर तक काम करना है। लेकिन इस आदेश के आने के बाद किसके पेट में दर्द और बदहजमी की शिकायत हो रही है, यह अब जग जाहिर हो चुका है। ऐसे में उपर तक मिलीभगत करके वेतन रोकने, त्योहारों पर भी तनख्वाह को तरसाने जैसे अशोभनीय तरीके आखिर कौन आजमा रहा है, अब नाम किसी से छिपे हुए नहीं हैं।
अब कर्मचारियों की ओर से बताया गया कि कि सुविवि की लालफीताशाही के कारण अपने हक के लिए एसएफएबी ने धरना एवं प्रदर्शन किया। उसके लिए संविदा/एस.एफ.एस. कर्मचारियों का हड़ताल के दिनों का वेतन काटने के लिए सुविवि प्रशासन ने सभी डीन व डायरेक्टर को मौन स्वीकृति प्रदान करते हुए अपनी हठधर्मिता दिखाई है। अध्यक्ष, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय संविदा/एस.एफ.एस. कर्मचारी संगठन नारायण लाल सालवी ने बताया कि 1 जुलाई 2025 से संविदा/एस.एफ.एस. कर्मचारियों के पास कार्यादेश एवं वित्तीय आदेश नहीं थे। जिसकी सूचना 2 बार जून में और फिर 11 जुलाई 2025 को प्रशासन को की गई थी मगर फिर सुविवि प्रशासन ने लालफीताशाही को जारी रखते हुए 14 जुलाई तक भी कार्यादेश एवं वित्तीय आदेश जारी नहीं किए। तब मजबूर होकर संविदा/एस.एफ.एस. कर्मचारियों ने कार्यबहिष्कार करते हुए धरना प्रदर्शन किया था। सुविवि प्रशासन की गलती की सजा निम्न वेतन भोगियों को मिल रही है और लगभग 10 से 12 लाख की कटौती हड़ताल के दिनों की जा रही है। कर्मचारी अगर हक के लिए लड़े तो वेतन काट कर दमनकारी नीति चलाई जा रही है ताकि मजबूर होकर भी वे अपने हक के लिए सुविवि प्रशासन के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाए।
अध्यक्ष सालवी ने आगे बताया कि विश्वविद्यालय में कार्यरत संविदा/एस.एफ.एस. कर्मचारियों के कही 10 दिन तो कही 11 दिनों के वेतन की कटौती की जा रही है। सुविवि के इतिहास में जब-जब भी शैक्षणिक एवं अशैक्षणिक कर्मचारियों द्वारा हड़ताल की गई है तब किसी का भी वेतन नहीं काटा गया है। यह दमनकारी नीति केवल अल्प वेतन भोगी संविदा/एस.एफ.एस. कर्मचारियों के लिए ही है। जो लोग पहले से ही अल्प वेतन पर काम कर रहे है, उस वेतन में से भी वेतन काटकर दिया जाएगा तो संविदा/एस.एफ.एस. कर्मचारी को मिलेगा क्या? इस संबंध में सभी डीन और डायरेक्टर से अपील की थी कि सुविवि प्रशासन की गलती की सजा अल्प वेतन भोगियों को न दे, फिर किसी ने भी दया भाव नहीं रखा और सुविवि प्रशासन के मौन आदेश को माना है।

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