24 News Update उदयपुर। मेवाड़ की वीर भूमि हल्दीघाटी की विजय को 450 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित हल्दीघाटी विजय सार्द्ध चतुः शती समारोह के प्रथम सोपान के अंतर्गत चल रही मेवाड़ लघु चित्र कार्यशाला में कलाकारों की कूंचियों ने महाराणा प्रताप की गौरवगाथा को कैनवास पर जीवंत कर दिया है। प्रताप गौरव केंद्र, पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र उदयपुर एवं संस्कार भारती उदयपुर महानगर इकाई के सहयोग से आयोजित इस चित्रशाला में प्रताप और मेवाड़ के स्वाभिमान से जुड़े ऐतिहासिक प्रसंगों को चित्रों के माध्यम से उकेरा जा रहा है। शिविर संयोजक प्रो. रामसिंह भाटी ने बताया कि चित्रों में मेवाड़ की चटक रंग योजना, गहरी रेखाओं और ऐतिहासिक विषयवस्तु की विविधता दर्शकों को विशेष रूप से आकर्षित कर रही है। चित्रों में महाराणा प्रताप की युद्धनीति, भक्ति, वीरता, राजनय और लोकसंपर्क की झलक देखने को मिल रही है।
चित्रकार राधेश्याम स्वर्णकार ने महाराणा प्रताप और अजब दे कंवर के विवाह के उपरांत एकलिंग दर्शन का दृश्य उकेरा है। वहीं प्रमोद सोनी ने भामाशाह के समर्पण भाव को चित्रित किया। राजेश सोनी की कृति में प्रताप अपने प्रिय हाथी रामप्रसाद पर सवार होकर रणभूमि की ओर बढ़ते दिखते हैं। खूबीराम शर्मा ने चावंड युद्ध में अमर सिंह के रणक्षेत्र के दृश्य को जीवंत किया है। संदीप शर्मा ने चेतक के चयन का मार्मिक क्षण दर्शाया। मदनलाल शर्मा ने हल्दीघाटी युद्ध का ऐतिहासिक चित्र प्रस्तुत किया तो गणेशलाल गौड़ ने युद्ध से पूर्व महाराणा प्रताप के एकलिंग दर्शन के दृश्य को रूप दिया।
कलाकार छोटू लाल जी ने अपने चित्र में बंदी मुगल महिलाओं को स्वतंत्र करने की आज्ञा देते हुए महाराणा प्रताप को दर्शाया है। वहीं अशोक शर्मा एवं रामचंद्र शर्मा ने भी युद्ध प्रसंगों की मनोहारी झलक अपने चित्रों में दिखाई। कार्यशाला 24 जून तक चलेगी, जिसमें कलाकार अपनी कृतियों को अंतिम रूप देंगे। इसके पश्चात 25 जून को इन चित्रों की प्रदर्शनी आमजन के अवलोकन हेतु लगाई जाएगी।
खरोष्ठी से ब्राह्मी तक की रोचक यात्रा से परिचित हुए प्रतिभागी
इधर, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) और साहित्य संस्थान राजस्थान विद्यापीठ के संयुक्त तत्वावधान में चल रही भाषाविज्ञान एवं पुरालिपि कार्यशाला में सोमवार को प्राचीन लिपियों, भाषाओं और ऐतिहासिक दस्तावेजों के विविध पक्षों पर विद्वानों ने गहन प्रकाश डाला। डेक्कन कॉलेज, पुणे के पुरातत्व विभाग से पधारे डॉ. अभिजित दाण्डेकर ने खरोष्ठी और ग्रीक लिपियों की तुलना विभिन्न प्राचीन सिक्कों के माध्यम से प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि भारत की बहुलतावादी लिपिक परंपरा किस प्रकार सिक्कों और शिलालेखों के माध्यम से सामने आती है। इसके बाद भाषा-साहित्य मर्मज्ञ डॉ. जे.के. ओझा ने प्राचीन पांडुलिपियों व बहियों में प्रयुक्त लोकभाषाओं की विविधता और उनके व्याकरणिक स्वरूप को स्पष्ट किया। साथ ही मौद्रिक इकाइयों रूपया, आना, पैसा के ऐतिहासिक संबंधों को प्रामाणिक उदाहरणों के साथ समझाया।
डॉ. राजेन्द्रनाथ पुरोहित ने मेवाड़ राज्य के शासकीय पत्रों की भाषा और प्रशासनिक भाषा के ऐतिहासिक विकास पर प्रकाश डाला। मैसूर आर्कियोलॉजी विभाग के पूर्व निदेशक डॉ. रविशंकर ने ब्राह्मी लिपि की संरचना और विकास को सूक्ष्म उदाहरणों सहित प्रस्तुत किया। पुरातत्वविद् विवेक भटनागर ने देश के विभिन्न उत्खनन स्थलों से प्राप्त शिलालेखों और पुरावशेषों की लिपिक पहचान पर चर्चा की। कार्यशाला में विद्यार्थियों, शोधार्थियों और अध्यापकों ने अत्यंत उत्साह से भाग लिया और प्राचीन लिपिक परंपरा एवं ऐतिहासिक दस्तावेजों के अध्ययन से अपने ज्ञान को समृद्ध किया।
Discover more from 24 News Update
Subscribe to get the latest posts sent to your email.