24 न्यूज अपडेट उदयपुर। डीपीएस स्कूल जमीन आवंटन पर बड़ा खुलासा हुआ है। सूचना आयोग ने शिक्षा विभाग को 30 दिन में सूचना देने का आदेश दिया है। उदयपुर के शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने मिलीभगत करते हुए सूचना को रोकने का भरसक प्रयास किया। डीपीएस से संबंधित फाइलों पर खुद कुंडली मार कर बैठ गए मगर राज्य सूचना आयोग में मामला जाते ही कलई खुल गई। सुनवाई में बुलाया तो कोई नहीं गया। इस पर आयोग ने तुरंत 30 दिन मे ंसूचना देने का आदेश दिया है। इससे अफसरों के होंश उड़े हुए हैं। उन्हें डर सता रहा है कि जिस सच पर पहरा देने के लिए मिलीभगत के खेल खेल गए कहीं वे जनता के सामने नहीं आ जाएं। इस मामले से यह भी साबित हो गया कि शिक्षा विभाग के कुछ लोग केवल और केवल प्रभावशाली लोगों के लिए काम करते हैं। उनको उदयपुर जिले के आदिवासी बच्चों के हितों से कोई मतलब नहीं है। प्रभावशाली लोगों के प्रभाव में आकर वे फाइलों पर कुंडली मारकर पसर जाते हैं और सोचते हैं कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उदयपुर के डीपीएस स्कूल ने आदिवासी बच्चों के कल्याण के नाम पर जमीन ले ली मगर आदिवासी बच्चों को शिक्षा के नाम पर कुछ नहीं कियां। कितने आदिवासी बच्चों को शिक्षा मिली, इसके आंकड़े ना तो शिक्षा विभाग के पास हैं ना ही यूडीए के पास। यदि हैं तो भी छिपाए जा रहे हैं क्योंकि आंकड़े सामने आते ही डीपीएस स्कूल व सोसायटी कठघरे में खड़ी हो जाती है।
आपको याद दिला दें कि भुवाणा स्थित मंगलम सोसाइटी के डीपीएस स्कूल को शहरी सुधार न्यास (यूआईटी/यूडीए) द्वारा रियायती दर पर आवंटित की गई करोड़ों की जमीन पर अब गंभीर सवाल उठ रहे हैं। देश के जाने माने आरटीआई एक्टिविस्ट और पत्रकार जयवंत भेरविया की ओर से दायर की गई आरटीआई (सूचना का अधिकार) और राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव को की गई शिकायत के बाद यह मामला गहराता जा रहा है।
शिक्षा विभाग से आरटीआई में पूछे गए तीन अहम सवाल
वर्ष 2005 से अब तक आवंटन शर्तों के अनुसार विधवा महिलाओं के बच्चों, शहीद सैनिकों के बच्चों, विकलांग बच्चों, एससी-एसटी वर्ग एवं गरीब आदिवासी बच्चों को रियायती दर/मामूली फीस पर डीपीएस स्कूल में दिए गए एडमिशन की वर्षवार जानकारी।
गरीब आदिवासी बच्चों के लिए स्कूल में बनाए गए होस्टल की सत्यापित सूचना।
डीपीएस स्कूल से संबंधित मामलों में यूडीए द्वारा शिक्षा विभाग को भेजे गए पत्रों की प्रमाणित प्रतियां।
इस आरटीआई के लिए दो स्तरो ंपर उदयपुर में जवाब नहीं दिए गए जिस पर राज्य आयोग में शिकायत की गई।
आयोग का निर्णय (दिनांक 19.09.2025)
मुख्य सूचना आयुक्त मोहनलाल लाठर ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि पत्रावली के अवलोकन में स्पष्ट हुआ कि अपीलार्थी (जयवंत भेरविया) ने दिनांक 28.05.2025 को उपरोक्त तीन बिंदुओं पर सूचना चाही थी, जो अब तक उपलब्ध नहीं कराई गई। प्रत्यर्थी (शिक्षा विभाग) द्वारा आयोग को कोई अपीलोत्तर प्रस्तुत नहीं किया गया और न ही कोई प्रतिनिधि उपस्थित हुआ। इसे आयोग ने प्रत्यर्थी की उदासीनता और लापरवाही माना तथा चेतावनी दी कि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो।
अपीलार्थी के प्रति न्यायोचित व्यवहार करते हुए आयोग ने आदेश दिया कि निर्णय की प्राप्ति से 30 दिवस के भीतर उपलब्ध अभिलेखीय सूचना अथवा स्पष्ट विनिश्चय अपीलार्थी को पंजीकृत डाक से निःशुल्क भेजा जाए।
18 साल से पालन पर सवाल, क्यों सोया है शिक्षा विभाग
दस्तावेजों और जांच से यह भी सामने आया कि जमीन आवंटन के 18 साल बीत जाने के बाद भी डीपीएस स्कूल में आवंटन शर्तों की कभी गंभीरता से जांच नहीं की गई। यूडीए के पास इन एडमिशनों से जुड़ा कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं और अब शिक्षा विभाग ने भी अब तक कोई जवाब नहीं दिया।
इसके विपरीत, डीपीएस स्कूल को और अधिक जमीन भी आवंटित कर दी गई है।
बड़ा सवाल
अब शहर में यही चर्चा है कि क्या जिन गरीब, आदिवासी, विकलांग और शहीद सैनिकों के बच्चों के नाम पर यह जमीन कौड़ियों में दी गई थी, उन्हें वास्तव में कोई लाभ मिला? क्या शिक्षा विभाग और यूडीए की मिलीभगत ने आवंटन शर्तों और सामाजिक न्याय की मूल भावना को दरकिनार कर दिया?
यह मामला अब सिर्फ जमीन और एक स्कूल का नहीं, बल्कि शिक्षा विभाग की जवाबदेही, पारदर्शिता और वंचित वर्गों के हक का है। मुख्य सूचना आयुक्त मोहनलाल लाठर के आदेश के बाद अब निगाहें शिक्षा विभाग पर टिकी हैं कि वह 30 दिन में सूचना उपलब्ध कराता है या मामला एक बार फिर फाइलों में दबा दिया जाएगा।
2005ः ‘गरीबों-आदिवासियों की पढ़ाई’ के नाम पर जमीन की मांग
वर्ष 2005 में मंगलम सोसायटी के चेयरमैन गोविंद अग्रवाल ने तत्कालीन मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर भुवाणा में रियायती दरों पर जमीन मांगी। जबकि सच यह है कि अग्रवाल के पास पहले से ही बड़ी निजी जमीनें मौजूद थीं। पत्र में दावा किया गया कि डीपीएस फ्रेंचाइजी खोलकर यहां गरीब और आदिवासी बालक-बालिकाओं को उच्चस्तरीय शिक्षा, छात्रावास और खेल मैदान जैसी सुविधाएं दी जाएंगी।
सरकार ने इन झूठे दावों के आधार पर सोसायटी को 7 एकड़ (3,04,920 वर्गफीट) जमीन आवंटित की। इसमें से 2 एकड़ जमीन तो महज़ 25 प्रतिशत दर पर सोसायटी को सौंप दी गई। शेष जमीन भी न्यास दरों पर रियायत के साथ दी गई।
शर्तें साफ थीं लेकिन कभी निभाई नहीं गईं
लीज डीड में सोसायटी को कुछ स्पष्ट शर्तों के साथ जमीन दी गईः जमीन का उपयोग सिर्फ शिक्षा व संबंधित प्रयोजन के लिए। जमीन का किसी अन्य संस्था को हस्तांतरण पूर्णतः अवैध था। सबसे अहमः 25 फीसदी सीटें एससी, एसटी, पिछड़ा वर्ग, विकलांग, शहीद सैनिकों और विधवाओं के बच्चों के लिए आरक्षित होंगी। इनमें 12 प्रतिशत एससी, 8 प्रतिशत एसटी और 3 प्रतिशत विकलांग छात्रों के लिए तय था। और इन वर्गों से केवल 50 फीसदी फीस ली जानी थी। इन शर्तों की पालना पूरी लीज अवधि तक करना अनिवार्य था।
वास्तविकताः न एडमिशन, न पालन-सिर्फ मुनाफाखोरी
गोविंद अग्रवाल और उनकी सोसायटी ने शर्तों की कभी भी पालना नहीं की। डीपीएस स्कूल में अब तक आवंटन शर्तों के मुताबिक एडमिशन नहीं दिए गए। स्कूल ने केवल आरटीई के एक्ट 2009 का सहारा लिया, जबकि यह पूरी तरह अलग विषय है।
आरटीई के तहत किसी भी निजी स्कूल को 25 प्रतिशत सीटें गरीब बच्चों के लिए देनी ही होती हैं, चाहे स्कूल ने बाजार भाव पर जमीन खरीदी हो या रियायती दर पर। लेकिन मंगलम सोसायटी को मिली जमीन की शर्तें इससे अलग थीं। उन्हें अतिरिक्त 25 प्रतिशत सीटें आधी फीस पर गरीब-आदिवासी बच्चों के लिए देनी थी।
यानि डीपीएस को कुल 50 प्रतिशत एडमिशन गरीब और कमजोर वर्गों के लिए सुनिश्चित करने थे। पर वास्तविकता में स्कूल ने न तो यह शर्त निभाई और न ही आधी फीस पर बच्चों को पढ़ाया।
कांग्रेस सरकार ने भी किया खेल
कांग्रेस सरकार के अंतिम दिनों में भी डीपीएस स्कूल को फायदा पहुँचाया गया। जिस एक लाख वर्गफीट जमीन पर सालों से स्कूल का कब्जा था, उसे 60 समाजों की सूची में शामिल कर आधिकारिक तौर पर सौंप दिया गया। अब तक डीपीएस को करीब 4 लाख वर्गफीट जमीन दी जा चुकी है। यह राजस्थान का शायद पहला स्कूल है जिसे भूमि आवंटन नीति 2015 को रौंदकर इतनी जमीन सौंप दी गई।
पत्रकार जयवंत भैरविया की शिकायत और सरकार का आदेश
वरिष्ठ पत्रकार जयवंत भेरविया ने इस घोटाले की शिकायत मुख्य सचिव सुधांशु पंत से की और जमीन निरस्त करने की मांग रखी। इस पर नगरीय विकास एवं आवासन विभाग ने 8 अप्रैल 2025 को यूडीए को जांच रिपोर्ट भेजने के आदेश दिए। यूडीए आयुक्त राहुल जैन ने 9 अप्रैल को सचिव हेमेंद्र नागर की अध्यक्षता में समिति बनाई। इसमें जितेंद्र ओझा, बिंदुबाला राजावत, अभिनव शर्मा, बाबूलाल तेली, राजेंद्र सेन और सुरपाल सोलंकी शामिल थे। 17 अप्रैल को गोविंद अग्रवाल को नोटिस जारी किया गया।
यूडीए की रिपोर्टः घोटाले पर पर्दा
रिपोर्ट में साफ लिखा गया कि डीपीएस ने 2012-13 से 2024-25 तक आरटीई के तहत एडमिशन दिए हैं और हर साल सत्यापन हुआ है। इस आधार पर रिपोर्ट यह निष्कर्ष देती है कि शर्तों का पालन हुआ। यहां सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है कि जब आवंटन शर्तें और आर टी ई एक्ट 2009 पूरी तरह अलग विषय हैं, तो यूडीए ने क्यों दोनों को एक जैसा मान लिया?
असल में यूडीए की यह टिप्पणी सीधे-सीधे गोविंद अग्रवाल को बचाने और सरकार को गुमराह करने की कोशिश है। यह केवल आरटीई की आड़ में आवंटन शर्तों की घोर अवहेलना पर पर्दा डालने जैसा है।
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