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अजमेर में ईद-उल-फितर पर खुला जन्नती दरवाजा

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24 न्यूज अपडेट, अजमेर। रमजान के पवित्र महीने के समापन पर मुस्लिम समुदाय ने सोमवार को ईद-उल-फितर धूमधाम से मनाई। अजमेर शरीफ की प्रसिद्ध दरगाह हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (रह.) में ईद की नमाज के साथ ही “जन्नती दरवाजा“ खोला गया, जिसके दर्शन के लिए हजारों जायरीनों की भीड़ उमड़ पड़ी। इस दरवाजे का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ अन्य धर्मों के लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र रहा है।
जन्नती दरवाजा क्या है?
जन्नती दरवाजा (स्वर्ग का द्वार) ख्वाजा साहब की दरगाह के उत्तरी भाग में स्थित एक पवित्र प्रवेश द्वार है। मान्यता है कि इस दरवाजे से गुजरने वाले भक्तों को ख्वाजा साहब की विशेष दुआएं मिलती हैं और उनके गुनाह माफ होते हैं। इस दरवाजे को साल में केवल दो बार ईद-उल-फितर और ईद-उल-अज़हा के अवसर पर खोला जाता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
इतिहासकारों के अनुसार, जन्नती दरवाजे का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहाँ के शासनकाल में हुआ था। कहा जाता है कि शाहजहाँ ने ख्वाजा साहब की दरगाह का जीर्णोद्धार करवाया और इस विशेष दरवाजे को बनवाया, जिसे “बख्शीश का दरवाजा“ भी कहा जाता है। मुगल काल से ही इस दरवाजे का धार्मिक महत्व रहा है और इसे आध्यात्मिक मोक्ष का प्रतीक माना जाता है।
ईद-उल-फितर पर जन्नती दरवाजे का खुलना
इस बार ईद-उल-फितर पर जन्नती दरवाजे को सुबह 8 बजे खोला गया, जिसके बाद हजारों की संख्या में जायरीनों ने इस पवित्र द्वार से गुजरकर दुआएं मांगीं। दरगाह प्रशासन ने भक्तों के लिए विशेष व्यवस्था की थी, जिसमें सुरक्षा और सफाई का विशेष ध्यान रखा गया। प्रशासनिक अधिकारियों और विभिन्न धर्मों के लोगों ने ईदगाह पर पहुँचकर मुस्लिम भाइयों को बधाई दी। घरों में खीर-सिवइयां बाँटकर मुंह मीठा करने की परंपरा निभाई गई।
दान और जकात की भावना
ईद से पहले सदका-ए-फितर और जकात देने की परंपरा का पालन करते हुए लोगों ने गरीबों और जरूरतमंदों को दान दिया। कई संगठनों ने मुफ्त भोजन और कपड़े वितरित किए।

  1. जन्नती दरवाजा क्या है?
    जन्नती दरवाजा (स्वर्ग का द्वार) दरगाह के उत्तरी हिस्से में स्थित एक विशेष प्रवेश द्वार है, जिसे साल में केवल दो बार—ईद-उल-फितर और ईद-उल-अज़हा के अवसर पर खोला जाता है। मान्यता है कि इस दरवाजे से गुजरने वाले भक्तों के पाप धुल जाते हैं और उन्हें ख्वाजा साहब की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
    (क) मुगलकालीन निर्माण
    जन्नती दरवाजे का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहाँ (1628-1658 ई.) के शासनकाल में हुआ था।
    शाहजहाँ ने दरगाह का जीर्णोद्धार करवाया और इस विशेष द्वार को “बख्शीश का दरवाजा” (दया का द्वार) के रूप में बनवाया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह दरवाजा अकबर के समय (1556-1605) से भी पुराना हो सकता है, क्योंकि अकबर ने भी ख्वाजा साहब की दरगाह की यात्रा की थी और इसके विस्तार में योगदान दिया था।

(ख) सूफी परंपरा में महत्व
सूफी मत के अनुसार, यह द्वार अल्लाह की रहमत (कृपा) का प्रतीक है। कहा जाता है कि ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया जैसे संतों ने भी इस दरवाजे के आध्यात्मिक महत्व की चर्चा की थी।

  1. वास्तुकला और प्रतीकात्मकता
    जन्नती दरवाजा लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है और इस पर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं। इसके ऊपरी भाग में अर्धचंद्राकार मेहराब बनी हुई है, जो इस्लामिक वास्तुकला की पहचान है। दरवाजे के दोनों ओर फारसी शिलालेख हैं, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं।
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