रिपोर्ट- जयवंत भैरविया
24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। जिसे धार्मिक आस्था, पर्यटन और सार्वजनिक हित को देखते हुए जिस प्रोजेक्ट को जनता के हित के लिए विकसित किया जाना था वह खुला खेल खेलते हुए व नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए प्राइवेट वाणिज्यिक साम्राज्य में तब्दील कर दिया गया। साल दर साल नियमों में गलियां निकालते हुए और नीचे से उपर तक प्रशासनिक मिलीभगत के चलते दस्तावेजों में लगातार हेर-फेर का सिलसिला चलाया गया। अब जब दस्तावेजों की सरकारी ऑडिट हुई है तो कई मूल दस्तावेज तक गायब हो गए हैं या साफ कहें तो गायब कर दिए गए हैं। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं यह सरकार को भेजी गई सरकारी अधिकारियों की ऑडिट रिपोर्ट में दर्ज किया गया है। इस मामले में ऑडिट करने वाले सरकारी अधिकारियों का मानना है कि प्रोजेक्ट में सरकार को लगभग 500 करोड़ की चपत लगाई गई। इतना बड़ा आंकड़ा सामने आने के बाद पालिका से लेकर उन सभी महकमों में हड़कंप मचा हुआ है जिसमें अफसरों ने बहती गंगा में हाथ धोए थे, जिन अधिकारियों पर कार्रवाई की अनुशंसा की गई है वे अब अपने राजनीतिक रसूखात व आकाओं के यहां पनाह मांगते हुए नजर आ रहे हैं। यदि उपर के स्तर पर अब कोई सेटिंग या गड़बड़ी नहीं हुई तो बहुत बड़ी गाज गिर सकती है व सख्त कार्रवाई हो सकती है। मामले को दबाने व बाहर आने के लंबे प्रयासों के बाद भी पिछले दिनों एक आरटीआई के माध्यम से दस्तावेज जनता की अदालत में आए तो मामले का भंडाफोड़ हो गया। लेकिन कई मीडिया समूहों ने भी इस हाई प्रोफाइल मामले से अपने निजी व आर्थिक हितों के चलते दूरियां बनाने में ही भलाई समझी। लाभ कमाने का यह खेल ना सिर्फ जनता से विश्वास-घात करके खेला गया बल्कि जनता के विश्वास के स्वरूप को बड़ी ही निर्लज्जता से दस्तावेजों में तार-तार कर दिया गया।
ऑडिट रिपोर्ट में में सामने आए दस्तावेजों की गायबगी, अनियमित लीज, अवैध निर्माण और शर्तों के खुले उल्लंघन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मिराज ग्रुप को नियमों को दरकिनार कर ₹500 करोड़ से अधिक का फायदा पहुँचाया गया है। अब सवाल यह है कि क्या राज्य सरकार इन गंभीर लापरवाहियों और संभावित मिलीभगत की जांच कर दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करेगी या यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह फाइलों में दफन हो जाएगा? अंकेक्षण दल ने मूर्ति के अलावा 2019 से किए गए समस्त निर्माण को अवैध माना है व रिपोर्ट में कहा है कि आज दिन तक अम्यूजमेंट पार्क में कोई निर्माण स्वीकृति नहीं ली गई जिससे संपूर्ण निर्माण अवैध है।
नियमों की अनदेखी कर मिराज ग्रुप को दिया गया जमीन पर स्वामित्व, लीज अवधि बढ़ाकर 198 वर्ष की गई
नाथद्वारा में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू किया गया मिराज ग्रुप का ‘विश्वास स्वरूपम’ प्रोजेक्ट अब एक विवादित घोटाले में तब्दील होता नजर आ रहा है। सरकारी ऑडिट रिपोर्ट में कई गंभीर वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितताओं का पर्दाफाश हुआ है, जिससे सरकार को लगभग ₹500 करोड़ का नुकसान होने का अनुमान है। वर्ष 2012 में नाथद्वारा नगर पालिका की बैठक में मिराज डेवलपर्स लिमिटेड को 9 बीघा भूमि पर अन्तरराष्ट्रीय स्तर का सार्वजनिक उद्यान और 251 फीट ऊँची शिव मूर्ति लगाने हेतु भूमि आवंटन का प्रस्ताव पारित हुआ।
अगस्त 2012 : स्वायत्त शासन विभाग ने इस परियोजना को मंजूरी देते हुए 23 सख्त शर्तों के साथ एमओयू करने की अनुमति दी। इसमें स्पष्ट किया गया कि भूमि और उस पर स्थित चल-अचल संपत्ति का स्वामित्व नगरपालिका का रहेगा और मिराज ग्रुप को केवल विकास व रख-रखाव का अधिकार होगा।
बाद में नियमों से हटकर बदले गए शर्तें
दिसंबर 2012ः डीएलबी की एम्पावर्ड कमेटी ने बिना सार्वजनिक प्रक्रिया के भूमि का क्षेत्रफल 9 बीघा से बढ़ाकर 25 बीघा 10 बिस्वा कर दिया और मूर्ति की ऊँचाई को 251 फीट से बढ़ाकर 351 फीट किया गया।
अप्रैल 2013ः नाथद्वारा नगरपालिका, मिराज ग्रुप व कलेक्टर राजसमंद के बीच एमओयू साइन हुआ।
👉 2021 में बड़ी गड़बड़ी: स्वामित्व का हस्तांतरण
- 17 फरवरी 2021 को निष्पादित पट्टा विलेख (लीज डीड) में वह सबसे बड़ी चूक हुई जिसमें नगरपालिका के स्वामित्व का कोई उल्लेख नहीं किया गया।
- परिणामस्वरूप जमीन का स्वामित्व ‘तत्पदम उपवन प्रा. लि.’ (मिराज ग्रुप की इकाई) को पूरी तरह से हस्तांतरित हो गया।
👉 लीज अवधि 30 साल से बढ़ाकर 198 साल
लेकिन फरवरी 2021 में इसे 99+99 वर्ष यानी कुल 198 वर्ष कर दिया गया।
अन्य गंभीर अनियमितताएं उजागर
सीए ऑडिट नहीं कराया गया-ः शर्तों के अनुसार अलग खाता संचालन व सीए ऑडिट अनिवार्य था, जो नहीं किया गया।
प्रबंध समिति नहीं बनाई गईः पार्क की निगरानी हेतु समिति में आयुक्त नगरपालिका को शामिल करना था, पर कोई समिति गठित नहीं हुई।
पर्वों पर देनी थी निःशुल्क प्रवेश की छूट, हो रही है खुलकर वसूली
विशेष पर्वों पर निशुल्क प्रवेश का उल्लंघनः वत्स-बारस, गणेश चतुर्थी, हरियाली अमावस्या एवं राष्ट्रीय पर्वों पर निःशुल्क प्रवेश की शर्त थी, लेकिन आम जनता से उच्च दरों पर टिकट वसूली की जा रही है।
वाणिज्यिक लाभ और कर की हानि
अक्टूबर 2023ः नगरपालिका ने मिराज ग्रुप को वाणिज्यिक दर से ₹71 करोड़ जमा कराने का नोटिस दिया, जो ब्याज सहित ₹81 करोड़ हो गया। बावजूद इसके, मिराज ग्रुप ने तय समयावधि के बाद आवासीय दर मानकर ₹30 करोड़ जमा कराए। बिना राज्य सरकार की स्वीकृति के नगरपालिका ने यह राशि स्वीकार कर ली, जो स्पष्ट रूप से भूमि आवंटन नीति का उल्लंघन है।
नीलामी घोटाला भी उजागर
शिव मूर्ति के समीप की आराजी नंबर 492 (89,000 वर्गफीट) की नीलामी में मिराज ग्रुप और एक डमी कंपनी ने भाग लिया। अनुमानित बाज़ार मूल्य ₹43 करोड़ के स्थान पर यह जमीन मात्र ₹23 करोड़ में मिराज ग्रुप को दे दी गई।
एक और मामलाःःःः बस स्टैंड की भूमि का व्यावसायिक उपयोग
1987ः मन्दिर मंडल ने श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु 45,000 वर्गफीट भूमि नगरपालिका को दी थी।
नगरपालिका ने इसमें से 17,798 वर्गफीट भूमि मिराज ग्रुप को दे दी जिस पर मॉल बनाकर उसे रिलायंस को किराए पर दे दिया गया और भारी लाभ कमाया गया।
मूल शर्त के अनुसार लीज की अवधि 30 वर्ष थी।

