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पूर्व मंत्री के बेटे की कंपनी में घोटाले की रकम का निवेश, ईडी ने महेश जोशी समेत कई के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की

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24 News Update जयपुर। जल जीवन मिशन (जेजेएम) में हुए 980 करोड़ रुपये के घोटाले की जांच कर रही प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने शुक्रवार को इस मामले में एक महत्वपूर्ण कार्रवाई करते हुए पूरक चार्जशीट दाखिल कर दी। चार्जशीट में पूर्व सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) मंत्री महेश जोशी, उनके बेटे रोहित जोशी, उनके करीबी सहयोगी संजय बड़ाया सहित 22 लोगों और कंपनियों को आरोपी बनाया गया है। ईडी ने बताया कि घोटाले की रकम को सफेद करने के लिए एक सोची-समझी साजिश के तहत उसे मंत्री के बेटे की कंपनी में निवेश किया गया।
ईडी की जांच में सामने आया है कि मंत्री महेश जोशी के करीबी कारोबारी संजय बड़ाया ने कमीशन की रकम को विभिन्न माध्यमों से रोहित जोशी की कंपनी ‘मेसर्स सुमंगलम लैंडमार्क’ में लगाया। यह निवेश करोड़ों रुपये का था, जिसे वैध व्यावसायिक फंडिंग का रूप देने की कोशिश की गई। ईडी अधिकारियों ने बताया कि यह पैसा पाइपलाइन बिछाने से जुड़े टेंडरों में हेराफेरी कर हासिल किया गया था, जिसमें पीएचईडी के इंजीनियरों और निजी कंपनियों की मिलीभगत थी।
चार्जशीट में महेश जोशी, उनके बेटे रोहित जोशी, कारोबारी संजय बड़ाया, ठेकेदार पदम चंद जैन, महेश मित्तल, पीएचईडी के अधिकारी मायालाल सैनी, राकेश सिंह, मलकीत सिंह, प्रदीप कुमार, प्रवीण कुमार, महेंद्र प्रकाश सोनी, विशाल सक्सेना, हिमांशु रावत, नमन खंडेलवाल, तन्मय गोयल और हेमराज गुप्ता सहित कई नाम शामिल हैं। चार्जशीट में इन सभी पर पीएमएलए की धारा 3 और 4 के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
इससे पहले 24 अप्रैल 2025 को ईडी ने महेश जोशी को गिरफ्तार किया था और इसके कुछ ही दिन पहले एजेंसी ने 47.80 करोड़ रुपये की चल-अचल संपत्ति जब्त की थी। जब्त संपत्तियों में महेश जोशी, उनके बेटे, संजय बड़ाया, पदम चंद जैन और विशाल सक्सेना की संपत्तियां शामिल हैं।
ईडी की जांच के अनुसार यह घोटाला वर्ष 2021 में शुरू हुआ, जब मेसर्स श्री गणपति ट्यूबवेल और मेसर्स श्याम ट्यूबवेल जैसी कंपनियों ने फर्जी अनुभव प्रमाण पत्रों के आधार पर जलदाय विभाग के करोड़ों रुपये के टेंडर हासिल किए। गणपति ट्यूबवेल ने 68 टेंडरों में भाग लिया और 31 में एल-1 बनकर 859.2 करोड़ रुपये के काम प्राप्त किए, जबकि श्याम ट्यूबवेल ने 169 में से 73 टेंडर जीतकर 120.25 करोड़ रुपये के ठेके लिए। इस पूरे प्रकरण में ठेकेदारों और इंजीनियरों की मिलीभगत से नियमों की अनदेखी की गई और सरकार को भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया।
इस घोटाले की शिकायत पहली बार फरवरी 2023 में उत्तर प्रदेश निवासी पदम सिंह द्वारा ईमेल के माध्यम से की गई थी। इसके बाद मार्च 2023 में जयपुर के वकील मनेश कलवानिया ने भी शिकायत दर्ज कराई। मई 2023 में वित्तीय समिति की बैठक में आरोपों की जानकारी होते हुए भी टेंडर पारित कर दिए गए। अगस्त 2023 में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने कार्रवाई करते हुए इंजीनियर मायालाल सैनी, ठेकेदार पदम चंद जैन, सुपरवाइजर मलकीत सिंह और दलाल प्रवीण कुमार को गिरफ्तार किया। सितंबर 2023 में एसीबी ने फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर टेंडर पाने के मामले में एफआईआर दर्ज की, और उसी दौरान बीजेपी नेता किरोड़ी लाल मीणा ने ईडी में शिकायत दी। इसके बाद ईडी ने अपनी जांच शुरू की और संबंधित ठिकानों पर छापेमारी की।

तीन मई 2024 को केंद्र सरकार की अनुमति के बाद सीबीआई ने भी मामला दर्ज किया और चार मई को ईडी ने अपनी जांच के सबूत एसीबी को सौंप दिए। अंततः 30 अक्टूबर 2024 को एसीबी ने महेश जोशी समेत 22 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की और 24 अप्रैल 2025 को जोशी की गिरफ्तारी हुई। अब ईडी द्वारा दाखिल की गई चार्जशीट के बाद यह मामला एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है, और संभावना है कि इसमें कई अन्य नाम भी जल्द सामने आ सकते हैं।

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