24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। आरएनटी मेडिकल कॉलेज के रेजिडेंट डॉक्टरों की हड़ताल आज 11वें दिन वापस ले ली गई। अब यह काली पट्टी बांधने के रूप में सांकेतिक रूप से डॉ रवि शर्मा को न्याय मिलने सहित अन्य मांगों के पूरे होने तक जारी रहेगी। डॉ. रवि शर्मा की करंट लगने से हुई दर्दनाक मौत के बाद शुरू हुए आंदोलन ने पूरे राजस्थान के चिकित्सा जगत को झकझोर दिया। मरीजों की बढ़ती परेशानी और जनहित को ध्यान में रखते हुए रेजिडेंट डॉक्टरों ने शनिवार को स्टेटमेंट जारी किया कि रात 8 बजे से आपातकालीन सेवाएं शुरू होगी। सेवाएं शुरू हुईं और सबको राहत मिली। अब 30 जून से सभी सेवाएं बहाल करने का निर्णय लिया है। रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन की ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है कि, “हमने डॉ. रवि शर्मा के परिवार के साथ मिलकर न्याय की इस लड़ाई को मजबूती से लड़ा। अब मरीजों और आमजन के हितों को देखते हुए कार्य बहिष्कार वापस लिया जा रहा है। लेकिन यह स्पष्ट है कि जब तक डॉ. रवि को न्याय नहीं मिलता, हमारा संघर्ष काली पट्टी बांधकर जारी रहेगा।“
शहर की कमान ऐसे लोगों के हाथों में जिनके पास ना संवेदनशीलता है ना ही वैचारिक समझ
खत्म होकर भी खत्म नहीं हुए और एक सवाल से शुरू होकर सवालों के पहाड़ छोड़ जाने वाले इस आंदोलन ने 11 दिन में पूरे के पूरे सिस्टम को एक्सपोज करके रख दिया। हम इस खबर में सिलसिलेवार वर्णन करेंगे और जानेंगे कि हमारे शहर की कमान ऐसे लोगों के हाथों में हैं जिनके पास ना संवेदनशीलता है ना ही वैचारिक समझ और ना ही सबको साथ लेकर चलने की कोई इच्छाशक्ति। हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जहां पॉलिटिक्स और ब्यूरोक्रेसी में टॉप टू बॉटम हर आदेश डिक्टेट हो रहा है। अपनी स्वतंत्र सोच, समझ और अपने इकबाल वाले फैसलों की कुव्वत हमारे समय की राजनीति और ब्यूरोक्रेसी लगभग खो चुकी है। छोटे-मोटे फैसले देकर वो जनता को खुश और बिजी रखती है, अपनी पीठ खुद थपथपाती है। या ऐसे इवेंट करती है जिनसे लगता है कि सब कुछ बहुत तेज गति से दौड़ा जा रहा है। जनता का ऐसा खयाल रखा जा रहा है मानों भूतो न भविष्यते हो।
सच को सच कहने की ताकत भी जुटाने का साहस नहीं
लेकिन जब कठोर और जयपुर वालों को आंख दिखाकर सच का साथ देने की बारी आती है तब उदयपुर का लोकल पूरा का पूरा सिस्टम वेंटिलेटर पर आकर आहें भरने लगता है, ऐसे एनेस्थीसिया का खुद ब शिकार हो जाता है जिससे वापसी का तोड़ सिर्फ जयपुर के पास रहता है। इकबाल इतना भी बुलंद नहीं रखता कि सच को सच कहने की ताकत भी जुटाने का साहस रखता हो। छोटे-छोटे लाभ, भविष्य के आफ्टर रिटायरमेंट बेनिफिट, वर्तमान के करप्ट केपिटल गेन वाले सौदे सहित अन्य कई कारणों से राजनीति और ब्यूरोक्रेसी कभी भी कॉमन मैन का साथ नहीं देती है। 11 दिन तक मरीज तड़पत रहे मगर एक भी बार ना सांसद, ना किसी विधायक, ना हमारे कलेक्टर साहब या किसी भी प्रशासनिक अधिकारी ने अस्पताल का दौरा किया ना ही मरीजों को लेकर कोई स्टेटमेंट दिया। जबकि आम दिनों में ये सब इसी अस्पताल में जयपुर के आदेश पर फोटो सेशन करवाने चले आते हैं। सब चंगा होने का प्री प्लांड सर्टिफिकेट बांट कर चले जाते हैं। रेजिडेंट की हड़ताल एक छोर था, दूसरा छोर तो आमजन से जुड़ा था। और एमबी अस्पताल में वे ही लोग उपचार को आते हैं जो या तो मजबूर होते हैं या फिर जिनका यह प्रबल विश्वास होता है कि प्राइवेट से अच्छा इलाज यहां मिलता है। यहां देर लगती है मगर निशुल्क और पक्का उपचार यहां के बहुत ही काबिल शॉर्प ब्रेन डाक्टरों से मिलता है। उस अस्पताल में लोगों ने 11 दिन तक धक्के खाए, ऑपरेशन नहीं होने पर बार-बार परेशान हुए। लंबी कतारों में मायूस हुए। लेकिन एकदम ढीठ राजनीति और ब्यूरोक्रेसी हड़ताल नहीं तुड़वा सकी और आमजन को अपने हाल पर छोड़ कर खुद तमाशबीन बन गई।
जिस तरह से सुपरबॉस के सामने काम नहीं होने का कोई तर्क नहीं चलता है। उसी तरह उस अदालत में भी सुपरबॉस बनी जनता पूछ रही है कि आपने हड़ताल तुड़वाने के गर्ट्स क्यों नहीं थे। आप मंचों पर मुस्कुराते दिखे, 11 दिन में बड़े बड़े इवेंट करते हुए दिखे मगर आप मायूस मरीजों के साथ क्यों नहीं दिखे? यह सवाल अब बरसों तक पूछा जाता रहेगा। रेजिडेंट हड़ताल ने यह भी बता दिया कि आरएनटी अस्पताल प्रशासन में बहुत कुछ ऐसा है जो जिसकी सफाई नहीं, बल्कि सफाये की जरूरत है। पूरे घर के फ्यूज बल्ब बदल डालो तो भी कम है। करंट से मौत, प्लास्तर का अचानक गिरना, फिर उसी वाटरकूलर में करंट जिससे मौत हुई। दहशत भरी रातें गुजारते रेजिडेंट, फिर कई किलोमीटर दूर किसी और हॉस्टल में भी वही करंट का सिलसिला। प्लास्तर गिरने का सिलसिला……। उसके बाद भी ना कोई सख्त कार्रवाई हुई ना किसी की जिम्मेदारी तय हुई। ढीठता वाले और दिल तोड़ने वाले ऐसे बयान आए जिनकी उम्मीद शायद किसी को नहीं थी। डॉ़ रवि की मौत के बाद उठी हर एक मांग जायज है। सिस्टम का पुरजोर विरोध भी जायज है। रेजिडेंट के होसलों को सलाम, उनके त्याग, उनके जज्बे को सलाम। आरएनटी प्रशासन परीक्षाओं की समय सारिणी जारी करके खुद एक बहुत बड़े इम्तेहान में कंप्लीट फैल्योर साबित हो गया।
एक जमाना था जब अधीक्षक महोदय का कद फादर फीगर जैसा हुआ करता था
एक जमाना था जब अधीक्षक महोदय का कद फादर फीगर जैसा हुआ करता था। कंधों पर सिर रख कर आंसू बहाने व अपनी बात को इत्मिनान से कहने व अपनी विपरीत राय रखने के मौके हुआ करते थे। बड़ी से बड़ी हड़ताल में भी ऐसा खिंचाव और पक्ष-विपक्ष,पक्षपात का भाव कभी नहीं हुआ करता था। मगर आज हालत ये है कि चाहे जो दांव पर लग जाए लेकिन उन खास लोगों को बचाना है। कुर्सी रेस में हासिल की गई कुर्सी को कस कर पकड़ कर रखना है। ये बिल्कुल अनुचित और गैर जिम्मेदाराना है।
अगर आप सिस्टम के प्रति संवेदनशील हैं, दूसरों के दुख को महसूस करने की चाहत रखते हैं तो पद, कुर्सी क्या मायने रखते हैं। अधीक्षक साहब कुछ दिनों के लिए कुर्सी छोड़ देते तो कौनसा पहाड़ टूट पड़ता। फोरेंसिक रिपोर्ट आने की प्रतीक्षा वे सच्चाई के फर्श पर बैठ कर भी कर सकते थे। हो सकता है उनके इस त्याग से हड़ताल लंबी खिंचने की नौबत ही नहीं आती। लेकिन उन्होंने बनते हुए इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करवाने का मौका गंवा दिया। इस मूल्यांकन में अब यह कहने से कोई गुरेज नहीं है कि उन्हीं की रस्साकशी के चलते आंदोलन 11 दिन तक खिंच गया।
उदयपुर में कथित रूप से विपक्ष में बैठी कांग्रेस पार्टी की चुप्पी ने भी बता दिया कि अब भविष्य में उनकी राह भी आसान नहीं रहने वाली है। सत्ता पक्ष तो किसी खास वजह से उपरी दबाव में हॉस्पिटल नहीं गया मगर सवाल ये है कि मरीजों की पीड़ा देखने 11 दिन में क्या कोई कांग्रेसी नेता अस्पताल गया क्या??? नहीं तो क्यों नहीं??? यदि यही रवैया है तो ऐसे लोगों को नेताओं के क्राइटेरिया से भी बाहर ही रखना उचित होगा। बहरहाल हड़ताल के अनुत्तरित प्रश्नों पर बारम्बार पब्लिक डिस्कोर्स में जमकर चर्चा जरूर होनी चाहिए। अब भी समय नहीं गया है। यहां की राजनीति व ब्यूरोक्रेसी को आत्मावलोकन करके अपनी बाउंड्री को पुश करने की रिस्क लेकर डॉ़ रवि शर्मा और रेजिडेंट का न्याय जरूर दिलाना चाहिए।

