24 News Update उदयपुर। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की परीक्षा व्यवस्था यूं तो साल में कई-कई बार रिजल्ट में गड़बड़ियों के कारण चर्चा में रहती है मगर इस बार गजब हुआ है। एमए हिंदी साहित्य प्रथम सेमेस्टर के परिणाम को लेकर घोटाला सामने आया है, जिसने आला दर्जे की लापरवाही के चलते छात्रों की मेहनत और भविष्य दोनों पर पानी फेर दिया है। इतना होने पर भी ना तो किसी के खिलाफ कार्रवाई हुई है ना ही कोई जांच कमेटी गठित की गई है। ना किसी गलती करने वाले को डी-बार किया गया है। सोचने की बात है कि जिस सिस्टम में एक-एक एडमिशन के लिए स्टूडेंट जुटाने की मारामारी हो रही है, स्टूडेंट विश्वविद्यालयों की जगह अन्यत्र पढ़ाई के लिए डाइवर्ट हो रहे हैं, ऐसे सिस्टम में एक साथ 15 स्टूडेंट का पढ़ाई छोड़कर चले जाना अगर चर्चा का विषय नहीं है तो फिर आगे भविष्य किस तरह का होगा, इसका अंदाजा साफ लगाया जा सकता है।
आपको बता दें कि विश्वविद्यालय ने 1 जुलाई को परीक्षा परिणाम जारी किया था। उस दिन घोषित रिजल्ट में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं फेल करार दिए गए। मार्कशीट डाउनलोड करने पर छात्र हतप्रभ रह गए कि जिस परीक्षा के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की, पेपर भी अच्छा रहा, उसमें वे आखिर कैसे फेल हो गए। नतीजा यह हुआ कि निराश होकर कई विद्यार्थियों ने सेमेस्टर की पढ़ाई ड्रॉप करके ट्रांसफर सर्टिफिकेट याने कि टीसी ही कटवा ली और अन्यत्र प्रवेश ले लिया। मेहनत करने के बावजूद फेल होने पर चकित हुए कुछ विद्यार्थियों ने हार नहीं मानी और आरटीआई लगाकर कॉपियां मांगी तो पूरे खेल का खुलासा हो गया।
हैरानी की बात तब सामने आई आरटीआई मांगने के बाद 19 जुलाई को अचानक परिणाम में ही फेरबदल किया गया। वेबसाइट पर नया परिणाम पुराने परिणाम की फाइल को ही ओवरराइट करते हुए आया जिसमें कुछ छात्रों के नंबर बढ़ाकर पास कर दिया गया और कुछ को दोबारा फेल घोषित कर दिया गया। अब छात्रों के पास सबूत के तौर पर दो मार्कशीटें हो गईं। एक फेल वाली, एक पास वाली।
इस बीच पूरे एक महीने बाद जिन्होंने आरटीआई में कॉपियां मांगी थी उनको जवाब मिला। देखा तो कॉपियों व मार्कशीट में अंकों की हेराफेरी की गई थी। कॉपी में 36 अंक दर्ज थे, जबकि पहले रिजल्ट में केवल 16 अंक ही बताकर फेल कर दिया गया। यही नहीं जिस भी प्रक्रिया से सबका रिजल्ट रीसेट किया गया उसमें 16 अंक वालों के अंक बढ़ाकर सीधे 49 कर दिए गए। ये कौन सा नया गणित आ गया, इसका भी खुलासा नहीं हुआ। जिनके रिजल्ट में 24 नंबर थे, उनके आरटीआई में कॉपी में 37 नंबर मिलना सामने आया, संशोधित रिजल्ट में 50 नंबर हो गए। यह गड़बड़ी का खेल किसी तकनीकी त्रुटि से कहीं आगे की बात प्रतीत होता है।
छात्रों का कहना है कि नियमित रूप से कक्षाओं में उपस्थित रहते थे और छह महीने तक कड़ी मेहनत की थी। उन्हें अपने प्रदर्शन पर पूरा भरोसा था, लेकिन रिजल्ट ने आत्मविश्वास हिला दिया। करियर की वाट लगा दी। आरटीआई लगाकर कॉपियां नहीं मांगी होती तो शायद यह सच भी सामने नहीं आता। विश्वविद्यालय भी महीनेभर तक आरटीआई आवेदन पर कुंडली मारकर बैठ गया जबकि कॉपी उसके पास, आदेश देने वाले अफसर भी उसी परिसर में बैठे हैं, रिजल्ट उसके पास, छात्र भी उसी सिस्टम का हिस्सा है। जब पारदर्शिता थी तो एक महीना क्यों लगाया? क्या कॉपियां देने से पहले ही विवि प्रशासन को घपले का पता चल गया?? उन्होंने कॉपियां देने से पहले ही गलती छिपाने के लिए नया रिजल्ट जारी करने व मामले को दबाने-रफा दफा करने का खेल रच दिया??
पूरे एक महीने तक टालमटोल के बाद आई कॉपियों ने सच उगल दिया। छात्रों का कहना है कि यदि कॉपियां समय पर दी जातीं तो गड़बड़ी तुरंत सामने आ जाती और उन्हें विश्वविद्यालय छोड़कर जाने की नौबत नहीं आती।
परिणामों में इस उलटफेर के चलते 40 विद्यार्थियों के बैच में से लगभग 15 छात्रों ने पढ़ाई छोड़ दी है, यह जानकारी सामने आ रही है। इनमें से कुछ ने टीसी कटवाकर अन्यत्र प्रवेश ले लिया और जिन्होंने पास होने के बाद भी दाखिला लिया था, वे भी अब यहां से पढ़ाई छोड़ने पर विचार कर रहे हैं। विद्यार्थियों का कहना है कि इतनी मेहनत के बावजूद यदि विश्वविद्यालय इस तरह से अंकों के साथ खुलेआम खिलवाड़ करेगा तो मेहनत करने का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
मामला सामने आने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन में अंदरखाने हड़कंप तो है लेकिन यहां पर परंपरा रही है कि तू मेरी गलती छिपा, मैं तेरी छिपा दूंगा। ऊपर से सब मैनेज कर लेंगे, मामला ठंडे बस्ते में डाल देंगे।
छात्रों का आरोप है कि अब बहानेबाज़ी है और सच्चाई को दबाने का प्रयास किया जा रहा है। अब तक कई बच्चों को आरटीआई में कॉपी नहीं मिली है। उनका कहना है कि यदि 15 छात्रों के अंक अचानक बदल दिए जाते हैं, तो यह केवल गलती नहीं बल्कि गंभीर लापरवाही और घोटाले की ओर इशारा करता है। आज हालात यह हैं कि जिन छात्रों ने निराश होकर विश्वविद्यालय छोड़ा, वे अब पास होने के बाद भी इस भ्रष्ट और लापरवाह सिस्टम में लौटने को तैयार नहीं हैं। जिन्होंने अन्यत्र प्रवेश ले लिया है, वे स्पष्ट कह रहे हैं कि इतना अपमान और मानसिक आघात झेलने के बाद सुखाड़िया विश्वविद्यालय में दोबारा पढ़ाई करना संभव नहीं है।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर किस आधार पर परिणाम जारी किया गया और उसमें इतने बड़े पैमाने पर अंक क्यों बदल दिए गए। इतने बच्चों को फेल क्यों किया गया?? क्या बिना आरटीआई लगाए यह गड़बड़ी कभी सामने आती? क्यों कॉपियां एक महीने तक रोककर रखी गईं? और यदि छात्रों ने आरटीआई नहीं लगाई होती तो क्या यह मामला यूं ही दबा रह जाता?

