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परपदार्थों से विमुख होकर परिग्रह त्याग ही है आकिंचन्य धर्म : राष्ट्रसंत पुलक सागर

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उत्तम आकिंचन्य धर्म दिवस पर हजारों श्रावक-श्राविकाओं ने लिया आत्मचिंतन का संकल्प, टाउन हॉल में 700 शिविरार्थियों ने संगीतमय पूजा व धर्म आराधना की

24 News Update उदयपुर। सर्वऋतु विलास मंदिर में चल रहे राष्ट्रसंत आचार्य पुलक सागर ससंघ के चातुर्मास में शुक्रवार को उत्तम आकिंचन्य धर्म दिवस बड़े उल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर टाउन हॉल में आयोजित विशेष शिविर में 700 शिविरार्थियों ने एकरूप वस्त्र धारण कर संगीतमय पूजा और धर्म आराधना की।
आचार्य पुलक सागर ने अपने प्रवचन में कहा कि आकिंचन्य धर्म का अर्थ है परपदार्थों को अपना न मानकर उनसे विमुख होकर आत्मा में स्थित होना। उन्होंने स्पष्ट किया कि त्याग के बाद भी आत्मा में रमण में बाधा आती है क्योंकि त्यागी हुई वस्तु वास्तव में हमारी थी ही नहीं। वस्तुत: जिसे हम अपनाते या त्यागते हैं, वह बाहरी है। आकिंचन भाव का अर्थ है मन से आसक्ति की भावना को निकाल फेंकना। आत्मा एकल, अनन्य और स्वतंत्र है – यही आकिंचन्य धर्म है।
उन्होंने कहा कि सुख-दुख में समत्व भाव ही आकिंचन्य है। जीवन में अध्यात्म से बड़ा सहारा कोई नहीं है। जब संसार में आँसू पोंछने वाला कोई नहीं होगा, तब केवल अध्यात्म ही सहारा देगा। आचार्यश्री ने साधकों से कहा कि गीता सार और समयसार जैसे ग्रंथों का अध्ययन जीवन और मृत्यु दोनों को श्रेष्ठ बना देता है। उन्होंने एक सूत्र याद रखने की बात कही – “जगत में किंचित मात्र भी मेरा नहीं है।”
समिति अध्यक्ष विनोद फांदोत ने बताया कि पहली बार आचार्य पुलक सागर के सानिध्य में दिगंबर समाज के सभी पंथ एक साथ पर्युषण पर्व मना रहे हैं। दिनभर चले कार्यक्रम में प्रातः 5.30 बजे प्राणायाम, 7.30 बजे अभिषेक, शांतिधारा व पूजन हुआ। 10.30 बजे सिंधी धर्मशाला में भोजन, दोपहर में सामायिक मंत्र जाप व तत्वचर्चा और सायं 7.30 बजे महाआरती हुई। रात 8 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रकाश सिंघवी, विप्लव कुमार जैन, शांतिलाल भोजन, आदिश खोडनिया, पारस सिंघवी, अशोक शाह, शांतिलाल मानोत, नीलकमल अजमेरा, सेठ शांतिलाल नागदा सहित सम्पूर्ण उदयपुर संभाग से हजारों श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।

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