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जयकारों के साथ हुआ राष्ट्रसंत आचार्य पुलक सागर महाराज का केश लोचन

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24 News Update उदयपुर, 11 जुलाई। सर्वऋतु विलास स्थित महावीर दिगम्बर जैन मंदिर में चातुर्मास को विराजित राष्ट्रसंत पुलक सागर महाराज का चातुर्मास धूमधाम से सम्पादित हो रहा है। शुक्रवार को प्रात:कालीन वेला में आचार्य पुलक सागर महाराज का केशलोंच कार्यक्रम का आयोजन हुआ। शाम को आचार्यश्री के दर्शनार्थ जैन जागृति सेन्टर उदयपुर के सदस्य भी पंहुचे व आचार्य संघ को श्रीफल अर्पित कर आशीर्वाद लिया।
चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विनोद फान्दोत ने बताया कि सर्वऋतु विलास स्थित श्री महावीर जिनालय के तत्वावधान में राष्ट्रसंत आचार्य पुलक सागर महाराज ससंघ का चातुर्मास आराधना-साधनामय चल रहा है। आचार्य श्री ने महावीर जिनालय भवन में स्वहस्तों से केशलोच संपन्न किया। इस मौके पर आचार्यश्री ने केशलोचन का महत्व बताते हुए कहा कि जैन मुनि वर्ष में दो बार सिर व दाढ़ी-मूछ के बाल खींचकर निकाल देते हैं, जो कि लाखों वर्षों से यह संतों की साधना पद्धति चली आ रही है। एक बार केशलोच करवाने से छ: माह के उपवास का लाभ मिलता है और स्वयं की सहनशीलता का मापदंड भी ज्ञात होता है। संत सदा स्वावलंबी होते है, वे किसी को भी कष्ट न देते हुए स्वयं की साधना करते हैं। चाहे कैसा भी कष्ट क्यों न हो, वे समभाव में उसे सहन करते हुए मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होते है। यह बात राष्ट्रसंत आचार्य पुलक सागर महाराज ने धर्मसभा में कहीं।
चातुर्मास समिति के कार्याध्यक्ष आदिश खोड़निया ने बताया आचार्य ने कहा कि केशलोचन करते हुए जैन संत स्व-अवलोकन भी करते है। लेश मात्र भी क्लेश अपने जीवन में न रहे, यही संदेश केश लोच की प्रक्रिया देती है। केश लोच को जैन संतों का सबसे कठोर तप माना गया है। आम आदमी के जीवन में यदि एक बार गलती से बाल उखड़ जाए तो वह दर्द के मारे कांपने लगता है, लेकिन जैन साधु-साध्वीजी तो बिना किसी औजार के सीधे अपने हाथों से बालों को खींचकर निकाल देते हैं।भवन में मुनिश्री के केशलोच को देखते हुए आचार्यश्री के केशलोच की अनुमोदना की।

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