24 News Update जयपुर। राजस्थान में अगले साल प्रस्तावित पंचायतीराज और शहरी निकाय चुनावों से पहले सरकार एक बड़ा बदलाव करने की तैयारी में है। चुनाव लड़ने के लिए शैक्षणिक योग्यता को दोबारा अनिवार्य करने का रोडमैप लगभग तैयार हो चुका है। यदि प्रस्तावों को अंतिम मंजूरी मिलती है तो अनपढ़ उम्मीदवार पार्षद से लेकर सरपंच, प्रधान, प्रमुख और मेयर जैसे पदों के लिए चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।
सरकार के स्तर पर पंचायतीराज और शहरी निकाय—दोनों चुनावों के लिए अलग-अलग प्रस्ताव मुख्यमंत्री को भेजे गए हैं। शहरी विकास एवं आवासन मंत्री ने निकाय चुनावों से जुड़े प्रस्ताव भेजे हैं, जबकि पंचायतीराज मंत्री ने ग्रामीण निकायों के लिए शैक्षणिक योग्यता लागू करने का मसौदा तैयार कर मंजूरी के लिए आगे बढ़ाया है।
प्रस्तावों के अनुसार सरपंच पद के लिए न्यूनतम 10वीं पास होना अनिवार्य करने पर विचार किया जा रहा है। वहीं शहरी निकायों में पार्षद पद के लिए 10वीं या 12वीं में से किसी एक शैक्षणिक योग्यता को लागू करने का विकल्प रखा गया है। इसका उद्देश्य स्थानीय निकायों में प्रशासनिक समझ और निर्णय क्षमता को मजबूत करना बताया जा रहा है।
पंचायतीराज मंत्री मदन दिलावर उर्फ खर्रा ने स्पष्ट किया है कि शैक्षणिक योग्यता लागू करने के लिए मौजूदा पंचायतीराज अधिनियम और नगरपालिका कानून में संशोधन करना होगा। मुख्यमंत्री स्तर से हरी झंडी मिलने के बाद दो अलग-अलग विधेयक लाए जाएंगे, जिन्हें विधानसभा के आगामी बजट सत्र में पारित कराने की तैयारी है।
गौरतलब है कि इससे पहले वर्ष 2015 में तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने भी पंचायतीराज और शहरी निकाय चुनावों में शैक्षणिक योग्यता लागू की थी। उस समय चुनाव से ठीक पहले कैबिनेट से सर्कुलेशन के जरिए मंजूरी ली गई थी। तब वार्ड पंच के लिए कोई शैक्षणिक बाध्यता नहीं थी, लेकिन सरपंच के लिए आठवीं पास और टीएसपी क्षेत्रों में पांचवीं पास होना अनिवार्य किया गया था। पंचायत समिति और जिला परिषद सदस्यों के लिए 10वीं पास की शर्त लागू की गई थी, जबकि पार्षद और निकाय प्रमुखों के लिए भी 10वीं पास होना जरूरी था।
हालांकि 2018 में सत्ता में आई अशोक गहलोत सरकार ने कांग्रेस के चुनावी वादे के अनुरूप 2019 में इस प्रावधान को पूरी तरह हटा दिया था। कांग्रेस ने शैक्षणिक योग्यता को जनप्रतिनिधित्व के खिलाफ बताते हुए इसका तीखा विरोध किया था।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2015 में शैक्षणिक योग्यता लागू होने से पंचायतीराज चुनावों में भाजपा को ग्रामीण इलाकों में स्पष्ट फायदा मिला था। कांग्रेस की तुलना में भाजपा के अधिक जनप्रतिनिधि जीतकर आए थे। अब एक बार फिर भाजपा के भीतर से ही इस व्यवस्था को दोबारा लागू करने की पैरवी तेज हुई, जिसके बाद यह प्रस्ताव फिर से सरकार के एजेंडे में आया है।
अब सबकी नजर मुख्यमंत्री के निर्णय और बजट सत्र में पेश होने वाले विधेयकों पर टिकी है, जो यह तय करेंगे कि आने वाले चुनावों में शिक्षा राजनीति की नई शर्त बनेगी या नहीं।
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