24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। सचमुच नेता और जन प्रतिनिधि बहुत मोटी खाल के होते हैं। अपने लाभ के लिए वे पब्लिक मेंडेट तक को दांव पर लगा देते है। जनता को करोड़ों का चूना बहुत ही सफाई से लगाते हैं और बड़ी मासूमियत से साफ बच निकलते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि वे जिस इको सिस्टम में काम करते हैं वहां कोई जांच नहीं, कोई पूछताछ नहीं, कोई कार्रवाई का खतरा नहीं। जन प्रतिनिधि पूछने पर मासूमियत से कहते हैं कि-हम मामले की स्टडी कर रहे हैं। जबकि वे कार्यक्रम में आमंत्रित किए गए।
आज उदयपुर की जनता को करोड़ों का चूना लगा कर महाभ्रष्ट नेताओं व अफसरो ंकी मिलीभगत से पासपोर्ट सेवा केंद्र की सुभाषनगर सामुदायिक भवन से लेकसिटी मॉल में शिफ्टिंग हो गई। काम शुरू हो गया। सुबह अधिकारी उद्घाटन के लिए पहुंच गए लेकिन वे नहीं आए जिनको फीता काटना था। मेडिकल इमरजेंसी बता उद्घाटन टाल दिया गया। सवाल उठा कि क्या सचमुच मेडिकल इमरजेंसी आ गई या फिर उपर से ही सवाल उठ गए कि ये क्या गोरखधांधा हो रहा है????

अब जनता के करोड़ों खर्च करके बनाया गया पासपोर्ट सेवा केंद्र, एक रूपए की लीज पर दिया गया पासपोर्ट सेवा केंद्र में से सेवा का भाव आज पूरी तरह से तहस-नहस हो गया। कंपनियों, नेताओं, जनप्रतिनिधियों व अफसरों की मिलीभगत से उदयपुर की जनता की जेब को करोड़ों फटका लग गया। आपको बता दें कि लेकसिटी मॉल में नए पासपोर्ट सेवा केंद्र का आज 25 अगस्त को होने वाला उद्घाटन अंतिम समय में स्थगित कर दिया गया। पहले यह घोषणा की गई थी कि विदेश राज्य मंत्री डॉ. कीर्तिवर्धन सिंह स्वयं आकर केंद्र का शुभारंभ करेंगे, लेकिन बाद में कहा गया कि मुख्य पासपोर्ट अधिकारी डॉ. के.जी. श्रीनिवासन दिल्ली से उद्घाटन करेंगे। अचानक मेडिकल इमरजेंसी का हवाला देकर उनका दौरा टल गया। कोटा से आए क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी यशवंत माथे ने बताया कि केंद्र लेकसिटी मॉल से शुरू गया है।
अब सुभाषनगर स्थित भवन में जो करोड़ों का खर्चा हुआ, उसका क्या होगा यह बताने वाला कोई नहीं है। दिलचस्प बात है कि इस मामले में नगर निगम से लेकर उपर के स्तर तक जबर्दस्त मिलीभगत सामने आ रही है। निगम ने आखिर बिना किराया वासूले कैसे एक निजी कंपनी को अपना परिसर खाली करके जाने दिया, यह इतना बड़ा सवाल है कि यह यहां के अफसरों की ईमानदारी पर सवाल खड़े कर रहा है। जन प्रतिनिधियों के हिस्से में यह था कि वे ऑब्जेक्शन करते मगर वे जानते हुए भी किसी उपरी दबाव में अनजान बन गए, यहां तक कि निःशब्द हो गए। मामला करोड़ों का है, मामला जनता का है, लेकिन इनका चुप होना साफ बता रहा है कि मिलीभगत यहां भी हुई है।

निगम भवन से मॉल तक का विवादास्पद सफर
साल 2016 में नगर निगम उदयपुर ने सुभाष नगर स्थित सामुदायिक भवन को पासपोर्ट सेवा केंद्र के अनुरूप विकसित करने के लिए 39 लाख 12 हजार 632 रुपये खर्च किए थे। ग्राउंड फ्लोर पर प्रतीक्षालय बनाने पर लगभग 10 लाख रुपये और खर्च हुए। कुल 7328 वर्गफीट क्षेत्रफल में बने इस भवन को विदेश मंत्रालय को 20 साल की लीज पर मात्र एक रुपये टोकन मनी में दिया गया। तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इसका नाम महाराणा प्रताप भवन रखा और उद्घाटन किया।

टीसीएस और किराए का विवाद
इसके बाद वर्ष 2022 में पासपोर्ट सेवा 2.0 लागू होने पर निजी कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) को 10 वर्षों के लिए ठेका दिया गया। टीसीएस ने केंद्र संभालते ही नगर निगम से लीज डीड अपने नाम करने की मांग की। जिस पर निगम ने आपत्ति जताई कि निजी कंपनी को लीज कैसे दी जा सकती है। नगर निगम ने डीएलए दर के अनुसार भवन का किराया 1 लाख 52 हजार रुपये प्रतिमाह और जीएसटी तय कर लिया। जबकि टीसीएस केवल 60 हजार रुपये प्रतिमाह देने पर अड़ी रही। इस खींचतान में निगम को अब तक 36 माह का बकाया किराया और जीएसटी मिलाकर 1 करोड़ रुपये से अधिक का बकाया है, जनता के पैसों का नुकसान हो चुका है। सवाल है कि इसकी वसूली कौन करेगा?? क्यों नहीं यह पैसा ऐसी नीतियां बनाने वाले और लापरवाही करने वाले अधिकारियों के वेतन से वसूल किया जाए???

निगम के नहीं, उदयपुर की जनता के करोड़ों डूबे
यह वही नगर निगम जो यूडी टेक्स जमा नहीं होने पर जीना मुहाल कर देता है। सीज की कार्रवाई करके मीडिया में खबरें जारी करता है लेकिन इस मामले में उपर से नीचे तक सबने चुप्पी साध ली। खबर जारी करना तो बहुत दूर की कौड़ी है। निगम की ओर से 2016 में किए गए 39 लाख रुपये से अधिक के निर्माण व्यय की भरपाई भी आज तक नहीं हुई है। यह पैसा विदेश मंत्रालय के खाते में बकाया है। इस पैसे की भरपाई कौन करेगा?? यह सवाल बहुत बडा है और अगर यह वापस नहीं लिया जाता है तो हम इसे मिलीभगत से हुआ महाघोटाला ही कहेंगे। प्रतीक्षालय और अन्य संरचनाओं पर किए गए अतिरिक्त खर्च लगभग 40 लाख रुपये भी अटके पड़े हैं वे कब आएंगे। याने उदयपुर की जनता को एक बार नहीं, कई बार मूर्ख बनाया गया और जेब काट दी गई। जनता के टैक्स से बनाए गए भवन और उसमें लगाए गए करोड़ों रुपये की राशि आज तक वापस नहीं आई।

अचानक स्थान परिवर्तन और सवाल
अब पासपोर्ट सेवा केंद्र को लेकसिटी मॉल में शिफ्ट कर दिया गया है। इससे यह सवाल उठ रहे हैं कि जब निगम के भवन में करोड़ों खर्च कर केंद्र पहले से ही कार्यरत था तो मॉल में स्थानांतरित करने की आवश्यकता क्यों पड़ी। क्या यह निर्णय किसी दबाव में लिया गया या किसी निजी लाभ के लिए? क्या कोई कमिशन का खेल था या कुछ और??? कॉमन सेंस की बात है कि लेकसिटी की जनता ने 1 रूपए टोकन मनी पर भवन दे रखा है, उस काम के लिए अगल से भवन ना जाने कितने लाखों या हजारों के किराए पर लिया गया। वह पैसा भी तो जनता की ही जेब पर डाक डाल कर काटा जाएगा??? ऐसे में ऑडिट होनी चाहिए, भ्रष्टाचार की जांच होनी चाहिए कि आखिर ऐसा फैसला किया किसने, किसके लाभ के लिए???

नेताओं और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी
उद्घाटन समारोह में न तो कोई बड़ा जनप्रतिनिधि मौजूद रहा और न ही नगर निगम की ओर से किसी ने इस विवाद पर आवाज उठाई। विपक्ष और सत्ता पक्ष, दोनों की रहस्यमयी चुप्पी से यह संदेह गहराता है कि कहीं यह मामला समझौते और मिलीभगत से जुड़ा तो नहीं है। ऐसा लगता है कि उदयपुर में दोनों प्रमुख दल बड़े मुद्दों पर साथ मिलकर हैंडल करते हैं और साझा चुप्पी साध लेते हैं। अब तो सवाल ये उठने लगे हैं कि कहीं लाभ का साझा गणित भी तो नहीं है????

जनता से विश्वासघात
2015 में तत्कालीन गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया और मेयर चन्द्रसिंह कोठारी ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को ज्ञापन देकर उदयपुर में पासपोर्ट सेवा केंद्र की मांग की थी। जनता के आंदोलन और लंबे इंतजार के बाद यह केंद्र अस्तित्व में आया। लेकिन अब स्थान परिवर्तन, किराया विवाद और करोड़ों रुपये की अनियमितताओं ने जनता के विश्वास को गहरी चोट दी है।

प्रमुख सवाल
नगर निगम द्वारा किए गए करोड़ों रुपये के खर्च की भरपाई कौन करेगा?
36 माह का बकाया किराया और जीएसटी वसूला कब जाएगा?
उदयपुर के टैक्स से बने भवन को छोड़कर निजी मॉल में केंद्र क्यों शिफ्ट किया गया?
जनप्रतिनिधि इस पूरे मामले पर चुप क्यों हैं?


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By desk 24newsupdate

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