24 News Update उदयपुर। शहर के पासपोर्ट सेवा केंद्र को लेकर हालिया संसद सत्र में उठाए गए सवालों और पुराने विवाद के बीच बड़ा विरोधाभास नजर आ रहा है। 5 दिसंबर 2025 को सांसद डॉ. मन्ना लाल रावत के सवालों के जवाब में विदेश मंत्रालय ने दावा किया कि उदयपुर पासपोर्ट सेवा केंद्र को बड़े परिसर में स्थानांतरित कर उन्नत अवसंरचना के साथ तैयार किया गया है। लेकिन, यह वही सवाल है जिसे सांसद ने एक साल पहले नवंबर 2024 में पूछा था। तब मंत्रालय ने कहा था कि केंद्र को अपग्रेड करने और स्थानांतरित करने पर “विचाराधीन” है। सवाल उठता है—क्या वास्तव में “उन्नयन” हुआ या केवल शिफ्टिंग की गई?
आपको बता दें कि 2017 में नगर निगम ने उदयपुर के सामुदायिक भवन को केवल 1 रुपए में सरकार को पासपोर्ट सेवा केंद्र के लिए दे दिया। स्थानीय जनता ने सुविधा के लिए अपने सामुदायिक भवन का त्याग किया। इसके बाद जब निजी कंपनी टीसीएस के हाथों में यह सेवा गई तो उसने चुपचाप तीन साल तक भवन मुफ्त में कब्जाए रखा।
किराया मांगे जाने पर बहाने बनाए। उसके बाद गुपचुप तरीके से नया कार्यालय मॉल में शिफ्ट कर दिया। इस शिफ्ट करने के प्रोसेस को अब संसद में उन्नयन बताया जा रहा है। जबकि इसके लिए उदयपुर में भारी विवाद हुआ था। बार बार बहानेबाजी करते हुए उद्धाटन टाला गया व अंत में गुपचुप तरीके से रिटायरमेंट की दहलीज पर खड़े अफसर उद्घाटन करके चुपचाप चले गए थे।
आपको बता दें कि टीसीएस के नामे लाखों का किराया बकाया है जिसका निगम ने नोटिस दिया हुआ हैं उसे चुकाए बिना चुपचाप सुभाष नगर वाला सामुदायिक भवन पासपोर्ट ओफिस खाली कर टीसीएस चलती बनी। ठेंगा दिखा दिया पूरे प्रशासन को। क्योंकि इसमें बड़े नेताओं का प्रश्रय व उच्च अधिकारियों का हाथ था। सांसद उस समय भी मौनी बाबा बनके बैठ गए थे।
अब जनता पूछ रही है: “क्या हमारी दी हुई सुविधा पर निजी कंपनी मुफ्त कब्जा कर सकती है और जिम्मेदार अधिकारी चुप रह सकते हैं?” टीसीएस ने पुराने भवन में “सांप और नाले की बदबू” को बहाना बनाया था। लेकिन सवाल यही है—तीन साल तक वही भवन क्यों चला? नए मॉल परिसर में उद्घाटन चोरी-छिपे किया गया।
सांसद की चुप्पी और लोकसभा में गोलमाल
एक साल पहले सांसद ने पूछा कि उदयपुर पीएसके को क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय में अपग्रेड किया जाएगा या नहीं। इस बार सवाल केवल “कब उन्नत होगा?” तक सीमित रह गया। जब टीसीएस ने भवन कब्जाया और बकाया राशि बची, तब सांसद चुप रहे।
पिछले साल राज्यसभा में सांसद चुन्नीलाल गरासिया ने भी यही मुद्दा उठाया था पर कोई जवाब नहीं आया।
जनता सवाल कर रही है कि क्या यह मुद्दा सिर्फ कागज़ी सवाल बनकर रह गया?
कौन जिम्मेदार है, जिनके कारण करोड़ों की जनता की जेब पर चपत लगी?
इस मुद्दे पर शहर बार-बार धोखा खा रहा है। सांसद और अफसर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। हजारों लोग अभी भी जयपुर और कोटा के चक्कर काट रहे हैं। उदयपुर को वास्तविक क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय कब मिलेगा? जहां नस दबानी है वहां पर सांसद दबा ही नहीं रहे हैं। या तो उनकी चल नहीं रही है या फिर कोई दबाव काम कर रहा है।
जो चपत टीसीएस ने लगाई, उसकी भरपाई कौन करेगा यह सवाल संसद मे ंउठाने का साहस ही नहीं जुटा पाए हमारे माननीय सांसद। उदयपुर की जनता बार-बार अपने अधिकारों, त्याग और विश्वास के साथ खिलवाड़ होते देख रही है। सांसद और अफसरों की चुप्पी इस विश्वासघात को और गहरा कर रही है।
उदयपुर अब खुद से पूछ रहा है कि कब तक हमारी आवाज़ सुनी जाएगी, और कब तक शहर को धोखा मिलता रहेगा?
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