24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। राजस्थान में पुलिस थानों में करोड़ों रुपए खर्च कर लगाए सीसीटीवी कैमरे आम नागरिकों की निगरानी और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए थे। लेकिन कई मामलों और आरटीआई खुलासों ने सवाल खड़ा कर दिया है कि आम जनता को ही फुटेज नहीं मिल रहे, तो इन कैमरों का असली उद्देश्य क्या रह जाता है। जब भी फुटेज मांगो, नया बहाना तैयार मिलता है। जबकि पुलिस को तो उल्टा सीसीटीवी फुटेज देकर आमजन में विश्वास के अपने प्राइम मोटो को ही साबित करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश और उनकी अनुपालना
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 और 2020 में स्पष्ट आदेश दिए थे कि थानों के सभी हिस्सों में कैमरे लगाना अनिवार्य है, ताकि मानवाधिकारों का उल्लंघन रोका जा सके। 24 न्यूज अपडेट में पत्रकार जयवंत भैरविया की मुहिम के बाद हाल ही में राजस्थान में पुलिस हिरासत में 11 मौतों के मामले में कोर्ट ने सख्त सुनवाई की। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने राजस्थान सरकार को निर्देश दिया कि हर थाने में कितने कैमरे हैं और वे कहां लगे हैं, इसकी जानकारी दो हफ्ते के भीतर दी जाए। निगरानी इंसानी हस्तक्षेप पर नहीं, बल्कि एआई आधारित प्रणाली से होनी चाहिए।
लेकिन राजस्थान में राज्य स्तर पर पुराने आदेशों की ही अनुपालना नहीं हुई। कई थानों ने तकनीकी कारण, स्टोरेज न होना, रिकॉर्ड डिलीट हो जाना या जांच के हवाले से आम जनता को फुटेज उपलब्ध कराने से मना कर दिया। आरटीआई के माध्यम से लगातार मांगने पर भी पुलिस ने बहाने बनाना जारी रखा। क्योंकि पुलिस को पता था कि जो नेता व अफसर, जन प्रतिनिधि उनका थाने में होने वाले कामों के लिए बेकअप कर रहे हैं, वे उनको बचा लेंगे।
उदयपुर और अन्य जिलों में कई मामलों में फुटेज न देने के बहाने दिए गए। उदाहरण के लिएः सुखेर थाना, उदयपुर (नवंबर 2024) -तेजपाल मीणा की मौत; फुटेज तकनीकी कारणों से खराब बताया गया। गोगुंदा थाना (मई 2025) – सुरेंद्र देवड़ा की मौत; उपकरण पुराने होने का हवाला। कांकरोली, अलवर, खेतड़ी, परसाद, श्रीगंगानगर, जयपुर, भरतपुर, कोटा दृ विभिन्न मामलों में फुटेज नहीं दिया गया।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर फुटेज आम जनता तक नहीं पहुंचे, तो थानों में कैमरे केवल दिखावा बन जाते हैं।
अब आ गया स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का नया निर्देश
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अचानक राजस्थान का पुलिस सिस्टम आदर्श बन गया। उसको याद आ गया कि सीसीटीवी कैमरे तो जनता के हितों की रक्षा के लिए हैं। जबकि वही सिस्टम पांच साल से आदेशों को कूड़ेदान में डालकर उसका मजाक बनते देख रहा था। वही सिस्टम शिकायतों पर कुंडली मारकर बैठा था लेकिन सुप्रीम लताड़ पड़ते ही कागजी खानापूर्ति शुरू हो गई। अब स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो राजस्थान ने निर्देश जारी किए हैं कि सभी पुलिस थानों में लगे सीसीटीवी कैमरे का रिकॉर्ड नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए उपलब्ध कराया जाए। इसके अलावा, हर थाने में डिजिटल डिस्प्ले बोर्ड लगाया जाए, जिसमें लिखा होः “थाना परिसर सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में है। आवश्यकता होने पर नागरिक नियमानुसार सीसीटीवी फुटेज प्राप्त कर सकते हैं।” यह कदम पुलिस और जनता के बीच विश्वास बढ़ाने के लिए अहम माना जा रहा है।
नए आदेश की सीमाएं और गहराता संशय
विशेषज्ञ और नागरिक अधिकारों के लिए काम करने वाले लोग बताते हैं कि केवल आदेश जारी करने से काम नहीं चलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने जहां-जहां थानों में मौतों की सुनवाई की, वहां सीसीटीवी फुटेज सार्वजनिक करने का आदेश पहले भी दिया गया था, लेकिन लागू नहीं हुआ। ऐसे में नए आदेश की वास्तविक प्रभावशीलता पर संशय बना हुआ है।
जनप्रतिनिधियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में
हाल ही में डूंगरपुर के डोवड़ा थाना में हुई मौत के मामले में तीन दिन आंदोलन हुआ, लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि ने सीसीटीवी फुटेज सार्वजनिक करने की मांग नहीं की। समझौते में भी इस मुद्दे का कोई उल्लेख नहीं हुआ। इससे सवाल उठता है कि आगे भी आम जनता को फुटेज मिलेगी या नहीं।
करोड़ों रुपए का खर्च, जनता का हक
राज्य सरकार ने थानों में कैमरे लगाने और उनकी मेंटेनेंस पर करोड़ों रुपए खर्च किए। प्रशिक्षण भी दिया गया। लेकिन अगर फुटेज आम नागरिक तक नहीं पहुंचते, तो सारा खर्च और मानव संसाधन व्यर्थ हो रहे हैं।

