24 News Udpate उदयपुर। नगर निगम की नींद तब खुलती है जब दीवारें खड़ी हो चुकी होती हैं, छतें ढल चुकी होती हैं और मंजिलें आकार ले चुकी होती हैं। प्रताप नगर क्षेत्र में मंगलवार को हुई एक बड़ी कार्रवाई ने यह सवाल फिर से खड़ा कर दिया है कि जब इतना बड़ा अमला, इंजीनियर, निरीक्षक, राजस्वकर्मी और भवन शाखा के अधिकारी नगर निगम में कार्यरत हैं, तो अवैध निर्माण शुरू ही क्यों होने दिया जाता है?
प्रताप नगर में छत पंचर, लेकिन अफसरों की जवाबदेही शून्य
प्रताप नगर ई-क्लास निवासी भरत सेनानी द्वारा बिना स्वीकृति के एक अतिरिक्त मंजिल बना दी गई। जब पूरा ढांचा तैयार हो गया, तब जाकर नगर निगम की नींद खुली और अधिकारियों की फौज छत पंचर करने पहुंची। जबकि निगम के पास स्थानीय निरीक्षण, रूटीन जांच और निर्माण निगरानी जैसी व्यवस्थाएं पहले से मौजूद हैं।
फिर सवाल यह है कि इतना सब होने तक निगम के अफसर क्या कर रहे थे? जो लोग महीने भर में निर्माण की प्रगति पर नजर रखते हैं, वे इस पूरे निर्माण को क्यों नहीं रोक पाए? क्या इन अफसरों पर कोई जवाबदेही तय की जाएगी या फिर केवल आमजन और भवन मालिक ही निशाना बनते रहेंगे? भरत सेनानी द्वारा कोर्ट में चुनौती देने के बाद भी न्यायालय ने कोई स्थगन आदेश नहीं दिया, जिससे निगम को कार्रवाई का मौका मिला, लेकिन यह केवल तकनीकी जीत है, नीतिगत नहीं। यदि अधिकारी समय पर सक्रिय होते, तो यह निर्माण कभी होता ही नहीं। अब जब लाखों रुपये खर्च हो चुके, सामग्री बर्बाद हो चुकी और समय जा चुका, तो कार्रवाई किसके हित में हुई?
निगम की अपील-एकतरफा चेतावनी या अपनी नाकामी पर पर्दा?
निगम आयुक्त अभिषेक खन्ना ने एक बार फिर नागरिकों से अपील की है कि वे बिना स्वीकृति निर्माण न करें। लेकिन जनता का भी सवाल है कि जब निर्माण शुरू होता है, उसकी नींव रखी जाती है, पहली ईंट लगती है तब निगम कहां रहता है? क्या नगर निगम का काम केवल डंडा चलाना और तोड़फोड़ करना रह गया है, या फिर संरचनात्मक नियंत्रण और निगरानी भी उसकी जिम्मेदारी है?
कठघरे में सिस्टम, आंख मूंदे अधिकारी
यह पहली घटना नहीं है। उदयपुर में हर साल दर्जनों निर्माण बिना स्वीकृति के हो जाते हैं और निगम की मशीनरी तब हरकत में आती है जब छत पर आरसीसी पड़ चुका होता है। इससे न केवल भवन मालिक का नुकसान होता है, बल्कि सरकारी संसाधनों और करदाताओं की मेहनत का पैसा भी बेवजह बर्बाद होता है। जनता का सीधा सवाल यह है कि जिन अधिकारियों की ड्यूटी ही अवैध निर्माण पर नजर रखना है, उन पर क्या कार्रवाई होगी?
अब जरूरी है जवाबदेही तय करना
शहर को अवैध निर्माण से बचाने के लिए केवल तोड़फोड़ नहीं, पहले रोकथाम जरूरी है। इसके लिए जरूरी है किःस्थानीय स्तर पर पारदर्शी निरीक्षण तंत्र बने, हर निर्माण गतिविधि का डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम लागू हो,
भवन अनुज्ञा शाखा और क्षेत्रीय निरीक्षकों की जवाबदेही तय हो, गलती पर सिर्फ मकान मालिक नहीं, अफसर भी जवाबदेह हों, जब तक जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई नहीं होती, तब तक यह ‘छत पंचर मॉडल’ केवल दिखावा ही रहेगा-देर से जागने वाली व्यवस्था का प्रतीक, जो खुद अपनी नाकामी पर पर्दा डालती है।

