Site icon 24 News Update

जमवारामगढ़ में क्लाउड सीडिंग परीक्षण का शुभारंभ क्लाउड सीडिंग द्वारा रामगढ़ झील को पुनर्जीवित कर जल संकट दूर करना ही हमारी प्राथमिकता- डॉ. किरोडीलाल मीणा

Advertisements

24 News Update जयपुर। कृषि मंत्री डॉ. किरोडीलाल मीणा के अथक प्रयास से मंगलवार को जवमारामगढ़ बांध के इलाके में ड्रोन से कृत्रिम बारिश करवाने की कार्यवही शुरु की गई।

विज्ञान, आधुनिक तकनीक तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता के अद्भुत समन्वय के क्लाउड सीडिंग के माध्यम से करवाई जा रही कृत्रिम वर्षा को देखने के लिए भीड़ अनुमान से अधिक आई। भीड़ को कम करके ड्रोन को उड़ाने का प्रयास भी किया गया परन्तु भीड़ अधिक होने से नेटवर्क जाम हो गया, जिससे जीपीएस सिंगल लॉस होने से ड्रोन ऑटो लैंडिंग मोड़ में आ जाने के कारण लेंड हो गया। अबकी बार भीड़ को कम करके
मल्टी नेटवर्क जैमर लगाये जाएँगे। जिससे ये समस्या नहीं आयेगी और कृत्रिम वर्षा कराई जाएगी।

कृत्रिम बारिश के लिए वैज्ञानिकों की टीम जयपुर में है जो लगातार अपने स्तर पर ड्रोन से कृत्रिम बारिश का परीक्षण कर रहे हैं। रामगढ़ बांध पर कृत्रिम बारिश के प्रयोग के शुभारंभ पर माननीय कृषि मंत्री डॉ. किरोडी लाल मीणा की अध्यक्षता में एक कार्यक्रम का अयोजन किया गया, जिसने हजारों की तादात में लोगों ने भाग लिया है।

डॉ. किरोडीलाल मीणा ने कहा कि इस क्लाउड सीडिंग का मुख्य उद्देश्य रामगढ़ झील को पुनर्जीवित करना, जल संकट को कम करना और क्षेत्र में पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन बहाल करना है। यह एक अनुसंधान एवं विकास आधारित पायलट प्रोजेक्ट है, जिसमें आधुनिक ड्रोन बेस्ड क्लाउड सीडिंग तकनीक और एआई का उपयोग कर वर्षा को वैज्ञानिक तरीके से बढ़ावा दिया जायेगा।
भारत में पहली बार ड्रोन बेस्ड क्लाउड सीडिंग की जा रही है। इसमें ‘हाइड्रो ट्रेस’ नाम का एआई पावर्ड प्लेट फॉर्म इस्तेमाल हो रहा है, जो रियल टाइम डेटा, सेटेलाइट इमेजिंग और सेंसर नेटवर्क की मदद से सही समय और सही बादलों को टारगेट करता है। यह 60 दिनों तक चलने वाला पायलट मिशन है।
उन्होंने बताया कि ड्रोन बेस्ड क्लाउड सीडिंग में ड्रोन को बादलों के पास भेजा जाता है, जहां यह सोडियम क्लोराइड या अन्य सुरक्षित सीडिंग ऐजेंट्स छोड़ता है। इससे बादलों में मौजूद नमी के कण आपस में मिलकर पानी की बूंदों में बदल जाते हैं और बारिश होती है। यह मिशन 12 अगस्त से शुरु होकर लगभग 60 दिनों तक चलेगा शुरुआती प्रभाव हमें तुरंत बारिश के रूप में दिखेगा, लेकिन लंबे समय में इसका असर झील के जल स्तर, भुमिगत जल भंडार और कृषि उत्पादन पर पड़ेगा।
कृषि मंत्री ने बताया कि यह तकनीक बिल्कुल सुरक्षित है और इसमें इस्तेमाल होने वाले एजेंट्स, बहुत कम मात्रा में और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार प्रयोग किये जाते हैं। यह मानव, पशु तथा फसलों के लिए हानिकारक नहीं हैं। इस पायलट प्रोजेक्ट के दौरान भी पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन किया जायेगा।
डॉ. किरोडीलाल मीणा ने कहा कि यह रामगढ़ में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरु किया जा रहा है। अगर यह सफल होता है तो हम देश और प्रदेश के अन्य सूखा प्रभावित इलाकों में भी इसे लागू कर सकते हैं, जिससे जल संकट कम होगा और कृषि को स्थायी पानी का स्रोत मिलेगा। इस प्रोजेक्ट द्वारा किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिलेगा, फसलों की पैदावार बढ़ेगी और सूखे का असर कम होगा। साथ ही भूमिगत जल भी रिचार्ज होगा जिससे लंबे समय तक फायदा रहेगा।

Exit mobile version