24 News Update उदयपुर। हर वर्ष 5 नवम्बर को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय प्रोस्थेटिक्स और ऑर्थोटिक्स दिवस उन मानवीय और तकनीकी प्रयासों का उत्सव है, जिनकी बदौलत अंग-विहीन व्यक्तियों को जीवन में फिर से चलने, आत्मविश्वास और खुशियों से भरा नया अध्याय लिखने का अवसर मिलता है। यह दिन उन अनगिनत मुस्कानों को समर्पित है जो कृत्रिम अंगों की सहायता से आत्मनिर्भर बन पाईं।
इसी दिशा में उदयपुर स्थित नारायण सेवा संस्थान पिछले दो दशकों से उल्लेखनीय कार्य कर रहा है। दिव्यांगजन पुनर्वास के क्षेत्र में यह संस्थान न केवल देश में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एक सशक्त पहचान बना चुका है। संस्थान ने देशभर में सैकड़ों पुनर्वास शिविर आयोजित कर हजारों दिव्यांग भाइयों-बहनों के जीवन में गतिशीलता और आत्मसम्मान लौटाया है। यही नहीं, भारत की सीमाओं से परे जाकर संस्थान ने केन्या और दक्षिण अफ्रीका में भी कई नि:शुल्क कृत्रिम अंग वितरण शिविर आयोजित किए हैं, जहाँ अब तक 3,000 से अधिक जरूरतमंदों को नया जीवन मिला है। संस्थान के अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल के अनुसार, “हम केवल कृत्रिम अंग प्रदान नहीं करते, बल्कि संपूर्ण पुनर्वास की प्रक्रिया पर कार्य करते हैं।” वे बताते हैं कि लाभार्थियों को कृत्रिम हाथ-पैर लगाने के बाद चलना, उठना-बैठना और दैनिक कार्यों के प्रशिक्षण दिए जाते हैं, ताकि वे दूसरों पर निर्भर न रहकर सक्षम और आत्मविश्वासी जी वन जी सकें। अग्रवाल ने बताया कि आने वाले वर्ष में 15,000 कृत्रिम अंग प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया है। अब तक संस्थान द्वारा 40,000 से अधिक कृत्रिम अंग लगाए जा चुके हैं। संस्थान की अत्याधुनिक कृत्रिम अंग कार्यशाला में 40 प्रशिक्षित तकनीकी विशेषज्ञ प्रतिदिन संवेदना और दक्षता के साथ कार्य करते हैं। इसकी मासिक उत्पादन क्षमता 1500 से 1800 कृत्रिम अंगों की है, जिससे अधिकाधिक लाभार्थियों को समय पर गुणवत्तापूर्ण सेवा मिल रही है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रोस्थेटिक्स और ऑर्थोटिक्स दिवस पर विशेष रिपोर्ट, दिव्यांगों को आत्मसम्मान और नई राह दे रहा है नारायण सेवा संस्थान

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