24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। आज नगर निगम से कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं जिसमें यूडी टैक्स कलेक्शन के जश्न की खुशी और आयुक्त साहब का पगड़ी पहना कर स्वागत का उल्लास झलकता दिखाई दिया। यह जश्न लक्ष्य के मुकाबले 109.88 प्रतिशत ज्यादा टेक्स वसूली का था। टैक्स कलेक्शन के नए कीर्तिमानों के इस जश्ने-खास ने कई सवाल खड़े किए हैं। परसेप्शन यह बनाया जा रहा है कि टैक्स वसूल में कहीं जरूरत से ज्यादा सख्ती तो नहीं की गई? नियमों को तोड़ मरोड़ कर तो वसूली नहीं की गई? वसूली के इस जश्न को पब्लिक सपोर्ट नहीं होना साफ जाहिर कर रहा है कि अब उन बिंदुओं पर चर्चा की खास जरूरत है जो चर्चा में पीछे छूट गए। सरकारी मशीनरी ने राजनेताओं की अनुपस्थिति में निजी मशीनरी के साथ मिलकर जो टेक्स वसूली का कीर्तिमान रचा, उसमें शहरवासियों के क्या दुख-दर्द और गिले-शिकवे रहे, उन पर भी खुलकर बात होनी चाहिए। इन चमकती पगड़ियों के पीछे किसी को लगान वसूली जैसी फीलिंग तो नहीं आ रही है? कोई टेक्स चुकाने के लिए कर्जे में तो नहीं डूब गया। किसी ने अपनी इज्जत बचान के लिए रातों-रात बरसों की मेहनत की कमाई को दांव पर तो नहीं लगा दिया? जो लोग आम जनता से बेरूखी से पेश आए, जिन्होंने गेटआउट जैसे शब्दों का प्रयोग कर कलेक्टर बनने के ख्वाब संजोए, अपने चेम्बर में आत्म प्रशंसा में तल्लीन होकर ताने बाने बुने, चर्चा आज उन पर भी हो रही है।
विसंगतियों का भरपूर फायदा उठाया
यूडी टेक्स की वसूली के नियम विसंगतियों का पिटारा है। इसका भी पूरा फायदा उठाया गया। रेजिडेंशियल प्लॉट में कुल एरिया 27 सौ वर्गफीट से उपर है तो टेक्स लगता है। उसमें भी अगर आप वन टाइम टेक्स दे चुके हैं व निर्माण का कुल एरिया चेंज होता है तब यूडी टेक्स का डंडा वापस चालू हो जाता है। यह पहली बार पता चला। फार्मूले में निर्माण के क्षेत्र का उल्लेख ही नहीं है। यदि कहीं पर होगा तो वह सार्वजनिक क्यों नहीं है?? कॉमर्शियल के मामले में प्लाट या निर्माण का कुल एरिया 900 वर्गफीट से ज्यादा है तो टेक्स लगेगा मगर यहां केवल वसूली के लिए शहर के भीतरी इलाकों में मौजूद दायरे से बाहर आने वाली हवेली व छोटी दुकानें जो बरसों पहले बिक चुकी हैं, वे भी एक यूनिट में शामिल कर टेक्स की जद में ला दी गईं। सिंधी बाजार को 100 फीट रोड बता कर वसूली का नोटिस दे दिया गया व वसूल भी कर लिया गया। नियमों में विसंगतियों व कमियों का ऐसा ताना बाना रहा कि जनता डर के मारे व पगड़ी व पेढ़ी बचाने के लिए टेक्स का पैसा लेकर दौड़ी चली गई निगम के ऑफिस व जमा करवा कर निजात पाई। मन में डर रहा कि कहीं रात को सोकर उठे व सुबह दुकान सीज नहीं मिले। रोजगार संकट में ना आ जाएं। घर का राशन संकट में ना जा जाए। यह सब 2007 से अब तक नहीं हुआ था। यदि अब हुआ है तो क्या इसे जनता की नजरों में उपलब्धि कहा जाएगा??? अब इस वसूली की किसी विश्वसनीय संस्थान से पब्लिक ऑडिट करवाई जानी चाहिए ताकि दूध का दूध व पानी का पानी हो सके। यह भी सामने आ सके कि टेक्स किन पर बनता था, कितना व क्यों बना। केलकुलेशन का क्या मैथड रहा। वसूली के मापदंड क्या रहे? जिन्होंने अब तक नहीं वसूला उन पर क्या कार्रवाई की गई? कितनी बार व कब-कब नोटिस दिया गया। नोटिसों में समयांतराल कितना व क्या संगतिपूर्ण था? आदि के पारदर्शी जवाब अब निगम को दे ही देने चाहिए।
ऑनलाइन खुलासा क्यों नहीं
सबसे पहला सवाल यह उठ रहा है कि आखिर प्रचारित की गई सख्ती और कथित पारदर्शिता के बावजूद नगर निगम की ओर से टेक्स बकायादारों की सूची सार्वजनिक क्यों नहीं की गई? क्या अब की जाएगी या फिर किसी पोल के खुलने के डर से शायद कभी नहीं की जाएगी? जनता को यह जानने का हक है कि किसका कितना टेक्स कब से बकाया है? कार्रवाई के लिए नामों का चयन किस वरीयता के आधार पर किसने व कब व किस फार्मूले के आधार पर किया? यदि किया तो क्या सबका किया, यदि सबको किया व व्यवस्था पारदर्शी है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि पगड़ी वाले इसी जश्न की अगली कड़ी में सभी आंकड़े भी सार्वजनिक कर देंगे ।
क्यों किया इस काम को आउटसोर्स
टेक्स वसूली नगर निगम का आधारभूत काम है। सवाल उठ रहा है कि इसको आउटसोर्स क्यों किया गया। यदि तकनीकी अनुभव वाले इंजीनियर्स निगम में पहले से मौजूद हैं तो फिर उनकी देखरखे व उनकी ही अंतिम जिम्मेदारी में यह काम अंतिम रूप से संपन्न क्यों नहीं हुआ। एजेंसी के लोगों की कार्मिक व शैक्षणिक योग्यता भी सार्वजनिक की जानी चाहिए। एक और शिकायत यह रही कि एजेंसी वालों ने भी पता नहीं किस बेक सपोर्ट के चलते लोगों को उस मृदु मनोभाव का प्रदर्शन नहीं किया जिसकी अपेक्षा की जा रही थी। हर कार्रवाई के बाद आंकड़े ऑनलाइन नहीं करना सबसे बड़ी चूक रही। अब सवाल आता है राजनीति का। वही मशीनरी, वही लोग थे तो उन्होंने वसूली में राजनीतिक छत्रछायां के प्रभाव के चलते वसूली में जो अपनापन और अनमनापन दिखाया क्या उस पर सवाल नहीं उठने चाहिए?? इसके मायने तो यही हुए कि एक नया मॉडल सामने लाया जा रहा है कि राजनीति के चलते ही टेक्स वसूली में परेशानी हो रही थी। तब निगम में बोर्ड की जरूरत ही क्या है? क्योंकि उसके नहीं होते हुए भी आर्थिक तरक्की तो हो ही रही है जो कि चमकते आंकड़ों व उपलब्धियों का प्रमुख पैमाना है। यदि राजनीति के चलते अफसरों ने काम नहीं किया व एजेंसी सुस्त बैठी रही तो उन पर भी भारी पेनल्टी व पनिशमेंट का प्रावधान होना चाहिए।
कितना टेक्स जुटाया
नगर निगम ने मार्च 2025 तक 17 करोड़ रुपये टैक्स वसूलने का लक्ष्य रखा था, लेकिन 18.68 करोड़ रुपये की वसूली कर लक्ष्य का 109.88प्रतिशत पूरा किया। मार्च के अंत में ही 9 करोड़ रुपये वसूले गए जो कुल लक्ष्य (17 करोड़) का 52.94 प्रतिशत ही था। जनवरी से मार्च के बीच सख्त कार्रवाई व लगातार सीजिंग के बाद 14.68 करोड़ की अतिरिक्त वसूली हुई, जिससे लक्ष्य से अधिक टैक्स संग्रह हुआ।
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