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राजस्थान के भरतपुर जिले में रविवार को गुर्जर समाज के लोगों ने एक बार फिर रेलवे ट्रैक पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। आरक्षण सहित अन्य मांगों पर असहमति जताते हुए प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग को दो घंटे तक जाम रखा। यहघटना उस समय हुई जब पीलूपुरा में आयोजित महापंचायत पहले ही समाप्त हो चुकी थी।
सरकार के ड्राफ्ट से नहीं मिली सर्वसम्मति, भड़के प्रदर्शनकारी
गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति की ओर से आयोजित इस महापंचायत में राज्य सरकार ने मांगों पर एक मसौदा भेजा था। समिति के अध्यक्ष विजय बैंसला ने वह मसौदा पढ़कर लोगों को सुनाया, जिस पर अधिकांश लोगों ने सहमति जताई। इसके बाद महापंचायत को औपचारिक रूप से समाप्त घोषित कर दिया गया।
हालांकि, महापंचायत खत्म होने के बाद कुछ युवाओं और लोगों ने सरकार के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और शाम करीब 4:30 बजे पीलूपुरा के पास दिल्ली-मुंबई रेलवे ट्रैक पर जाकर कोटा-मथुरा पैसेंजर ट्रेन को रोक दिया। प्रदर्शनकारी दो घंटे तक ट्रैक पर डटे रहे।
रेलवे संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की कोशिश
प्रदर्शन के दौरान कुछ लोगों ने रेलवे ट्रैक को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। पटरियों को उखाड़ने के प्रयास किए गए, जिससे रेल यातायात की सुरक्षा पर भी संकट खड़ा हो गया।
स्थिति को बिगड़ता देख भरतपुर के कलेक्टर और एसपी मौके पर पहुंचे और आंदोलनकारियों से बातचीत कर शाम 6:30 बजे के आसपास ट्रैक को खाली कराया।
पुराना आंदोलन स्थल फिर से बना विरोध का केंद्र
जहां पर ट्रैक जाम किया गया, वह स्थल वर्ष 2007 और 2008 के आरक्षण आंदोलनों के समय भी प्रमुख केंद्र रहा था। पीलूपुरा स्थित कारवारी शहीद स्मारक से यह रेलवे ट्रैक महज 150 मीटर की दूरी पर है, जो हर बार आंदोलन का अहम बिंदु बनता रहा है।
मंत्री का बयान: “बातचीत के लिए सरकार तैयार, फिर विरोध क्यों?”
राज्य के गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेढम ने घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कुछ लोग सिर्फ सरकार के खिलाफ बोलने की जिद पर अड़े हुए हैं। उन्होंने कहा, “जब सरकार खुद बिना किसी आंदोलन के संवाद के लिए तैयार है, तब सड़क या ट्रैक पर उतरने की क्या जरूरत है? लोकतंत्र में हर किसी को अपनी बात कहने का हक है, लेकिन जिम्मेदारी भी जरूरी है।”
आगे की राह
ट्रैक से भीड़ हटाने के बाद फिलहाल स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन आंदोलन की संभावनाएं अब भी बनी हुई हैं। समाज के कुछ वर्ग सरकार के प्रस्ताव से संतुष्ट नहीं हैं और आगे की रणनीति पर विचार कर रहे हैं।
इस घटना ने एक बार फिर दिखा दिया है कि आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सिर्फ औपचारिक प्रस्ताव नहीं, बल्कि सभी पक्षों की वास्तविक भागीदारी से समाधान की आवश्यकता है।

