24 न्यूज अपडेट उदयपुर। वैसे तो हम रोज ही सुबह घर पर आने वाली कचरा संग्रहण गाड़ी पर सुनते हैं कि नगर निगम उदयपुर की शान पुरानी है लेकिन इस शान में हर बार नए चार चांद लगाने कोई ना कोई घोटाला या महाघोटाला सामने आ ही जाता है। पहले 272 प्लॉट प्रकरण सहित अन्य प्रकरणों में निगम की किरकिरी हुई तो अब पदोन्नति घोटाला सामने आने के बाद कार्यालय उप निदेशक क्षेत्रीय स्थानीय निकाय विभाग उदयपुर की कृपा से निगम की छवि धूल में मिलती हुई दिखाई दे रही है। नगर निगम उदयपुर में टिण्डल से सहायक अग्निशमन अधिकारी के पद पर की गई पदोन्नति में बड़ा घोटाला सामने आया है। इसमें एक ऐसे पद पर पदोन्नति कर दी गई जो अस्तित्व में ही नहीं था। उस पर शिकायत हुई तो चार साल तक सरकारी लवाजमा राजनेताओं की वरद हस्त के चलते चुप बैठा रहा व जांच-जांच का खेल खेलता रहा। अब जाकर जब मामले में कार्रवाई हुई है तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आई है। इस मामले में अब पदावनित की अनुशंसा की गई है। केवल डिमोशन से ही काम चल जाएगा या फिर असली गुनहकार कभी सामने आएंगे व अपनी करतूत का पनिशमेंट पाएंगे, यह अभी कहना मुश्किल है मगर यह तो तय है कि असली गुनहगारों को बचाने के भरपूर प्रयास अभी से शुरू हो गए हैं। इस मामले में पदोन्नति करने वाले से लेकर जांच करने वाले, जांच को धीमी चलाने वालों तक पर कब कार्रवाई शुरू होगी यह देखने वाली बात होगी। इस प्रकरण ने नगर निगम सहित अन्य निकायों में हुई अन्य भर्तियों और पदोन्नतियों पर भी संदेह पैदा कर दिया है। क्या अन्य भर्तियों में भी इसी प्रकार की अनियमितताएं हुई हैं? क्या इन भर्तियों में भी बड़े स्तर पर गड़बड़ी और मिलीभगत का खेल हुआ है? क्या इस पूरे मामले की गहराई से जांच की जाएगी? यह सवाल भी अब उठ रहे हैं।
निगम में शिवराम मीणा, जिनकी पदोन्नति कार्यालय उप निदेशक क्षेत्रीय स्थानीय निकाय विभाग उदयपुर की कृपा से 25 फरवरी 2019 को की गई थी, उन्हें अब पदावनत कर दिया गया है। मीणा को 1 अप्रैल 2015 से सहायक अग्निशमन अधिकारी के पद पर पदोन्नति दी गई थी, जबकि यह पद उस समय नगर निगम में अस्तित्व में ही नहीं था। सवाल यह है कि बिना पद के पदोन्नति आखिर कैसे की गई और इसे पास करने वाले अधिकारी कौन थे?
लंबी खींच ली जांच, अब जाकर आई आंच
निदेशालय जयपुर को 25 फरवरी 2019 को दी गई इस पदोन्नति के संबंध में प्राप्त शिकायत निदेशालय जयपुर के पत्रांक 2229 दिनांक 31 अगस्त 2021 एवं पत्रांक 730 दिनांक 8 मार्च 2022 द्वारा कार्यालय उप निदेशक (क्षेत्रीय) स्थानीय निकाय विभाग, उदयपुर को जांच हेतु भेजी गई थी। सवाल यह है कि 2021 में शिकायत मिलने के बाद भी निस्तारण में चार साल क्यों लगे? क्या इसके पीछे किसी प्रकार का दबाव या प्रशासनिक लापरवाही थी? क्या पदोन्नति महाघोटाला हुआ है? इसके बाद यह प्रकरण नगर निगम उदयपुर को कार्यालय उप निदेशक (क्षेत्रीय) के पत्रांक 1554 दिनांक 21 सितंबर 2021 एवं पत्रांक 3958 दिनांक 25 मार्च 2022 द्वारा मूल ही जांच हेतु प्रेषित किया गया।
जांच कमेटी बनी तो सामने आ गया महाघोटाला
आयुक्त नगर निगम, उदयपुर द्वारा इस मामले की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया, जिसमें फिरोज खान (अतिरिक्त प्रशासनिक अधिकारी), दीपिका मेनारिया (कनिष्ठ विधि अधिकारी) और चन्द्र प्रकाश तलदार (लेखाधिकारी) को शामिल किया गया। यह कमेटी आयुक्त के पत्रांक 1005 दिनांक 1 दिसंबर 2022 के निर्देशानुसार गठित की गई थी। सवाल यह है कि अपात्र पाए जाने के बावजूद मीणा की पदोन्नति की अनुशंसा आखिर कैसे कर दी गई? क्या इस कमेटी में शामिल अधिकारियों की जिम्मेदारी तय होगी? क्या पदोन्नति कमेटी की आंखों में कोई आर्थिक प्रलोभन था? ाजांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 12 मार्च 2024 को निदेशालय जयपुर को प्रेषित की, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया कि शिवराम मीणा की पदोन्नति नियमानुसार नहीं थी। इस रिपोर्ट के आधार पर निदेशालय जयपुर ने उपनिदेशक (क्षेत्रीय) स्थानीय निकाय विभाग, उदयपुर को पत्रांक प.1ग () का/ एसएमई-2/डीएलबी/24/102188 दिनांक 3 मई 2024 से निर्देश दिया कि इस प्रकरण का निस्तारण विभागीय पदोन्नति समिति की आगामी बैठक में किया जाए।
रिक्त पद था ही नहीं, अनुभव की कमी भी थी
विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक दिनांक 25 फरवरी 2019 में मीणा को वर्ष 2015-16 से सहायक अग्निशमन अधिकारी के पद पर पदोन्नति दी गई थी। लेकिन जांच में यह स्पष्ट हुआ कि 2015-16 में नगर निगम उदयपुर में सहायक अग्निशमन अधिकारी का एकमात्र पद पहले से ही जयसिंह चौहान द्वारा भरा हुआ था। जयसिंह चौहान 8 अक्टूबर 2012 से 17 अप्रैल 2018 तक इस पद पर कार्यरत थे, जिससे यह साबित होता है कि इस अवधि में पद रिक्त नहीं था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब पद रिक्त था ही नहीं तो मीणा को पदोन्नति कैसे दी गई? क्या पदोन्नति कमेटी के सदस्यों की मिलीभगत थी?
इसके अलावा, राजस्थान नगर पालिका (अधीनस्थ एवं लिपिकीय सेवा) नियम 1963 के भाग 8 की अनुसूची (ज) (1) के अनुसार टिण्डल से सहायक अग्निशमन अधिकारी के पद पर पदोन्नति के लिए कम से कम 5 वर्ष का अनुभव आवश्यक था। शिवराम मीणा का टिण्डल पद पर नियुक्ति 1 अप्रैल 2011 को हुई थी, और उनका 5 वर्ष का न्यूनतम अनुभव 1 अप्रैल 2016 को पूरा होता है, जबकि उन्हें 1 अप्रैल 2015 से पदोन्नति दी गई थी।
व्यक्तिगत सुनवाई में क्या हुआ?
शिवराम मीणा को अपना पक्ष प्रस्तुत करने हेतु 5 फरवरी 2025 और 9 अप्रैल 2025 को दो नोटिस जारी किए गए। 12 मई 2025 को आयोजित रिव्यू बैठक में भी उन्हें व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया गया। इस सुनवाई में मीणा ने एक ज्ञापन प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि वर्ष 2003 और 2005 में फायरमैन से टिण्डल पद पर की गई पदोन्नति में रोस्टर का उचित पालन नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि 2005 में रोस्टर के अनुसार अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित टिण्डल पद पर वे पात्र थे, परंतु उन्हें पदोन्नति न देकर अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी को पदोन्नति दे दी गई, जो नियमों का उल्लंघन था। मीणा ने यह भी कहा कि उन्हें लगभग 6 वर्ष बाद 1 अप्रैल 2011 को टिण्डल के रिक्त पद पर पदोन्नति दी गई, जो कि अन्यायपूर्ण था।
कमेटी ने क्या निकाला निष्कर्ष और क्या की अनुशंसा?
विभागीय पदोन्नति समिति ने सभी दस्तावेजों के अवलोकन के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि मीणा को 1 अप्रैल 2015 से सहायक अग्निशमन अधिकारी पद पर दी गई पदोन्नति नियमों के विरुद्ध थी। समिति ने सिफारिश की कि चूंकि यह पद 1 अप्रैल 2018 से रिक्त हुआ, इसलिए मीणा की पदोन्नति 1 अप्रैल 2018 से मान्य मानी जाए।
सवाल जो अभी भी जवाब मांगते हैं:
- पदोन्नति कमेटी में कौन-कौन सदस्य थे जिन्होंने अपात्र मीणा की अनुशंसा की?
- पदोन्नति के बाद वेतन जारी होना किस प्रकार संभव हुआ?
- क्या इसमें प्रशासनिक और राजनीतिक दबाव की भूमिका थी?
- क्या नगर निगम की अन्य भर्तियों व पदोन्नतियों की भी गहन जांच होनी चाहिए?
- 2021 में प्राप्त शिकायत के बाद इतने लंबे समय तक निस्तारण क्यों नहीं हुआ?
- क्या सरकारी तंत्र इस मामले में लापरवाही बरत रहा था?
- आखिर सरकारी खजाने को चूना लगाने के असली गुनहगार कब सामने आएंगे?
नोट : खबर लगातार अपडेट की जा रही है।

