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272 प्लॉट प्रकरण : 2 साल से जांच , 2 गिरफ्तारियां, हाथियों पर हाथ डालने से एसओजी के क्यों छूट रहे हैं पसीने?? निगम के अफसर और कर्मचारियों की मिलीभगत पर पर्दा क्यों???

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24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। एसओजी जैसी नामी जांच एजेंसी अगर किसी मामले में हाथ डालती है तो अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाते हैं लेकिन उदयपुर के 272 प्लॉट वाले प्रकरण में लगता है खुद एसओजी के जांच में पसीने छूट रहे हैं। दो साल से महाघोटाले की जांच चल रही है व अब तक केवल दो गिरफ्तारियां हुईं हैं। जबकि सारे कागज राजस्थान विधानसभा के पटल पर पड़े हैं। ऑन रिकॉर्ड रख दिए गए है। व्हिसल ब्लोअर ने जांच की शुरूआत में ही सारे दस्तावेज एसओजी को दे दिए हैं। लेकिन बहुत ज्यादा दबाव के बाद अब तक दो गिरफ्तारियां हुईं है। उसमें भी बड़े हाथियों के नाम नहीं सामने आ रहे हैं जिनके नाम पब्लिक डोमेन में तैर रहे हैं। लाभार्थियों में कई नामी नेता व अफसर शामिल हैं। उन पर आच आएगी यह सोचना ही बेमानी होगा क्योंकि एसओजी बीरबल की खिचड़ी पका रही है। धीमी-धीमी आंच पर खिचड़ी पक रही है व उसकी आंच में छोटे प्यादों को झुलसाया जा रहा है। ऐसा हम इसिए कह रहे हैं कि दो साल से उपर का समय और दो सरकारों का सान्निध्य। एसओजी के पास जो दस्तावेज हैं उनसे अगर मनी ट्रेल और पूरे षड़यंत्र की कड़ियों जोड़ी जाएं तो भयंकर घपला सामने आ सकता है। जाली दस्तावेजों को बनाकर प्लॉट बेचकर लाखो ंका मुनाफा कमाने की चाह रखने वालों ने इन प्लॉटों की जो बंदरबांट की थी उसकी कहानियां भी एसओजी के कानों तक तो जरूर पहुंच गई होगी। अब देखना यह होगा कि कब बड़े किरदारों को सलाखों के पीछे भेजा जाता है।
फिलहाल नगर निगम पे दूसरी गिरफ्तारी आरोपी किशन लाल निवासी एकलव्य बस्ती, मल्लातलाई के रूप में की है। उस पर आरोप है कि हिरणमगरी में बेचे गए प्लॉट के 7 लाख रुपए उसने अपने खाते में लिए थे। पैसों को बाद में मुख्य आरोपी विक्रम ताकड़िया तक पहुंचाया। राजेन्द्र धाकड़ ने अधिकारी-कर्मचारियों के साथ मिलकर सेक्टर-11 में निगम के 546 नंबर के प्लॉट के फर्जी दस्तावेज तैयार कराए। किशन पटेल के नाम से लीजडीड और नामांतरण पत्र जारी करवाए। दस्तावेज तैयार होने के बाद इनको सलूंबर निवासी अनिल कचौरिया को 50.01 लाख रुपए में बेच दिया। पैसे मास्टरमाइंट ताकडिया तक पहुंचाने का काम किशन मारवाड़ी और राकेश सोलंकी ने किया। इससे पहले एसओजी ने गुजरात में वार्ड पार्षद को गिरफ्तार किया था। बताया जा रहा है कि नगर निगम में दोनों दलालों की अच्छी जान पहचान थी। इन्होंने फर्जी दस्तावेज तैयार किए और डमी कैंडिडेट बनाकर भूखडों का सौदा करवा दिया। निगम के अफसर और कर्मचारियों की मिलीभगत सामने आ रही है जिसकी एसओजी जांच कर रही है। उनकी गिरफ्तारी कब होगी या होगी भी नहीं यह अब तक कहा नहीं जा सकता। लेकिन ये तो तय है कि यदि अफसर फंसे तो नेताओं को भी ले डूबेंगे नेताओं में जो नाम अभी सामने आ रहे हैं उनमें दोनों प्रमुख दलों के नेता शामिल हैं।
विधानसभा में मामला उठने पर भी तत्काल कार्रवाई नहीं
यूआईटी से नगर निगम को हस्तान्तरित 272 भूखण्ड जो लापता हो गए, उनका मामला विधानसभा में शहर विधायक ताराचंद जैन ने उठाया। जैन ने कहा कि मामले में तीन छोटे कर्मचारियों को नोटिस दिया गया था। इन भूखण्डों के पट्टे जारी करने वाले तत्कालीन आयुक्त के खिलाफ आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। उन्होंने कहा था कि यूआईटी (अब यूडीए) से नगर निगम को समय-समय पर कॉलोनियां हस्तांतरित की जाती है और इन कॉलोनियों के हस्तान्तरण के साथ-साथ इन कॉलोनियों में खाली पड़े यूआईटी के भूखण्ड भी निगम को मिल जाते है, जिनमें से 272 भूखण्ड गायब है। विधायक जैन ने कहा कि यह 500 करोड़ से अधिक का घोटाला है और केवल 49 भूखण्डों को संदिग्ध माना है। तत्कालीन निगम आयुक्त हिम्मत सिंह बारहठ ने भूमाफियाओं से मिलीभगत की। 272 भूखण्डों के गायब होने का मामला सामने आया तो महापौर ने जांच कमेटी गठित की, जिसमें तीन पार्षदों और तीन अधिकारियों को शामिल किया गया। जांच कमेटी ने आनन-फानन में रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट पर केवल अधिकारियों के ही हस्ताक्षर किए। बताया कि 316 पत्रवालियों की जानकारी नहीं थी और 49 भूखण्डों को संदिग्ध माना था। रिपोर्ट में लिखा कि यूआईटी जांच कर बताएगी। विधायक जैन ने कहा कि जब यूआईटी से पूछा तो उन्होंने बताया कि निगम से इस तरह का कोई पत्र आया ही नहीं। निगम के जिम्मेदार अधिकारियों ने इसे छिपाने के लिए यूआईटी को पत्र लिखा ही नहीं। शहर विधायक ताराचंद जैन ने कहा कि इस मामले में तीन छोटे अधिकारियों को 16 सीसी का नोटिस दे दिया, जबकि जिम्मेदार आयुक्त होता है उसे कुछ नहीं कहा गया। विधायक जैन ने विधानसभा को बताया कि इस मामले में एसओजी में एफआईआर दर्ज है पर दो साल से जांच पेंडिंग है। सरकार से मांग की कि कठोर कार्यवाही करें और निष्पक्ष जांच करवाकर नीचे से लेकर उपर के अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करें।
बारहठ की करतूतों की पोल खोली मगर हुआ कुछ नहीं, उल्टे प्रमोशन हो गया
उदयपुर शहर विधायक ने विधानसभा में नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त ने यूआईटी की पोल खोली थी। बारहठ ने करोड़ों की 4115 फीट जमीन को मात्र 1.35 लाख रूपए में भूमाफिया को दे दी, जबकि यहां से रेल्वे अण्डर ब्रिज और 150 फीट सडक़ प्रस्तावित है और हाल में रेलवे ने यहां पर दोहरी लाईन बिछाने की स्वीकृति दी है। उदयपुर शहर विधायक ताराचंद जैन ने विधानसभा में कहा था कि नगर नगम ने पानेरियों की मादड़ी क्षेत्र में सविना ओवरब्रिज के पास में स्थित यूआईटी की जमीन को भूमाफियाओं को आवंटित कर दी। विधायक जैन ने कहा कि रेल्वे पटरी से 30 फीट अंदर की जमीन का आवंटन तीन अलग-अलग पट्टों में किया गया, जबकि रिपोर्ट में रेल्वे पटरी से 38 फीट होने पर आवंटित नहीं करने का लिखा था, फिर भी आवंटित कर दी, जबकि यहां पर रेल्वे अण्डर ब्रिज और 150 फीट सडक़ प्रस्तावित है। यूआईटी इस जमीन के लिए 2012 से उच्च न्यायालय में लड़ रही है और 2024 में उच्चतम न्यायालय ने उसे अतिक्रमी माना है। नगर निगम के आयुक्त ने भूमि दलालों को फायद पहुँचाने के लिए करोड़ों रूपए मूल्य की 4115 फीट मात्र 1 लाख 35 हजार 934 रूपए में आवंटित कर दी, वह भी व्यावसायिक प्रयोजनार्थ। इस जमीन पर रेल्वे ने दोहरी लाईन बिछाने की स्वीकृति दी है। जब रिपोर्ट सामने आई तो जिसे जांच के लिए कलेक्टर को भेजी तो उन्होंने भी रिपोर्ट ठंडे बस्ते में डाल दी। शहर विधायक ताराचंद जैन ने कहा कि सारे दस्तावेज उनके पास है और दस्तावेजों को संबंधित मंत्री को उपलब्ध करवाया हैं। लेकिन हुआ कुछ नहीं, भाजपा में ही किसी बडी लॉबी के आगे विधायक पस्त हो गए और बारहठ की जांच तो दूर, उनका आईएएस में प्रमोशन हो गया।

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