24 न्यूज अपडेट, डूंगरपुर। चोरी के मामूली आरोप में हिरासत में लिए गए युवक की इलाज के दौरान मौत ने डूंगरपुर पुलिस पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। देवसोमनाथ कलारिया निवासी दिलीप अहारी को शुक्रवार को दोवड़ा थाना पुलिस ने हिरासत में लिया था। थाने में ही उसकी तबीयत बिगड़ी और बाद में जिला अस्पताल होते हुए उसे उदयपुर रेफर किया गया। जहां मंगलवार को उसने दम तोड़ दिया।
युवक की मौत की सूचना मिलते ही परिजन और ग्रामीण आक्रोशित हो उठे और कलेक्ट्री के बाहर धरना-प्रदर्शन कर जाम लगा दिया। भीड़ का कहना है कि हिरासत में दिलीप की तबीयत अचानक बिगड़ना महज संयोग नहीं हो सकता, बल्कि पुलिस की सख्ती और मारपीट का नतीजा है। इस सवाल का जवाब अब तक पुलिस और प्रशासन के पास नहीं है कि आखिर हिरासत में रहते हुए युवक की तबीयत इतनी क्यों बिगड़ी कि उसे लगातार अस्पतालों में भटकते हुए जान गंवानी पड़ी।
विरोध प्रदर्शन को देखते हुए बीएपी के आसपुर विधायक उमेश डामोर और सांसद राजकुमार रोत मौके पर पहुंचे और परिजनों की मांगों का समर्थन किया। दोनों जनप्रतिनिधियों ने कहा कि दोषी पुलिसकर्मियों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, साथ ही मृतक के परिवार को सरकारी नौकरी और उचित मुआवजा दिया जाए। सांसद रोत ने यहां तक मांग की कि परिवार को एक करोड़ रुपए का मुआवजा और एक सदस्य को नौकरी दी जाए।
मृतक की मौत ने पुलिस हिरासत में होने वाली पूछताछ की पद्धति और सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या पूछताछ के दौरान मेडिकल प्रोटोकॉल का पालन किया गया? क्या युवक को हिरासत में रहते समय समय पर चिकित्सकीय सुविधा दी गई? और सबसे अहम है कि क्या पुलिस की ओर से थर्ड डिग्री या मारपीट की गई, जैसा कि परिजन आरोप लगा रहे हैं? ये सभी प्रश्न अब जनता और जनप्रतिनिधियों के बीच गूंज रहे हैं।
मामले की गंभीरता को देखते हुए कलेक्ट्री के बाहर भारी पुलिस बल तैनात किया गया है और प्रशासनिक अधिकारी प्रदर्शनकारियों से लगातार वार्ता कर रहे हैं। हालांकि, परिजनों का कहना है कि जब तक दोषी पुलिसकर्मियों पर ठोस कार्रवाई नहीं होती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
यह घटना न केवल पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रही है, बल्कि यह भी दिखा रही है कि हिरासत में किसी आरोपी की जान जाना कानून व्यवस्था पर सीधा धब्बा है।
जनप्रतिनिधि सीसीटीवी फुटेज पर मौन क्यों
इस मामले में जन प्रतिनिधियों ने अब तक सीसीटीवी फुटेज की मांग नहीं की है। इससे मिलीभगत का अंदेशा हो रहा है। यदि सीसीटीवी को जनता के पैसोंसे लगाया गया है व सुप्रीम कोर्ट तक इसे देने के आदेश दे चुका है कई बार तो इस मामले में पुलिस खुद सीसीटीवी जनता के सामने क्यों नहीं रख रही है यह बड़ा सवाल उठ रहा है।
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