-राहडा फाउंउेशन के आमंत्रण पर सांझी कला देखने पहुंची डॉ. रूमा देवी
-लेक्रोज खिलाडियों को भी सम्मानित किया
24 News Update उदयपुर। राजीविका की ब्रांड एम्बेसडर व अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त समाजसेवी डॉ. रूमा देवी मेवाड की पारंपरिक कला सांझी को देखकर रोमांचित हो उठी। रूमा देवी ने कहा कि इस तरह की परंपराओं को जीवित रखने की आवश्यकता है जिससे हमारी संस्कृति और विरासत का भी संरक्षण हो।
राहडा फाउंडेशन की ओर से सांझी संरक्षण को लेकर आयोजित कार्यक्रम में डॉ. रूमा देवी ने यह विचार व्यक्त किए। पिछले कई सालों से सांझी निर्माण कर रही रेखा पुरोहित ने पारंपरिक लोककला सांझी की महत्ता, इसकी विधि एवं इसके पीछे की कथा के बारे में डॉ. रूमा देवी को बताया तो वे काफी खुश हुई। उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्र में इस प्रकार की परंपराए जीवित रहेगी तो आने वाली पीढी को भी इसका लाभ मिलेगा। हमारी ये विरासत खत्म नहीं होनी चाहिए। हमारे पुरखों ने कुछ सोच समझ कर इन परंपराओं को बनाया होगा। उन्होंने अपने जीवन की प्रेरणादायक यात्रा साझा करते हुए कहा कि वे किन्ही कारणों से ज्यादा पढाई नहीं कर पाई, लेकिन उनका मिशन है कि आने वाली पीढी शिक्षा में आगे रहे। इसी सोच के साथ उन्होंने सीमित संसाधनों के बावजूद हौसले और मेहनत से महिला सशक्तिकरण की मिसाल कायम की।
राहड़ा फाउंडेशन की संस्थापक अर्चना सिंह चारण ने कहा कि परंपराएं और लोककलाएं हमारी पहचान हैं। इन्हें सहेजना और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना हम सभी का दायित्व है। श्रीमती चारण ने बताया कि राहड़ा फाउंडेशन कौशल विकास के क्षेत्र में उदयपुर के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय रूप से कार्यरत है और अब तक हजारों लोगों को रोजगार से जोड़ने का कार्य कर चुका है। इस पहल के माध्यम से महिलाएं और युवा आत्मनिर्भर बन रहे हैं तथा पारंपरिक कला और शिल्प को भी नई पहचान मिल रही है। इस मौके पर राहडा फाउंडेशन की ओर से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तैयार किए जा रहे प्रोडक्ट की स्टॉल भी लगाई गई जिसको देखकर डॉ. रूमा देवी काफी खुश हुई। कार्यक्रम में उन बालिकाओं का भी सम्मान किया गया जिन्होंने लेक्रोज खेल में इंटरनेशनल लेवल पर अपनी पहचान बनाई है।
कार्यक्रम में डॉली मोगरा, सरला अग्रवाल, जूली शर्मा, हृषिता सिंह चारण, कुसुमलता सुहलका, मधुबाला पुर्बिया, मनीषा लोढ़ा, विशाखा मेघवाल, जुला गुर्जर व मीरा डोउजा सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थिति रहे।
इस अवसर पर कई महिला समूहों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और युवाओं ने सक्रिय भागीदारी की और सांजी कला को प्रत्यक्ष रूप से देखा व समझा।
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