24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। उदयपुर में डीपीएस स्कूल (दिल्ली पब्लिक स्कूल) की आड़ में करोड़ों की सरकारी जमीन को कौड़ियों के भाव हथियाने और गरीब-आदिवासी बच्चों के अधिकारों पर डाका डालने का संगीन मामला सामने आया है। पूरे खेल की सूत्रधार मंगलम सोसायटी हैं, जबकि उदयपुर विकास प्राधिकरण (यूडीए) पर आरोप है कि जांच रिपोर्ट में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर सरकार को गुमराह किया और खुलेआम घोटाले पर पर्दा डाल दिया।
2005ः ‘गरीबों-आदिवासियों की पढ़ाई’ के नाम पर जमीन की मांग
वर्ष 2005 में मंगलम सोसायटी के चेयरमैन ने तत्कालीन मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर भुवाणा में रियायती दरों पर जमीन मांगी। जबकि सच यह है कि अग्रवाल के पास पहले से ही बड़ी निजी जमीनें मौजूद थीं। पत्र में दावा किया गया कि डीपीएस फ्रेंचाइजी खोलकर यहां गरीब और आदिवासी बालक-बालिकाओं को उच्चस्तरीय शिक्षा, छात्रावास और खेल मैदान जैसी सुविधाएं दी जाएंगी।
सरकार ने इन झूठे दावों के आधार पर सोसायटी को 7 एकड़ (3,04,920 वर्गफीट) जमीन आवंटित की। इसमें से 2 एकड़ जमीन तो महज़ 25 प्रतिशत दर पर सोसायटी को सौंप दी गई। शेष जमीन भी न्यास दरों पर रियायत के साथ दी गई।
शर्तें साफ थीं लेकिन कभी निभाई नहीं गईं
लीज डीड में सोसायटी को कुछ स्पष्ट शर्तों के साथ जमीन दी गईः जमीन का उपयोग सिर्फ शिक्षा व संबंधित प्रयोजन के लिए। जमीन का किसी अन्य संस्था को हस्तांतरण पूर्णतः अवैध था। सबसे अहमः 25 फीसदी सीटें एससी, एसटी, पिछड़ा वर्ग, विकलांग, शहीद सैनिकों और विधवाओं के बच्चों के लिए आरक्षित होंगी। इनमें 12 प्रतिशत एससी, 8 प्रतिशत एसटी और 3 प्रतिशत विकलांग छात्रों के लिए तय था। और इन वर्गों से केवल 50 फीसदी फीस ली जानी थी। इन शर्तों की पालना पूरी लीज अवधि तक करना अनिवार्य था।
वास्तविकताः न एडमिशन, न पालन-सिर्फ मुनाफाखोरी
सोसायटी ने शर्तों की कभी भी पालना नहीं की। डीपीएस स्कूल में अब तक आवंटन शर्तों के मुताबिक एडमिशन नहीं दिए गए। स्कूल ने केवल आरटीई के एक्ट 2009 का सहारा लिया, जबकि यह पूरी तरह अलग विषय है।
आरटीई के तहत किसी भी निजी स्कूल को 25 प्रतिशत सीटें गरीब बच्चों के लिए देनी ही होती हैं, चाहे स्कूल ने बाजार भाव पर जमीन खरीदी हो या रियायती दर पर। लेकिन मंगलम सोसायटी को मिली जमीन की शर्तें इससे अलग थीं। उन्हें अतिरिक्त 25 प्रतिशत सीटें आधी फीस पर गरीब-आदिवासी बच्चों के लिए देनी थी। यानि डीपीएस को कुल 50 प्रतिशत एडमिशन गरीब और कमजोर वर्गों के लिए सुनिश्चित करने थे। पर वास्तविकता में स्कूल ने न तो यह शर्त निभाई और न ही आधी फीस पर बच्चों को पढ़ाया।
कांग्रेस सरकार ने भी किया खेल
कांग्रेस सरकार के अंतिम दिनों में भी डीपीएस स्कूल को फायदा पहुँचाया गया। जिस एक लाख वर्गफीट जमीन पर सालों से स्कूल का कब्जा था, उसे 60 समाजों की सूची में शामिल कर आधिकारिक तौर पर सौंप दिया गया। अब तक डीपीएस को करीब 4 लाख वर्गफीट जमीन दी जा चुकी है। यह राजस्थान का शायद पहला स्कूल है जिसे भूमि आवंटन नीति 2015 को रौंदकर इतनी जमीन सौंप दी गई।
पत्रकार जयवंत भैरविया की शिकायत और सरकार का आदेश
वरिष्ठ पत्रकार व आरटीआई एक्टिविस्ट जयवंत भेरविया ने इस घोटाले की शिकायत मुख्य सचिव सुधांशु पंत से की और जमीन निरस्त करने की मांग रखी। इस पर नगरीय विकास एवं आवासन विभाग ने 8 अप्रैल 2025 को यूडीए को जांच रिपोर्ट भेजने के आदेश दिए। यूडीए आयुक्त राहुल जैन ने 9 अप्रैल को सचिव हेमेंद्र नागर की अध्यक्षता में समिति बनाई। इसमें जितेंद्र ओझा, बिंदुबाला राजावत, अभिनव शर्मा, बाबूलाल तेली, राजेंद्र सेन और सुरपाल सोलंकी शामिल थे। 17 अप्रैल को गोविंद अग्रवाल को नोटिस जारी किया गया।
यूडीए की रिपोर्टः घोटाले पर पर्दा
रिपोर्ट में साफ लिखा गया कि डीपीएस ने 2012-13 से 2024-25 तक आरटीई के तहत एडमिशन दिए हैं और हर साल सत्यापन हुआ है। इस आधार पर रिपोर्ट यह निष्कर्ष देती है कि शर्तों का पालन हुआ। यहां सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है कि जब आवंटन शर्तें और आर टी ई एक्ट 2009 पूरी तरह अलग विषय हैं, तो यूडीए ने क्यों दोनों को एक जैसा मान लिया? असल में यूडीए की यह टिप्पणी सीधे-सीधे सोसायटी को बचाने और सरकार को गुमराह करने की कोशिश है। यह केवल आरटीई की आड़ में आवंटन शर्तों की घोर अवहेलना पर पर्दा डालने जैसा है।
सरकार के सामने सीधा सवाल
जब जमीन गरीब और आदिवासी बच्चों की शिक्षा के नाम पर दी गई थी, तो अब तक उन बच्चों को क्यों नहीं मिला उनका हक? क्यों सोसायटी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई? और सबसे अहम यह कि क्यों यूडीए ने जानबूझकर रिपोर्ट में आधा सच पेश कर इस घोटाले को दबाने का प्रयास किया? यह मामला केवल एक स्कूल या एक सोसायटी तक सीमित नहीं है। यह सवाल खड़ा करता है कि उदयपुर जैसे आदिवासी अंचल में सरकारी रियायतों और नीतियों का असली लाभ आखिर किसे मिल रहा है। गरीब बच्चों को या फिर स्कूल मालिकों और उनके व्यवसायिक हितों को?
अब राज्य सरकार के सामने यह अब अग्निपरीक्षा है। यदि सरकार ने इस पर सख्त कार्रवाई नहीं की और जमीन का आवंटन निरस्त नहीं किया, तो यह साफ हो जाएगा कि सरकारी नीतियां सिर्फ कागजों में गरीबों के लिए हैं और जमीन पर इनका इस्तेमाल मुनाफाखोर शिक्षा व्यवसायियों को फायदा पहुँचाने के लिए किया जा रहा है।
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